समस्याएँ-चारों ओर समस्याएँ यही आज के समाज का परिचय है। हर नए समाधान की कोशिश उसके औचित्य एवं अस्तित्व पर सैकड़ों सवाल उछाल देती है। जीवन के हर क्षेत्र में दुनिया के हर कोने में हर कोई अपने को विवश-अवश अनुभव कर रहा है। लगता है कोई बुनियादी भूल हो गई। कुछ ऐसा छूट गया जो जिंदगी का सारभूत तत्त्व है। मनीषी बी.डोनाल्ड ग्रे अपनी रचना ‘वन एण्ड मैनी’ में बताते हैं कि यह तत्त्व नैतिकता है। जिसकी हम उपेक्षा कर बैठें हैं। उनके अनुसार कोई भी समाज या राष्ट्र व्यक्तियों की नैतिक शक्ति पर ही पनपता है। इस शक्ति का ह्रास होते ही समस्याओं के रोगाणु समाज को जर्जर बनाने लगते हैं।
आज दुनिया में चारों ओर नैतिक शक्ति की गिरावट का स्पष्ट दर्शन होता है। कहीं भी किसी देश के नेतृत्व में यदि सर्वव्यापी चिन्ता का कोई विषय है तो वह है आज की सर्वव्यापी नैतिक गिरावट। जीवन के समस्त क्षेत्रों में चाहे वह राजनैतिक हो, सामाजिक हो, आर्थिक हो, सबमें नैतिक स्तर गिरा हुआ है। इसका मतलब यह नहीं है कि दुनिया का हर आदमी अनैतिक है। आज भी हर देश में ऐसे व्यक्ति है जिनकी नीति परायणता ऊँचे दर्जे की है लेकिन ऐसे लोग भी हैं जिनमें नीति-मर्यादा नाम की कोई चीज नहीं और ऐसों की संख्या ज्यादा है। चूँकि बहुजन की स्थिति पर ही समाज की स्थिति निर्भर रहती है और इसलिए आज समूचा समाज जराजीर्ण दिखाई देता है। ऐसी दशा में यदि सभ्य समाज का नवनिर्माण करना है तो उसमें नैतिक बल जगाना होगा।
लेकिन यह नैतिक शक्ति है क्या? इसका विश्लेषण करते हुए प्रख्यात चिन्तक एच.डी.लेविस फिलॉसफी ऑफ रिलीजन” में कहते हैं-विश्व में जीवन निर्माण के साथ जीवित रहने की भावना का निर्माण हुआ। पशु-पक्षियों में यह भावना जीवन व्यापी है। मानव के जीवन में इस भावना शक्ति के साथ विचार शक्ति ने जन्म लिया। मानव की बाल्यावस्था भावनामय अवस्था है। इसके बाद विचार शक्ति का उन्नत स्वरूप विवेक शक्ति है। मनुष्य में विवेक शक्ति जितनी बलवान होगी उतना ही उसका नैतिक स्तर ऊँचा और प्रभावशाली होगा।
विवेक मानव जीवन की निर्णयात्मक सर्वश्रेष्ठ शक्ति है। कौन-सा कार्य उचित है और कौन-सा अनुचित इसका निर्णय यही विवेक शक्ति करती है। यह शक्ति लौट लौटकर अपने विचारों से टकराती है और यदि विचार निम्न श्रेणी के हो तो विवेक न्याय-अन्याय का दर्शन करते हुए भी निर्बल रह जाता है और मनुष्य अन्याय मार्ग से कार्य करता है। उदाहरण के लिए इनसान कई तरह के व्यसनों में फँस जाता है। विवेक कहता है कि व्यसन खराब है हानिकारक है। पर व्यसन शक्ति बलवान रहती है। फलतः मनुष्य व्यसनों को त्याग नहीं सकता। दुनिया की किसी वस्तु को अनाधिकार ले लेना, यह अनुचित विचार है। विवेक कहता है कि यह अनुचित कार्य है पर उसकी आवाज निर्बल रहती है और मनुष्य अन्याय को जानते हुए भी जीवन में उसका अवलम्बन करता है। अतएव मनुष्य की विवेक शक्ति जितनी प्रभावी होगी, उतना ही उसका नैतिक बल प्रभावी होगा। अतः समाज के स्वस्थ नवनिर्माण के लिए सबसे पहले इस बात की आवश्यकता है कि मनुष्य की विवेक बुद्धि इतनी बलवान और जाग्रत हो कि वह अनुचित कार्य के मोह में न फँसे और जो न्याय दिखाई दे उसी मार्ग पर जीवन के निश्चय के साथ अग्रसर कर सके।
