तुमको कोटि प्रणाम (Kavita)

July 1995

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तुमको कोटि प्रणाम, गुरुवर! तुमको कोटि प्रणाम॥

इस जग ने तुम ही से पायी है मति-गति अभिराम गुरुवर! तुमको कोटि प्रणाम॥

छँटे कालिमाओं के बादल, मिटा क्लेश का, कलुषों का दल, मन के उपवन में लहराये, विह्वल भाव के दूर्वादल, तुमसे ही अनुकम्पित होकर धन्य हुआ यह धाम, गुरुवर! तुमको कोटि प्रणाम॥

सब अपनी-अपनी बोली में-विहंग-वृन्द अपनी टोली में, पालक परमेश्वर के सम्मुख, बालक अपनी हमजोली में, करते हैं गुण-गान तुम्हारा, निशिदिन आठों काम, गुरुवर! तुमको कोटि प्रणाम॥

तोड़ जगत के सारे बन्धन, तप से पूत किया है तन-मन-मानवता की सेवाओं में, किया समर्पित सारा जीवन, प्राप्त परम पद करके भी है, तुम्हें कहाँ विश्राम, गुरुवर! तुमको कोटि प्रणाम॥

पर हित जीने की शिक्षा दी, वासन्ती आभा बिखरा दी, मोद बाँटने को कल्याणी, गायत्री घर-घर पहुँचा दी,

विश्व बन्धुता के चिन्तन की, धारा दी अविराम, गुरुवर! तुमको कोटि प्रणाम॥

निष्ठुरता को दूर भगाये, संवेदनशीलता जगायें, ऐसी हो प्रेरणा पूज्यवर, सब दुखियों को गले लगायें, बने भगीरथ शिष्य आपके, हों संकल्प सकाम, गुरुवर! तुमको कोटि प्रणाम॥

- देवेन्द्र कुमार देव


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