धर्म यो बाधते धर्मो न स धर्मः कुधर्म कः।
अविरोधात्तु यो धर्मः स धर्मः सत्यविक्रमः।।
— महाभारते वनपर्वणि 131।11
जो धर्म दूसरे धर्मों का विरोधी हो, वह वास्तविक धर्म नहीं है। जिसका किसी से विरोध नहीं होता, वही वास्तविक धर्म कहलाता है।