हम इसी समय उसे अपने सामने देखना चाहते हैं। अब्दाली के स्वरों में पर्याप्त कठोरता थी। उसकी आँखों में एक शैतानी चमक तैर रही थी। पानीपत की लड़ाई में मराठे हार चुके थे। मराठों का सरदार इब्राहिम गार्दी अन्त तक लड़ता रहा और घायल हो जाने के कारण पकड़ लिया गया था। इस समय वह शुजाउद्दौला की छावनी में बन्दी था, जो अहमदशाह की छावनी के आधीन ही थी। शुजा घायल का वध नहीं करना चाहता था, लेकिन अब्दाली को इब्राहिम के नाम से घृणा थी। उसे उसके पकड़े जाने का समाचार मिल गया। इसीलिए उसने इब्राहिम को अपने सामने पेश किए जाने के लिए एक सिपहसालार को शुजा के पास भेजा।
शुजाउद्दास्ला ने इब्राहिम की घायल स्थिति बयान की और अनुरोध किया कि अच्छा हो जाने पर उसे पेश कर दिया जाएगा। पर सिपहसालार ने जब अपने शाह का हठ प्रकट किया तो शुजा का प्रतिवाद क्षीण पड़ गया। हारकर उसे इब्राहिम गार्दी को सौंपना पड़ा।
थोड़ी ही देर में इब्राहीमगार्दी अहमदशाह के सामने था। अहमदशाह ने भेड़िए जैसे खूँखार अन्दाज में सवाल किया ‘तुम मराठों के दस हजार सिपाहियों के सलार थे।’ उसने उत्तर दिया ‘जरूर था।’
‘पहले तुम फ्राँसीसियों के यहाँ नौकर थे?’
‘ठीक सुना है।’
‘फिर निजाम हैदराबाद के यहाँ नौकरी की?’
‘सही है।’
‘उसे नौकरी को छोड़ा किसलिए?’
‘क्योंकि निजाम के रवैये मेरे उसूल के खिलाफ थे।’ तुम्हारे उसूल, अहमदशाह गुर्राया और फिर तीखी नजरों से गार्दी की ओर देखता हुआ बोला मुसलमान होकर फिरंगी जुबान पढ़ी, फिर मराठों की नौकरी की। खैर, अब तक तुमने जो कुछ भी किया, उस पर तुमको तोबा करनी चाहिए। हम तुम्हारी खताओं को माफ कर सकते हैं।
घाव की परवाह न करते हुए इब्राहीम बोला, तोबा, किसके लिए अफगान शाह। आपके देश में अपने मुल्क से मुहब्बत करने के लिए, और उस पर जान कुरबान करने के लिए क्या तोबा करनी पड़ती है?
किससे बातें कर रहे हो, इसका कुछ अन्दाज है? अहमदशाह फिर गरजा।
जानता हूँ और यकीन से जानता हूँ, आप लुटेरे हैं, यकीनन खुदा के फरिश्ते नहीं।
मैं इतनी बड़ी फतह हासिल करके गुस्सा नहीं करना चाहता। तुम पर ताज्जुब होता कि मुसलमान होकर तुमने जिन्दगी को इस तरह बरबाद किया।
तब शायद आपको मालूम नहीं कि मुसलमान किसको कहते हैं। जो अपने मुल्क के साथ घात करे, बेगुनाहों का खून बहाने वालों का साथ दे, वह मुसलमान नहीं।
मुझको मालुम है कि तुम फिरंगियों के शागिर्द हो। उन्हीं से तुमने यह सब सीखा है। क्यों, कभी तुम नमाज पढ़ते हो?
क्यों नहीं, पाँचों वक्त।
अब्दाली के चेहरे पर व्यंग भरी मुस्कान आयी और आँखों में वही शैतानी क्रूरता। बाबेला, फिरंगी या हिन्दुस्तानी जुबान में पढ़ते हो, खुदा को राम कहते होंगे।
अपने घावों की असहनीय पीड़ा को दबाते हुए गार्दी बोला, खुदा उर्दू फारसी, अरबी जुबान ही समझता है? उसे अंग्रेजी, फ्राँसीसी या मराठी नहीं आती? क्या खुदा राम नहीं और क्या राम खुदा नहीं है?
अब्दाली की नाक में नासूर था। उसमें से फुफकार निकल पड़ी। वह बौखलाया हुआ बोल पड़ा क्या कुफ्र बकता है। तोबा करो, नहीं तो तुम्हारे जिस्म के हजारों टुकड़े कर दिए जाएंगे।
‘जिस्म के टुकड़े होने पर भी तुम मेरी आत्मा को
छू भी न सकोगे।’ इब्राहिम ने मजबूती से कहा।
घायल इब्राहिम के ठण्डे स्वर से एक क्षण के लिए अहमदशाह कुछ नरम पड़ा और कहने लगा, ‘अच्छा हम तुमको तोबा करने के लिए वक्त देते हैं। तुम तोबा कर लो हम तुमको छोड़ देंगे। अपनी फौज में तुम्हें अच्छा ओहदा देंगे।’
कराह में दबाये हुए इब्राहिम के ओठों पर एक रीनी-झीनी हंसी आ गयी। वह अहमदशाह के इस नाटक को खत्म करना चाहता था।
उसने कहा, ‘अगर छूट जाऊँ तो फिर से पलटनें तैयार करूं। और तुम जैसे हैवानों को अपने मुल्क से खदेड़ कर बाहर कर दूँ।’
बद जुबान! अहमदशाह तड़प कर बोला अभी भी तोबा कर ले। जहाँ के तहाँ पड़े हुए इब्राहिम ने कहा, इनसानियत के लिए शहीद होने वाले कहीं तोबा करते हैं। तोबा करें वे लोग जो निहत्थों, घायलों मासूम बच्चों महिलाओं का कत्ल करते हैं। अब्दाली से रहा नहीं गया। उसने इब्राहिम के टुकड़े-टुकड़े करके वध करने की आज्ञा दी।
एक अंग कटने पर ‘इब्राहीमगार्दी की चीख में से निकला, इनसानियत के लिए मेरी पहली नियाज।’ दूसरे पर क्षीण स्वर में बोला, ए खुदा, हिन्दुस्तान की मिट्टी में ऐसे शूरमा पैदा करना, जो हैवानों व जालिमों को मिटा देने के लिए अपने को कुर्बान कर दें, फिर आखिर में मराठों के ब्रिगेडियर जनरल इब्राहीमगार्दी के मुख से एक जव्ज निकला ‘अल्लाह’ जिसको सुनकर आसमानी फरिश्तों और धरती के इतिहासकारों ने एक साथ कह। ‘वह सच्चा इनसान था।’