शब्दनाद में निहित शक्ति सामर्थ्य

April 1996

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माण्डूक्योपनिषद् में परमात्मा के समग्र रूप के तत्व समझाने के लिये उनके चार पादों की कल्पना की गई है। नाम और नामी की एकता प्रतिपादन करने के लिये भी और नाद शक्ति के परिचय रूप में अ, उ और म इन तीन मात्राओं के साथ और मात्रा रहित उसके अव्यक्त रूप के साथ परब्रह्म परमात्मा के एक-एक पाद की समता दिखलाई गई है और ओंकार को ही परमात्मा का अभिन्न स्वरूप मान कर बताया गया है-

‘ओम’ अक्षर ही पूर्ण अविनाशी परमात्मा है। यह प्रत्यक्ष दिखाई देने वाला जड़-चेतन का समुदाय रूप जगत् उन्हीं का उपाख्यान अर्थात् उन्हीं की निकटतम महिमा का निदर्शक है, जो स्थूल और सूक्ष्म जगत पहले उत्पन्न होकर उसमें विलीन हो चुका है, जो वर्तमान है, जो भविष्य में उत्पन्न होगा, वह सब का सब ओंकार (ब्रह्म का नाद-स्वरूप) ही है।तीनों कालों से अतीत इससे भिन्न है, वह भी ओंकार ही है। अर्थात् स्थूल सूक्ष्म और कारण जो कुछ भी दृश्य, अदृश्य है, उसका संचालन ‘ओंकार’ की स्फुरणा से ही हो रहा है। यह जो उनका अभिव्यक्त अंश और उससे अतीत भी जो कुछ है, वह सब मिलकर ही परब्रह्म परमात्मा का समग्र रूप है। पूर्ण ब्रह्म की प्राप्ति के लिये अतएव उनकी नाद-शक्ति का परिचय प्राप्त करना आवश्यक है।

परमात्मा के नाद रूप के साक्षात्कार के लिये किये गये ध्यान के सम्बन्ध में नाद-बिंदूपनिषद् के 33 से 41 वें मंत्रों में बड़ी सूक्ष्म अनुभूतियों का भी विवरण मिलता है। इन मंत्रों में बताया गया है, जब पहले पहल अभ्यास किया जाता है। तो ‘नाद कई तरह का और बड़े जोर-जोर से सुनाई देता है। आरम्भ में इस नाद की ध्वनि नागरी, झरना, भेरी, मेघ और समुद्र की हरहराहट की तरह होती है, बाद में भ्रमर, वीणा, बंसी और किंकिणी की तरह गुँजन पूर्ण और बड़ी मधुर होती है। ध्यान को धीरे-धीरे बढ़ाया जाता है और उससे मानसिक ताप का शमन होना भी बताया गया है। तैत्तिरीयोपनिषद् के तृतीय अनुवाद में ऋषि ने लिखा है- ‘वाणी में शारीरिक और आत्म-विषयक दोनों तरह की उन्नति करने की सामर्थ्य भरी हुई है, जो इस रहस्य को जानता है, वह वाक्-शक्ति पाकर उसके द्वारा अभीष्ट फल प्राप्त करने में समर्थ होता है।’

ओंकार ध्वनि से प्रस्फुटित होने वाला ब्रह्म इतना सशक्त और सर्वशक्तिमान है कि वह सृष्टि के किसी भी कण को स्थिर नहीं होने देता है। समुद्रों को मथ डालने से लेकर भयंकर आँधी-तूफान और ज्वालामुखी पैदा करने तक-परस्पर विचार विनिमय की व्यवस्था से लेकर ग्रह-नक्षत्रों के सूक्ष्म कम्पनों को पकड़ने तक एक सुविस्तृत विज्ञान किसी समय भारतवर्ष में प्रचलित था। नाद-ब्रह्म की उपासना के फलस्वरूप यहाँ के साधक इन्द्रियातीत असीम सुख का रसास्वादन करते थे, यही नहीं उस शक्ति को पाकर वे जहाँ चाहते थे, वहीं मनोवाँछित वस्तुयें पैदा करते थे।

अपने आशीर्वाद से किसी रोगी को अच्छा कर देना, किसी निर्धन को धनवान, अपंग को शारीरिक क्षमता प्रदान कर देना इसी विज्ञान का अंग था। इन सबमें निश्चित विचार प्रणाली द्वारा निखिल ब्रह्मांड की वैसी शक्तियों के सूक्ष्माणू आकर्षित कर उपेक्षित स्थान पर प्रतिरोपित करने से चमत्कार दिखाई देने वाले कार्य सम्भव हो जाते थे। अब विज्ञान ही इन मान्यताओं को प्रमाणित करने में लगा है तो कोई उस विज्ञान को कैसे इनकार कर सकता है।

