उज्ज्वल भविष्य की साक्षी देते कुछ दिव्य कथन

April 1996

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बीसवीं सदी का अंत और इक्कीसवीं सदी का आगमन सन्निकट हैं। न केवल अपने देश के सामने वरन् समूचे विश्व के सामने इन दिनों समस्याओं के अम्बार लगे हुए है। युग संधि की इस विषम वेला में सारी मानव जाति एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहाँ दुरभिसंधियों के कुचक्र में उसके पिस जाने और अपना अस्तित्व गंवा बैठने का खतरा स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है। उज्ज्वल भविष्य की कल्पना तो केवल विचारशील विवेकवान ही कर पाते हैं और सुखद परिणाम सामने आने का अनुमान लगाते हैं। ऐसी स्थिति में जन सामान्य को दिलासा कौन दे? मार्गदर्शन कौन करे? इस तथ्य से उन्हें कौन अवगत कराये कि आने वाला भविष्य कैसा होगा? कारण हर व्यक्ति यह जानना चाहता है कि आने वाला समय कैसा होगा ताकि वह उपलब्धियों की सम्भावना को सार्थक करने में अधिक उत्साहपूर्वक कर्मरत हो सके। अशुभ को टालने के लिए जो कुछ बन पड़ सके, वह उपाय कर सके।

वस्तुतः भविष्य जानने को उत्कण्ठा एक ऐसा कौतुक है जो मनुष्य को अपना ही नहीं अपने मित्र एवं शत्रुओं का भी भविष्य जानने के लिए उकसाती रहती है। उत्कण्ठा की प्रबलता ने ही ज्योतिष विद्या को जन्म दिया है। राशि, लग्न, ग्रहदशा, जन्मकुण्डली, फलित, मुहूर्त आदि विशालकाय ताना-बाना इसी एक आकाँक्षा पर आधारित है कि किसका भविष्य क्या होना है। पर यह विद्या कितना तथ्य-सम्मत है, इस पर प्रश्न चिन्ह लगा है। वैज्ञानिक इस प्रपंच में न पड़कर इसी प्रयोजन की पूर्ति के लिए भूगर्भ का-वायुमण्डल का, प्रकृति प्रवाह का स्वरूप और परिणाम जानने में ले रहते हैं। खगोल पर्यवेक्षण के अनेकानेक उपकरण और आधार विनिर्मित हुए हैं। एक से बढ़कर एक नई डिजाइन के कम्प्यूटर इसी प्रयोजन के लिए बन और प्रयुक्त हो रहे हैं कि भावी परिणामों का अनुमान वर्तमान परिस्थितियों के साथ आकलन करते हुए लगाया जाना सम्भव हो सके। भविष्य को विज्ञान के आधार पर जानने, वर्तमान के अनुसार तथ्यों, प्रमाणों एवं आँकड़ों के आधार पर पूर्वकथन करने की यह विद्या ‘फ्यूचरालॉजी’ कहलाती है। इसमें नृतत्ववेत्ता से लेकर समाज विज्ञानी, पर्यावरण विशेषज्ञ चिकित्सक एवं भौतिकीविद् सभी आ जाते हैं।

