अपनों से अपनी बात-2 : अनुयाज-पुनर्गठन - आश्वमेधिक अनुयाज का शुभारंभ

April 1996

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इस अंक से आश्वमेधिक ‘अनुयाज’ पर विशेष लेखमाला आरम्भ की जा रही है। आँवलखेड़ा में सम्पन्न हुए प्रथम पूर्णाहुति समारोह के समय घोषित की गई 6 महाक्रान्तियों का क्रियापरक रूप ही यह अनुयाज है। इस लेखमाला की प्रस्तुति के पीछे दो महती आकाँक्षाएं है॥ पहली-समस्त परिजन भाई बहनें इसे ध्यानपूर्वक पढ़ें-समझें- क्रियान्वित करें। दूसरी-अपने परिचय व प्रभाव क्षेत्रों में इसे पढ़ाने-समझाने व कार्यान्वित कराने में भगवान महाकाल के दूत की सक्रिय भूमिका निभाएं। विश्वास है कि इक्कीसवीं सदी के उज्ज्वल भविष्य की इन 6 महाक्रान्तियों, अनुयाज कार्यक्रमों द्वारा अगवानी करने के लिए सभी आगे आएंगे।

इस मिशन के प्रति सद्भाव तथा कार्यों के प्रति विश्वास रखने वाले अन्य सभी भाई-बहनों को, तथा परोपकार समन्वित आत्मोन्नति में रुचि रखने वाले सभी पाठकों को भी भाव भरा आमन्त्रण है कि विश्वकल्याण के संकल्प से प्रेरित इन छः महाक्रान्तियों-अनुयाज कार्यक्रमों में वे भी सक्रिय भागीदार बनने का अनुग्रह करें।

विदेशों व भारतवर्ष में आयोजित छब्बीस, अविस्मरणीय अश्वमेध समारोहों की गरिमामयी प्रथम पूर्णाहुति सत्ताइसवें अश्वमेध के साथ परमपूज्य गुरुदेव की जन्मस्थली आंवलखेड़ा में नवम्बर 1995 में सम्पन्न हुई। उस समय दो महत्वपूर्ण घोषणाएं की गई थी। (1) कुछ समय के लिए अश्वमेध आयोजनों का स्थगन, तथा (2) छः सूत्रीय आश्वमेधिक ‘अनुयाज’ का प्रारम्भ। अश्वमेधों की स्थगन घोषणा से अनेक परिजनों में भ्रम की स्थिति निर्मित हो गई, ‘अश्वमेध क्यों बन्द कर दिये’? ‘लोगों के उत्साह को रोकर अच्छा नहीं किया, ‘ इत्यादि। यह मिशन परिजनों का ही है। उनका उत्साह ही मिशन का प्राण है। अतः उसे रोकने की कभी कल्पना भी नहीं होती। स्थगन के कारण कुछ और हैं। उस समय स्थगन घोषणा के साथ-साथ कारणों को भी स्पष्ट किया गया था। किन्तु भ्रम कदाचित अभी भी है, अतः उसका निवारण करने के लिए कारणों को पुनः स्पष्ट किया जा रहा है।

अश्वमेध शृंखला को तीन प्रमुख कारणों से रोकना आवश्यक था :

(1) अश्वमेधों के ‘प्रयाज’ तथा ‘याज’ कार्यक्रमों में जाने अनजाने में जो जो भूलें हुई, उनको तथा उनके कारणों को ढूंढ़ना व समीक्षा करना जिससे कि भविष्य में उनकी पहले से ही रोकथाम की जा सके और व्यापक हानियों से बचा जा सके।

(2) जो जो प्रगतियाँ-उपलब्धियाँ हुई उनको स्थायी बनाए रखने के लिये उन्हें और सभी बढ़ाने के लिए, ‘अनुयाज’ जैसा आवश्यक उपाय निर्धारित करना, विकसित करना तथा, क्रियान्वयन की व्यवस्था बनाना।