बहुत कम लोग जानते होंगे कि ऐसी ध्वनि-तरंगें (साउण्ड-वैव्स) जिनको हम सुन नहीं सकते, आज वैज्ञानिक शोध कार्यों एवं व्यवसायिक जगत में क्राँति मचाये दे रही हैं। कर्णातीत ध्वनि इन्फ्रा एवं सुपरसोनिक साउण्ड पर नियंत्रण करके अब चिकित्सा, शल्य, कीट और कीटाणुओं का संहार, धुआँ और कोहरा दूर करना, कपड़े, कम्बल और बहुमूल्य गलीचों को धोकर साफ करना, घड़ी आदि के पुर्जे चमकाना, साफ करना जैसे छोटे-मोटे काम ही नहीं धातुओं को क्षण भर में काट डालना, गला देना, एक दूसरे में जोड़ देना आदि ऐसे काम होने लगे हैं, जिनको बड़ी-बड़ी मशीनें भी काफी समय में कर सकती है।

ध्वनि की इस करामात पर आज सारा संसार आश्चर्य चकित है, लोग समझ नहीं पा रहे कि इतनी सूक्ष्म गतिविधि से इतने भारी कार्य कैसे सम्पन्न हो जाते हैं। विद्युत से भी अधिक तीक्ष्ण और सर्वव्यापी कर्णातीत नाद-शक्ति की वैज्ञानिक बड़ी तत्परतापूर्वक से शोध कर रहे हैं।

कर्णातीत ध्वनि जो साधारणतया कानों से सुनाई नहीं देती है- वह क्या है, थोड़ा इस पर विचार करना आवश्यक है। शब्द या ध्वनि तरंग वस्तुओं के कंपन (वाइब्रेशन्स) से पैदा होती है। यह तरंगें क्रम से और विचारों की चुम्बकीय शक्ति रूप के रूप में गमन करती है। उदाहरणार्थ सितार के तार छेड़ने पर उनमें कंपन पैदा होता है, वह कम्पन लहरों के रूप में हवा में पैदा होते और आगे बढ़ते हैं, जहाँ तक ध्वनि तरंगें प्रखर होती हैं, वहाँ तक वह कानों से सुन ली जाती हैं पर कम्पन की शक्ति जितनी घटती जाती है, उतना ही सुनाई नहीं पड़ती और कई बार तो वह दूसरे शक्तिशाली कम्पनों में खो भी जाती हैं। कम्पित वस्तु से ध्वनि-तरंगें सब दिशाओं में चलती और फैलती हैं, यही कारण है कि जो भी बोला जाता है, उसे उत्तर पूर्व, दक्षिण या पश्चिम किसी भी कोने में बैठा हुआ आदमी सुन लेता है। सुनने की क्रिया कान की झिल्ली से ध्वनि-तरंगें टकराने के कारण होती है। जो वस्तुएं नियत समय में जितना अधिक कम्पन करती हैं, उनकी ध्वनि उतनी ही पैनी-पतली और सीटी की आवाज की तरह होती है।

विद्युत तरंगों में उभारा जाय तो हर ध्वनि की फोटो अलग बनेगी, आज इस आधार पर पुलिस को अपराधियों को पकड़ने में 97 प्रतिशत सफलता मिली है, न्यूयार्क के वैज्ञानिक लारेन्स केर्स्टा ने यह खोज की थी और यह पाया कि मनुष्य चाहे कितना ही बदल कर, छुपकर या आवाज को हल्का और भारी करके बोले ध्वनि तरंगें हर बार एक सी होंगी। वैसे हर व्यक्ति की तरंगों के फोटो अलग-अलग होगे। वैज्ञानिक इन ध्वनि-तरंगों के आधार पर व्यक्ति के गुणों का भी पता लगाने के प्रयास में हैं, यह सफल हो गया तो किसी की आवाज द्वारा ही उसके अच्छे-बुरे चरित्र का पता लगा लिया जाया करेगा।

कानों की ग्रहण शक्ति बहुत स्थूल और थोड़ी हैं। जो ध्वनियाँ एक सेकिण्ड में कुल 20 कम्पन से अधिक और 20 हजार कम्पनों से कम में पैदा होता है, हमारे कान केवल उन्हें ही सुन सकते हैं, यदि कम्पन गति (वैलोसिटी आफ वाइब्रेशन) 20 हजार प्रति सेकिण्ड से अधिक होगी तो हम उसे नहीं सुन सकेंगे। ऐसी ध्वनियाँ ही कर्णातीत कहलाती है। कुत्ते और चमगादड़ इतने से भी अधिक कम्पनों वाली ध्वनियाँ सुन लेते हैं। कुत्ते कई बार कान उठाकर चौकन्ने से होकर कुछ जानने का प्रयास करते दीखते हैं, वह इन सूक्ष्म कम्पनों को पकड़ने का ही प्रयास होता है। वह इससे भी अधिक सूक्ष्म ध्वनि तरंगों को सुन सकता है। चमगादड़ 40,000 प्रति सेकिण्ड कम्पन वाली ध्वनियाँ भी आसानी से सुन लेता है। जो जितनी अधिक सूक्ष्म ध्वनियाँ सुन सकता है, वह दूसरों के मन की बातें भविष्य ज्ञान उतनी ही शीघ्र और स्पष्टता से पकड़ लेता है।