विरले ही होते हैं जिन्हें प्रकृति प्रदत्त यह महारत हासिल होती है कि भविष्य के गर्भ में झाँक सकें कि पर्दे के पीछे सूक्ष्म जगत में क्या खिचड़ी पक रही है। प्रस्तुत विभीषिकाओं का समापन एवं उज्ज्वल भविष्य का आगम या सतयुग की वापसी की सम्भावनाओं की स्पष्ट झलक-झलकियां जिन महामानवों, दिव्यदर्शी, भविष्यवक्ताओं ने प्रस्तुत की है उनमें से कुछ प्रमुख हैं-आज से चार सौ वर्ष पूर्व जन्मे फ्रेंच चिकित्सक नोसट्राडेमस, अमेरिका की सुविख्यात महिला जीन डिक्सन फ्राँस के नार्मन परिवार में जन्मे काउण्ट लुई हेमन-जिन्हें ‘कारो’ के नाम से भी जाना जाता है। जर्मनी के प्रख्यात दार्शनिक शाँपेनहावर, इंग्लैण्ड के यार्कशायर में सोलहवीं शताब्दी में जन्मी मदर शिप्टन, भारतीय चिन्तक मनीषी योगिराज अरविन्द एवं स्वामी विवेकानंद, इस्लाम धर्म के विद्वान मनीषी सैद कुत्ब, सुप्रसिद्ध अमेरिकी गुह्यविद् एडगरकेसी, भविष्य विज्ञान विद्या में निष्णात एवं कई ग्रंथों की रचयिता रुथ माँण्टगोमरी ‘फ्यूचर शाक’ जैसी किताबों के रचयिता एल्विनटाफलर, फ्रिटजाँफ काप्रा आदि कुछ ऐसे नाम है जिनने अपने दिव्यदृष्टि अंतःस्फुरणा, अंतःप्रेरणा, गणितीय, गणना, ज्योतिर्विज्ञान एवं अपने विषद अध्ययन-अनुसंधान के आधार पर बीसवीं सदी के अन्तिम चरण एवं इक्कीसवीं सदी के आगमन के विषय में जो कुछ कहा है वह ध्यान देने एवं चिन्तन-मनन के योग्य है। यह इसलिए भी जरूरी है कि ये सभी मनीषीगण इक्कीसवीं सदी का भविष्य उज्ज्वल बताते हुए मानव मात्र को आश्वासन देते हैं कि वर्तमान में जो कुछ भी अवाँछनीय दिखाई पड़ रहा है, वह बदलेगा, ध्वंस का स्थान सृजन लेगा और सर्वत्र सुख-शान्ति एवं स्थिरता का वातावरण बनेगा।

इन मनीषियों के अतिरिक्त एक दूसरा आधार है धर्मग्रंथों में वर्णित कुछ सूत्र संकेत, जिनमें प्रस्तुत विभीषिकाओं के समापन एवं सतयुग की वापसी की संभावनाओं की चर्चा की गयी है। बाइबल, कुरान, पुराण महाभारत आदि ग्रंथों में वर्णित भविष्यवाणियाँ ऐसी हैं जो दिव्य दर्शी महामानवों द्वारा कही व लिखी गयी हैं और अब तक सही निकली इन धर्म ग्रन्थों विभिन्न अंशों का हवाला उपरोक्त मनीषियों ने भी स्थान-स्थान पर दिया है। गूढ़ विवेचन समय-समय पर अन्यान्य व्यक्तियों ने करके जो निष्कर्ष प्रस्तुत किये हैं वे भी यही प्रमाणित करते हैं कि युगपरिवर्तन अवश्यंभावी है और वह यही समय जो एक विश्वव्यापी विचारक्रान्ति के माध्यम से सम्पन्न होगा। यह अवधि इन ग्रंथों के अनुसार बीसवीं शताब्दी के समापन एवं इक्कीसवीं सदी के आगमन की संधिकाल ही है।

चार सौ वर्ष पूर्व 24 दिसम्बर 1503 में सेंट मेरी नामक स्थान में जन्मे फ्रेंच यहूदी नोस्ट्राडेमस अपने समय के असाधारण भविष्यवक्ता थे। इन विशेषताओं को प्राप्त करने के लिए उनने कोई साधना नहीं की थी, पर यह अनुमान उन्हें दैवी अनुग्रह की तरह जन्मजात रूप में मिले थे। वे किसी के पूछने पर कभी-कभी ही उत्तर देते थे, परन्तु जब अपनी मस्ती में आ जाते थे तो कथन के प्रवाह के को रोक नहीं पाते थे और इस प्रकार कहते चले जाते थे कि तात्पर्य समझने पर उनका मित्र परिकर ही उन्हें पागल समझने और कहने लगता था।