(3) समस्त भूलों-उपलब्धियों का मूल्याँकन करना तथा निष्कर्षों के आधार पर अगले कदमों को निर्धारित करना।

पहले और तीसरे कारणों पर व्यापक समीक्षा की जा रही है। समीक्षा के निष्कर्षों से परिजनों को समय-समय पर निश्चय ही अवगत कराया जाता रहेगा। अतः अब इसके कारण ‘अनुयाज’ पर विचार करें।

अपने-अपने क्षेत्र के अश्वमेध प्रारम्भ होने के महीनों पहले से परिजनों ने रात-दिन कठोर परिश्रम किया गाँव- गाँव की माटी इकट्ठी करने व दीवाल लेखन आदि से प्रारम्भ कर अश्वमेध क्षेत्र की समूची जनसंख्या से निकट संपर्क स्थापित किया। शिक्षित या अशिक्षित, शहरी या ग्रामीण, नर नारी-बच्चे, किसी को नहीं छोड़ा। मिशन उसकी नीति-रीति से गायत्री व यज्ञ के महत्व से, भारतीय संस्कृति से और भारतीय होने के गौरव से उन्हें उनकी समझ के अनुसार अवगत कराया, प्रभावपूर्ण प्रेरणाएं दी, और इन सबके मूर्तरूप को अपनी आँखों देखने के लिए अश्वमेध में पधारने का भाव भरा आमंत्रण दिया। यह ‘प्रयाज’ था, अश्वमेध की पूर्व सुगन्ध थी, जिसने लाखों नहीं करोड़ों मानों को छू लिया, नवीन चेतना व उमंग से भर दिया।

समर्पित भाव से की गई परिजनों की इस कठोर श्रम-साधना के विस्मयकारी परिणाम अश्वमेध सम्पन्न होने की अवधि के पाँच दिनों में दिखाई पड़े। इन सत्ताईस अश्वमेधों में छः करोड़ से अधिक नर-नारी-बच्चे अपना धन, श्रम व समय लगाकर, अपना काम छोड़ कर आए। भीड़ में होने वाली कष्ट कठिनाइयों को बिना खीजे सहते रहे। अपने लिए प्रतिबन्धित की गई गायत्री को और यज्ञ को मुक्त रूप में देखा तो भाव विभोर हो उठे। परिजनों और मिशन के प्रति कृतज्ञता से भर गए। प्रत्यक्ष देखा और समझा कि यह मिशन क्या है। उसकी वैचारिक व भावनात्मक क्रान्ति के तत्व समझे, प्रभावित हुए और उनके बीज अपने चिन्तन में साथ ले गए। यह ‘याज’ था, अश्वमेध की सद्य-सुगन्ध थी, जो उन छः करोड़ से अधिक नर-नारी बच्चों के मानस में फैल गई और मिशन के प्रति श्रद्धा व अपनेपन की सुवास भर गई।

अब यह आवश्यकता अनुभव की जा रही है कि ऐसी प्रभावी व्यवस्था बनाई जाय जिससे परिजनों ने जो कठोर श्रमसाधना की है उसके परिणाम यही तक सीमित न रह जायं। जो उपलब्धियां परिजनों ने भारत में तथा विदेशों में हस्तगत की हैं और मिशन को सौंपी हैं वे समय की गर्द में दब कर लुप्त न हो जाएँ। वे विकसित हों तथा स्थायी स्वरूप धारण करें। इस विकास व स्थायित्व से निश्चय ही मिशन का भी आकार बढ़ेगा, स्तर ऊँचा उठेगा, अगली छलाँग के लिए अच्छी स्थिति बनेगी।यही आज की अनिवार्य आवश्यकता है प्राथमिक आवश्यकता है। अश्वमेधों के द्वारा युग निमार्ण मिशन के प्रति,प्रयाज व याज कार्यक्रमों में से झाँकती वैचारिक क्रान्ति के प्रति तथा स्वयं परिजनों के सेवाभावी व्यक्तित्व के प्रति विशाल जन समुदाय की जो आस्था व आत्मीयता जुड़ गई है, उसे स्थायी करना चाहिए। विशाल जन समुदाय को मिशन की हितकारी बाँहों में समेटना चाहिए, क्रियात्मक रूप से अपना बनाना चाहिए।

