सद्वाक्य

October 1982

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धर्म यो बाधते धर्मो न स धर्मः कुधर्म कः।

अविरोधात्तु यो धर्मः स धर्मः सत्यविक्रमः।।

— महाभारते वनपर्वणि 131।11

जो धर्म दूसरे धर्मों का विरोधी हो, वह वास्तविक धर्म नहीं है। जिसका किसी से विरोध नहीं होता, वही वास्तविक धर्म कहलाता है।


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