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November 1982

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स्वयं भ्रमति संसारे स्वयं तस्माद्विंमुच्यते-चाणक्य

जीव आप ही कर्म करता आप ही फल भोगता है, आप ही संसार में भ्रमता, आप ही उससे मुक्त होता है।


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