नोसट्राडेमेस ने अपने जीवन काल में 2500 भविष्यवाणियाँ की हैं जिनमें से अब तक 800 से ऊपर अक्षरशः सही सिद्ध हो चुकी हैं। उनकी अन्य भविष्यवाणियां सन् 3797 तक की अवधि तक अर्थात् उड़तीसवीं सदी के अंत तक की है। इस भविष्यवक्ता की उन समस्त अनूठी भविष्यवाणियों को ‘सेन्चुरी’ नाम पुस्तक में संकलित किया गया है तथा इन्हें पौराणिक प्रतीकों का रूप दिया गया है। ये भविष्यवाणियाँ ‘रिम्ड क्वाड्रेन’ समूह के साथ 100 भागों में बंटी हुई हैं। प्रत्येक एक सौ के समूह को उनने ‘सेन्चुरी’ की संज्ञा दी। अब तक इस पुस्तक के इतने अधिक अनुवाद हो चुके हैं कि अब यह विश्वभर में लोकप्रियता एवं विश्वसनीयता हासिल कर चुकी है। यह पुस्तक काव्य रूप में चौपदी (चतुष्पदी) की तरह लिखी गयी हैं। उनकी इस हस्तलिखित पुस्तक का आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एरिका नाम की एक शोध छात्रा ने एक पुराने पुस्तकालय से ढूंढ़ निकाला है और पाया है कि उसमें भावी घटनाओं के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है।सन् 1546 तक नोस्ट्राडेमस एक सामान्य चिकित्सक के रूप में ही जाने जाते रहे, पर जब सन् 1547 से उनने व्यापक स्तर पर भविष्यवाणियाँ करना आरम्भ कर दिया और वे अक्षरशः सत्य सिद्ध होने लगीं तो पीछे उनकी ओर लोगों का ध्यान गया। देखा गया कि उनने जो भी कुछ कहा था वह समय आने पर सही होकर रहा। 1 जुलाई 1556 को उनका शिष्य शेविरनी मिलने आया। वार्तालाप के बाद दूसरे दिन फिर से मिलने की आज्ञा माँगी। इस पर उन्होंने उत्तर दिया कि - “कल सवेरा होते-होते तो मैं इस दुनिया को ही छोड़ कर चला जाऊंगा।” कथन नितान्त आश्चर्य-जनक लगता था, क्योंकि उस समय उनका स्वास्थ्य बिलकुल ठीक था। इतनी जल्दी मरने जैसी कोई बात नहीं मालूम पड़ती थी, पर भवितव्यता होकर रही। लोगों ने देखा कि दूसरे दिन सूर्योदय से पूर्व ही वे अपना पार्थिव शरीर त्याग चुके थे।

नोस्ट्रोडेमस ने अपनी उक्त पुस्तक में लिखा है कि आने वाली सदी अर्थात् इक्कीसवीं सदी के आरम्भ होते ही एक विश्वव्यापी नरसंहार के एक समूचे कुचक्र का ही अंत हो जायेगा और मनुष्य में दिव्यता एवं धरती पर स्वर्गोपम वातावरण बनाने वाला समय आयेगा। वस्तुतः उनकी भविष्यवाणियों में विनाश एवं विकास दोनों ही पक्षों को उजागर किया गया है, किन्तु उनके एक नये व्याख्याकार जॉन होम का कहना है कि इस अनूठे भविष्य दृष्टा ने विध्वंस कयामत से बचने एवं सृजन का युग आरंभ होने की दिशा में ही अनेकानेक भविष्यवाणियां की है। उनके अनुसार इस संकट और चुनौती भरे कालखण्ड में एक नई आध्यात्मिक चेतना का उदय होगा जो सदी के अंत तक अपने पूरे चढ़ाव पर आ जायेगी। इस नयी चेतना को यदि विश्वचेतना में रूपांतरित होने दिया गया तो उसके फलस्वरूप हमारे इस सुन्दर ग्रह पर हजारों साल तक शान्ति का राज्य रहेगा। इसमें लोग उषाकाल के अरुणोदय जैसा नवीन उल्लास अनुभव करेंगे। नोस्ट्रोडेमस ने इसे ‘एज आफ ट्रुथ’- अर्थात् ‘सतयुग’ नाम दिया है जिसमें विज्ञान और अध्यात्म एक उच्चस्तरीय समन्वय की स्थिति में होंगे।