नैतिक शक्ति का मूल स्रोत यद्यपि मानव की अन्तस्थ विवेक शक्ति में है, पर यह अन्तस्थ शक्ति बाह्य स्थिति से प्रभावित हुआ करती है और बाह्य शक्तियाँ इस अन्तस्थ शक्ति को अपने अनुरूप ढालने का प्रयत्न किया करती है। ये बाह्य शक्तियाँ हैं। मानव समाज की सामयिक स्थिति और व्यवस्था।
समस्त मानव समाज का यदि अवलोकन किया जाय तो वहाँ नैतिकता मानव मात्र में किसी न किसी रूप में विद्यमान् दिखाई देगी। इस दृष्टि से इसको मानव समाज की सर्वश्रेष्ठ शक्ति कहा जा सकता है और इसकी बुनियाद पर ही नव मानव का एवं नए युग का निर्माण होना सम्भव हो सकता है। नैतिकता यदि विवेक पर आधारित हो विश्वव्यापी बनेगी तो वह आत्म शक्ति प्रेरित नैतिकता होगी। इसमें निर्भयता रहेगी। वहाँ आत्म प्रेरणा का स्रोत रहेगा और मानव को अपनी जीवनी शक्ति का एक नया अनुभव आयेगा। आज इस प्रकार की विश्वव्यापी नैतिकता की माँग संसार में बढ़ रही है और यद्यपि सब जगह राज सत्ता एवं संकुचित धर्म सत्ता की प्रबलता दिखाई देती है। पर इसमें कोई सन्देह नहीं कि आने वाला युग नैतिकता एवं विज्ञान शक्ति के समन्वय का युग होगा।
मनीषी विलियम रोज के ग्रंथ “एन आउट लाइन ऑफ माडर्न नॉलेज” के विचारों का उल्लेख करे तो नैतिकता के क्षेत्र में दो बातों का स्पष्ट दर्शन होना चाहिए (1) अपने मानवीय अधिकारों की रक्षण सामर्थ्य (2) हर कार्य में निर्भयता की वृत्ति। समाज में व्यक्ति के सुखों का और सामाजिक सुखों का समन्वय आवश्यक है। भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के बल व सुख भिन्न-भिन्न होते हैं और जिनके पास अधिक शक्ति है वे निर्बलों का शोषण करते हैं। निर्बल व्यक्ति शोषण को सहन करता है और जीवित रहता है। यह मानसिक अवस्था नीति युक्त नहीं। नीति का दर्शन वहाँ होगा, जहाँ व्यक्ति अपने सिद्धान्तों एवं अधिकारों की रक्षा करने में समर्थ होगा। और उसके लिए अपनी सारी शक्ति लगा देगा। यहाँ तक कि जीवन समर्पण तक के लिए तत्पर रहेगा, तभी नैतिकता का सही अवलम्बन व्यक्ति के जीवन में दिखाई देगा।
इतना ही नहीं इसके अंतर्गत अपनी अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ दूसरों के अधिकारों को रक्षा का भी समावेश होता है। शक्तिशाली व्यक्ति अपने अधिकारों की रक्षा तो करता है पर वह निर्बलों का शोषण करके उनके अधिकारों पर आक्रमण करता है। सभ्य नीतिवान व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता। अपने अधिकारों की रक्षा और अन्यों के अधिकारों का आदर उसका जीवन लक्ष्य रहेगा। इस लक्ष्य से ही व्यक्ति और समाज के सुखों का समन्वय होकर शान्तिमय कल्याण ब्रह्म समाज व्यवस्था स्थापित होगी।
