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October 1982

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अगला युग-साधना अंक, अंतःक्षेत्र की श्रद्धा, प्रज्ञा, निष्ठापरक भाव-संवेदना का कार्य ‘मनीषा' द्वारा संपन्न होता है। उस महान भांडागार की देव-दानव जैसी अद्भुत शक्तियों की उपलब्धि उद्भव-साधना की प्रखर ऊर्जा द्वारा संभव होती है। भक्ति और शक्ति के समन्वय से ही अध्यात्म की समग्रता बनती है।

इस अंक में युगमनीषा को संबोधित किया गया है। अगले अंकों में युग-साधना से संबंधित रहस्यों की अनावरण विज्ञ पाठक देखेंगे और एक अभिनव, किंतु अतिपुरातन शक्ति-स्रोत का परिचय प्राप्त करेंगे। अगले मास की प्रतीक्षा करें।


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