यही ‘अनुयाज’ है, अश्वमेध के बाद की सुवास है, अश्वमेध की उत्तर सुगन्ध है, जिसे उन करोड़ों श्रद्धावानों तक उनके ग्रामों-कस्बों में पहुँचाना है। प्रयाज और याज से उत्पन्न हुई आस्था आत्मीयता की भावना को अनुयाज ही क्रियात्मकता में बदल सकता है। अनुयाज ही परिजनों की श्रमसाधना से उत्पन्न सत्परिणामों को स्थायी बना सकता है। इसीलिए अनुयाज अब हम सबकी प्रथम आवश्यकता है।

अश्वमेधों से लौटकर यह छः करोड़ जनसंख्या अपने-अपने गाँव-कस्बों में चुपचाप बैठी है, प्रज्ञा परिजनों की प्रतीक्षा कर रही है। तैयार की गई भूमि अभी भी तरोताजा है। अतः जाकर अब अनुयाज के बीज बोना है, और बीजों के विकास की व्यवस्था करना है। इन दो प्रयासों से, श्रम-बिन्दुओं से, यदि कँटीले पौधे छटेंगे और शानदार फसल लहलहाएंगे तो हम सबसे अधिक भला और किसकी छाती फूलेगी। प्रत्येक मेहनती किसान निश्चय ही प्रभु-प्रदत्त यह आनन्द पाता है।

प्रथम पूर्णाहुति समारोह के अवसर पर जिन 6 महाक्रान्तियों को प्रारम्भ किये जाने की घोषणा की गई थी, वे आश्वमेधिक अनुयाज ही हैं। जीवन का प्रत्येक पक्ष इनकी लपेट में आ जाता है। मानव के सर्वांगीण विकास की कल्पा को वे साकार कर सकती हैं, यथा :—

(1) आध्यात्मिक पुनर्जागरण (2) वेद स्थापना (3) पर्यावरण सन्तुलन (4) नारी जागरण (5) ग्राम्य स्वास्थ्य सेवा (6) लोक-रंजन से लोक-मंगल।

इन महाक्रान्तियों की सीमाएं विस्तृत है। अतः क्रियान्वयन की सुविधा के लिए तथा क्रियापरक स्वरूप देने के लिए उन्हें 14 संकल्पों में फैला दिया गया है। वे ही आश्वमेधिक समुद्र मंथन से निकले 14 रत्न हैं जो निम्न हैं :—

(1) स्वाध्याय -मनन-चिन्तन (2) विश्व कल्याण के लिए समर्पित गायत्री मन्त्र जप अथवा भगवन्नाम जप, अथवा अपने-अपने धर्म सम्प्रदाय का मंत्र जप। (3) गायत्री मन्त्र अथवा भगवन्नाम लेखन। (4) ज्ञान-यज्ञ, दीप यज्ञ आदि द्वारा आस्था जागरण, मिशन का विस्तार। (5) तुलसी का व्यापक रोपण-रक्षण-सिंचन। (6) पंच महावृक्षों तथा जैनोसिया अशोक का व्यापक रोपण रक्षण-सिंचन।

(7) जीव दया। माँसाहार का त्याग। (8) नारी प्रतिष्ठा की पुनर्स्थापना। नारी शक्ति जागरण का व्यापक अभियान। (9) नारियों का कुटीर-उद्योग प्रशिक्षण। जीवनोपयोगी व्यवहारिक ज्ञान। (10) आर्थिक विपन्नताग्रस्त कन्याओं की शिक्षा व्यवस्था। (11) बालक-बालिकाओं में संस्कार संवर्धन। (12) स्वास्थ्य संरक्षण। शाकाहार प्रचार। (13) योग प्रशिक्षण। योग का प्रचार-प्रसार (14) लोकरंजन से लोकमंगल।