आज के विज्ञान की दृष्टि में भी स्थूल ध्वनि कोई महत्व नहीं रखती, क्योंकि सुन ली जाने वाली ध्वनि (औडिवल साउण्ड) की शक्ति बहु थोड़ी होती है। यदि डेढ़ सौ वर्ष तक निरन्तर ऐसी ध्वनि उत्पन्न की जाय तो उससे केवल एक कप चाय गरम करा लेने जितनी ही शक्ति पैदा होगी। किन्तु श्वास या विचार तरंगों के रूप में शब्द का जो मानसिक स्फोट होता है, वह बड़ा शक्तिशाली होता है, यद्यपि वह ध्वनि सुनाई नहीं देती पर वह इतनी प्रखर होती है कि अपनी एक ही तन्मात्रा से वह परमाणुओं का विखण्डन कर सकती है और उससे उतनी ऊर्जा पैदा कर सकती है, जिससे विश्व के किसी भी भूभाग यहाँ तक कि चन्द्रमा और सूर्य तक में भी क्राँति पैदा कर दी जा सकती है। इस शक्ति को मन्त्र-विज्ञान से जाना जाता है और उसकी ब्रह्म शक्ति या कुण्डलिनी शक्ति के रूप में प्रतिष्ठा की गई है।

एक बार कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के भूगर्भ तत्ववेत्ता डॉ0 गैरी लेन को लाखों वर्ष पूर्व की एक ऐसी हड्डी मिली, जो बहुत खस्ता हालत में थी, उस पर मिट्टी जमी थी। विस्तृत अध्ययन के लिये मिट्टी साफ करना जरूरी था, किन्तु ऐसा करने के लिये यदि कोई चाकू से सहायता ली जाती तो हड्डी टूट-फूट जाती। ऐसी स्थिति में उनका ध्यान ‘कर्णातीत ध्वनि शक्ति की ओर गया। तब से इस दिशा’ में अब तक आश्चर्यजनक उपलब्धियाँ हुई हैं।

कर्णातीत ध्वनि का उत्पादन षट्कोणीय (हैक्सागनल) स्फटिक कणों द्वारा किया जाता है। रुपये की आकार के स्फटिक के टुकड़े को काटकर यंत्रों की सहायता से विद्युत आवेश देकर कम्पन की स्थिति उत्पन्न की जाती है। उससे 10 लाख से लेकर एक हजार करोड़ कम्पन प्रति सेकिण्ड की कर्णातीत ध्वनि तक तैयार कर ली गई है और उससे दूर-दूर तक सन्देश भेजने धातुओं को काटने-छीलने आदि का महत्वपूर्ण कार्य लिया जाता है। फोटो के अत्यन्त सूक्ष्मकारी फिल्मों के ‘इमल्शन विभिन्न प्रकार के रंग बनाने की’ रासायनिक औषधियों का निर्माण और सर्जरी तक का काम इस ध्वनि शक्ति से लिया जाता है।

अभी इस विज्ञान को विकसित हुए कुल 30,40 वर्ष हुये हैं तो भी अनेक अद्भुत सफलताएं मिली हैं।वैज्ञानिक विचार कर रहे हैं कि प्रकृति में जो कुछ हलचल दिखाई दे रही है, क्या वह भी किसी कर्णातीत ध्वनि का ही चमत्कार है, यदि हाँ तो ऐसा ध्वनि प्रसारण एक नियत व्यवस्था के साथ ब्रह्मांड के किसी कौने से हो रहा होगा। वैज्ञानिक उसे जानने और समझने के प्रयत्न में हैं, सम्भव है एक दिन हम जिस नाद-ब्रह्म को ओंकार या ॐ या सोऽहम् के नाम से जानते और ध्यान करते हैं, उसकी अनुभूति के लिये किसी यंत्र का निर्माण हो जाये और सृष्टि के अनेक गूढ़ रहस्यों का पता मनुष्य को चले। ऐसा युग वही होगा जहाँ से भारतीय धर्म और तत्व दर्शन की उत्पत्ति हुई है।


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