नैतिकता का दूसरा लक्षण है, निर्भयता। धर्म और राज्यसत्ता से प्रभावित नैतिकता भय प्रेरित हुआ करती है। किन्तु स्वप्रेरित नैतिकता पूर्णतया निर्भय होती है। इसी ही स्थाई और सच्चे होने की संज्ञा दी जा सकती है। भययुक्त नैतिकता की आड़ में मनुष्य छिपकर अनुचित कार्य करने वाला व्यक्ति असत्य का आश्रय लेता है और जब सारा समाज असत्य की बुनियाद पर नीतिवान बनने का दावा करता है तब अनीति सर्वव्यापी बस जाती है और समाज निःस्वत्व बन जाता है।
स्वप्रेरित नीतिवान व्यक्ति प्रथमतः अनुचित कार्य करेगा ही नहीं। पर किसी भी स्थिति में कर भी डाले तो उसे निर्भयता से स्वीकार कर लेता है। ऐसा करना यद्यपि समाज की दृष्टि से उचित भले न हो पर नीति की दृष्टि से अनुचित न होगा। कोई व्यक्ति भावनावश या अन्याय के प्रतिकार में किसी का खून कर डालता है पर उसकी विवेक शक्ति इतनी बलवान होती है कि वह थाने में जाकर अपने अपराध को स्वीकार करता है। शासन और धर्म के नाते भले ही उसका कार्य अनुचित हो। परन्तु यदि वह निर्भयता से स्वीकार करता है तो व्यक्ति नीतिवान ही कहा जायेगा।
विख्यात चिन्तक टेलीहार्ड द वार्डिन के ग्रंथ एक्टीवेषल ऑफ एनर्जी की भाषा में कहें तो निर्भयता का दर्शन मानव जीवन की आकांक्षाओं की पूर्ति में भी होता है और कार्य की सफलता के लिए उचित साधनों के प्रयोग में भी नैतिकता के क्षेत्र में साध्य की अपेक्षा साधनों की शुचिता का अधिक महत्त्व होता है। नीतिवान व्यक्ति किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए अनुचित साधन का उपयोग नहीं करता है। ऐसी हालत में उसे निर्भय वृत्ति का परिचय देना ही पड़ता है। अनुचित साधनों का प्रयोग निर्भयता के साथ प्रायः नहीं किया जाता। अतः निर्भयता जीवन के कार्य क्षेत्र में बहुत बड़ी शक्ति है और वह शक्ति व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में नीतिमय बनाए रखने में सहायक होती है।
मानव जीवन में अनेक गुणात्मक शक्तियाँ होती हैं। इन सारी शक्तियों की जड़ भी निर्भयता में है। जिस व्यक्ति के जीवन में भय है वह दृढ़तापूर्वक सदा सत्य का पालन नहीं करत सकता, न वह अहिंसा का उपासक हो सकता है और न क्रोध को ही वश में रख सकता है।
सन्मार्ग के अवलम्बन के लिए अनेक गुणों के समन्वय की आवश्यकता है। जीवन की पवित्रता और जीवन की श्रेष्ठता सन्मार्ग पर अवलम्बित है। व्यक्ति और समाज दोनों की महानता व्यक्ति के गुण समन्वय पर आधारित है। सारे सद्गुणों की शान्ति का स्रोत नैतिकता है। नैतिकता में से ही अनेक गुणों का प्रवाह स्रावित होता है, तो जीवन सरिता की सर्वत्र समस्या रहित बनाए रखता है। समाज को आज सर्वाधिक आवश्यकता जीवन के सर्वव्यापी क्षेत्र में नैतिक जीवन का अवलम्बन जन-जन द्वारा उसका दृढ़तापूर्वक पालन है। इसी में व्यक्ति और समाज दोनों ही समस्याओं के नागपाश से पूरी तरह छुटकारा पा सकते हैं।