उपरोक्त 14 अनुयाज संकल्पों की एक-एक करके विस्तृत विवेचना तथा क्रियान्वयन पद्धति अखण्ड ज्योति में प्रकाशित की जाती रहेगी, साथ ही इस पर एक समग्र पुस्तिका प्रारम्भ में एवं अलग-अलग प्रत्येक पर सभी प्रकाशित की जा रही हैं, ताकि सभी उसे क्रिया रूप दे सकें। परिजनों से अनुरोध है कि वे इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़ें, समझें तथा कार्यान्वित करें। परिवार-जनों से, सम्बन्धियों से तथा मित्रों से व्यक्तिगत चर्चाओं में इन्हें सभी सम्मिलित किया करें। मण्डलों तथा शक्तिपीठों की विचार गोष्ठियों में तथा कार्य निर्धारण करते समय इन पर विशेष चर्चा किया करें। स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप प्रचार एवं क्रियान्वयन का रूपरेखा निर्धारित किया करें।

निश्चय ही ये महाक्रान्तियाँ हैं, बड़े संकल्प हैं, किन्तु परिजनों के साहस व उत्साह उनसे कहीं अधिक बड़े हैं मनोबल व निष्ठा की परीक्षा है। सत्ताईस अश्वमेध पार कर चुके है। इन सबसे बड़ा महाकाल का संरक्षण व आशीष हमारे साथ है। अतः क्रान्तियों-संकल्पों के बड़े होने की चिन्ता न करें। ‘रहमत तेरी मेहनत मेरी’ इस प्रेरणा को मन में बिठाकर अपने धर्म कर्तव्य पर लग जाय।

पिछले दिनों एक विलक्षण खगोलीय घटना अंतरिक्ष जगत् में देखी गई। जब ‘हयाकुताके’ नाम धूमकेतु पृथ्वी के निकट आ पहुँचा, यह संयोग मात्र है कि यह धूमकेतु जिन दिनों नंगी आँखों से देखे जाने लायक चमकीला स्था, उस समय पूरे भारत में नवरात्रि का संधि पर्व मनाया जा रहा था। रामनवमी के दिन से यह सूर्य के अत्यधिक समीप आने के कारण यह अदृश्य हो गया। अब तक की किंवदंतियों के अनुसार जब-जब भी धूमकेतु प्रगट हुए हैं तब-तब भारी उथल-पुथल पूरे धरती एवं विश्व पटल पर हुई। इन्हीं दिनों अमेरिका और चीन के बीच अत्यधिक तनाव देखा गया। क्योंकि चीन स्वतन्त्र देश तैवान में चुनाव होते नहीं देखना चाहता था। चीन का युद्धाभ्यास इन्हीं दिनों चालू हुआ और जब अमेरिकन युद्ध-पोत भी तैवान की खाड़ी के नजदीक पहुँच गया तो एक युद्ध की पूर्व भूमिका तैयार हो चुकी थी। संयोग से यह सभी अब टल गया। इसी धूमकेतु के आने की पूर्व वेला में भारत के राजनीतिज्ञों को हिचकोले देने वाला ‘हवाला-काण्ड’ हुआ और इन्हीं दिनों चुनाव की घोषणा भी की गई।

अगले वर्ष अप्रैल में एक और बड़े धूमकेतु ‘हेल-बाब’ के आने की संभावना है, जो कि इससे भी काफी बड़ा होगा। यह परिवर्तन का समय है एवं ऐसी अन्तर्ग्रही घटनाओं को विगत की हलचलों के परिप्रेक्ष्य में देखते हुए महाकाल के लिए सृजन की तैयारी एवं मानव जाति के क्रिया-कलापों, चिन्तन-व्यवहार में परिवर्तन पर गहन विचार-विमर्श होना चाहिए। सूक्ष्म जगत के परिशोधनार्थ किये जा रहे युगसंधि महापुरश्चरण की इस समय बड़ी स्पष्ट भूमिका है।


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