भविष्य में घटित होने वाली प्रमुख घटनाओं और विशेषकर भारत के सम्बन्ध में भविष्य कथन करते हुए उनने भारतवासियों के उत्कर्ष और उनके द्वारा विश्व भर में निभाई जाने वाली भूमिका को स्पष्ट किन्तु साँकेतिक भाषा में यों लिखा है-’जिस देश में तीन समुद्रों की सीमाएं मिलती है और जिसका नाम सागर शब्द (हिन्द महासागर) से मिलकर हुआ है, जहाँ गुरुवार को परम पवित्र दिन माना जाता है (शुक्रवार मुसलमानों का, शनिवार मिश्र वासियों का और रविवार ईसाइयों का पवित्र दिन है) वहाँ के लोग विश्वशान्ति की दिशा में असाधारण पुरुषार्थ करेंगे और समस्त विश्व को विनाश के रास्ते से मोड़कर विकास का पथ प्रशस्त करेंगे। विश्व के अनेक जटिल समस्याओं के समाधान में इस देश की महती भूमिका रहेगी। इस देश की संस्कृति को विश्व मान्यता मिलेगी जिसमें रूस प्रथम होगा जो इस संस्कृति के सिद्धान्तों को तथ्य के रूप में अनुरूप बनायेगा और अपनायेगा। साथ ही भारतीय विद्वान भी ऐसा प्रयत्न करेंगे जिससे उनका दर्शन भी साम्यवादी दर्शन को आत्मसात् कर सके।

नोस्ट्राडेमस के अनुसार सन् 1999 के सातवें महीने में भारत एक महाशक्ति के रूप में उभरेगा। उसी समय एक भारतीय नेता-जिसको उनने “ग्रेट चायरेन” के नाम से सम्बोधित किया है, समस्त विश्व पर अपने सत्य, प्रेम, त्याग, करुणा एवं न्यायप्रियता के बल पर विजय प्राप्त करेगा। इक्कीसवीं शताब्दी में भारत ही एक मात्र महाशक्ति होगा और सारे विश्व का मार्गदर्शन करेगा। भविष्यवाणी में उल्लिखित ‘ग्रेट चायरेन’ की व्याख्या करते हुए विद्वानों ने प्रखर प्रज्ञा सम्पन्न उस महान व्यक्तित्व की ओर संकेत किया है जो अगले ही दिनों अपने तीक्ष्ण वैचारिक एवं आध्यात्मिक प्रवाह से समस्त विश्व में एक नयी महाक्रान्ति खड़ी करेगा।

श्रीमती जीन डिक्सन अमेरिका की सबसे अधिक जानी मानी भविष्यवक्ता है। उनने अपनी कृति- “माइ लाइफ एण्ड प्रोफेसीज” में कहा है कि इक्कीसवीं सदी में एक महान व्यक्तित्व उभरेगा और समस्त विश्व में शान्ति की स्थापना करेगा।लोग उसे शान्ति दूत-’पीस मेकर’ कहेंगे। आधुनिक समय में फैले युद्ध की मनःस्थिति को वह भाई चारे में बदल देगा। समूचे राष्ट्र उस पर विश्वास करेंगे और इस तरह वह शान्ति के विस्तार के माध्यम से विश्वविजेता बनेगा। भविष्यवक्ता की ने अपनी पुस्तक “वर्ल्ड प्रीडिक्शन्स” में भारतवर्ष को ही धार्मिक नैतिक एवं साँस्कृतिक चेतना के अभ्युदय का केन्द्र बिन्दु माना है। निश्चय ही ईसा से पूर्व जिस स्वर्णिम युग की कल्पना की गयी थी, वह अब अगली शताब्दी में साकार होने जा रही है।


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