सरलता मनुष्य का गौरव

June 1981

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सरलता एक ऐसा गुण है कि व्यक्ति में कोई और गुण हो अथवा नहीं हो, केवल वह सरल चित्त ही हो, तो उसमें अन्य गुण उसी प्रकार विकसित होने लगते हैं जिस प्रकार कि वर्षा ऋतु में पेड़-पौधे बिना सिंचाई के ही बढ़ने और फलने-फूलने लगते हैं। सरल चित्त व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को सभी अहंकारों, अभिमानों और गर्व गरूरों से मुक्तकर उसे एक स्वच्छ शीतल भवन की तरह बनाने लगता है, जिसमें सभी दिशाओं से पवित्रता की सुगन्धि आती है और वहाँ के वातावरण को सुरभित कर जाती है। सरलता का निश्छलता से यही आशय है कि व्यक्ति अपने पद, प्रतिष्ठा और वैभव का अहंकार न करे तथा स्वयं को एक साधारण मनुष्य मानकर जीवन व्यतीत करे। आखिर कोई व्यक्ति मनुष्य के अतिरिक्त और होता भी क्या है?

पोपपाल ने गिरजा घर बनवाने की योजना तैयार की और उसे कार्य रूप में परिणित करने का उत्तरदायित्व सौंपा इटली के महान शिल्पकार माइकेल एंजेलो को। एंजेलो के नाम की उन दिनों इटली भर में धूम थी। एक दिन वे गिरजाघर से काम कर के लौट रहे थे। शाम का समय हो चुका था और घर जल्दी पहुँचने के लिए उनके कदम भी जल्दी-जल्दी उठने लगे थे। रास्ते में उन्होंने एक बच्चे को राह रोककर खड़ा हुआ देखा। उसने कहा, ‘यदि आप जल्दी में न हों तो मैं एक निवेदन करूं?’

एंजेलो ने बड़े ही स्नेह के साथ उसे अपनी बात कहने के लिए कहा, तो वह लड़का बोला, ‘सुना है आप बहुत बड़े कलाकार हैं। अतः मेरी इस कापी पर देवदूत का एक अच्छा चित्र बना दीजिए।’

एंजेलो थके हुए थे और उन्हें अपनी ख्याति का भी भान था। चाहते तो उस बच्चे को वहीं टरका कर घर जा सकते थे, परन्तु उन्होंने बच्चे का मन तोड़ना उचित नहीं समझा और वह महान कलाकार बच्चे द्वारा दी गई कापी तथा पेंसिल लेकर बैठ गया तथा बड़े मनोयोग से देवदूत का चित्र बनाने लगा। चित्र जब बनकर तैयार हो गया तो उसे बच्चे को देते हुए एंजेलो ने पूछा, ‘‘कहो! मेरे दोस्त चित्र पसंद आया?”

बहुत अच्छा है, ‘कहकर उस बालक ने एंजेलो का मुँह चूम लिया। एंजेलो उसी सहज भाव से वापस अपने रास्ते पर चल दिए। ऐसी सरलता कम ही लोगों में देखने को मिलती है। जिन लोगों को भी थोड़ी बहुत प्रसिद्धि या प्रतिष्ठा मिल जाती है वे अपने आपको किसी दूसरे ही लोक का आदमी या देवदूत समझने लगते हैं। जबकि योग्यता और प्रतिभा अपने साथ सरलता, सहजता के गुण नैसर्गिक रूप से साथ लेकर आती है।

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद उन दिनों काँग्रेस अध्यक्ष थे। स्वतन्त्रता आँदोलन उस समय गति पकड़ चुका था और यह वे दिन थे जब काँग्रेस अध्यक्ष की प्रतिष्ठा वायसराय से कम नहीं होती थी। घटना सन् 1935 की है। राजेन्द्र बाबू वर्षा की फुहारों में भीगते हुए ‘लीडर’ अखबार के कार्यालय में पहुँचे और चपरासी को अपना कार्ड दिया। सम्पादक सी. आई. चिंतामणि उस समय कुछ लिखने में व्यस्त थे। चपरासी ने वह कार्ड चुपचाप उनकी मेज पर रख दिया और बाहर आकर सीधे-सादे ग्रामीण से दिखने वाले राजेन्द्र बाबू से इंतजार करने के लिए कह दिया।

राजेन्द्र बाबू ने देखा कि पास ही कुछ चपरासी आग ताप रहे थे। वे स्वयं भी वर्षा में भीग चुके थे, उन्होंने सोचा क्यों न समय का सदुपयोग कर लिया जाय और पानी में भीगे कपड़ों को सुखाकर ठण्ड भगा ली जाय। यह सोचकर वे चुपचाप आग के पास जा बैठ गए। भीतर चिंतामणि जी ने जब अपना लेख पूरा कर लिया तो मेज पर पड़े कार्ड को देखा। कार्ड देखते ही वे चौंके। उन्होंने तुरन्त घण्टी बजाई और चपरासी को भीतर बुलाकर पूछा कि ‘यह कार्ड देने वाले सज्जन कहाँ हैं?’

चपरासी ने उन्हें बताया कि वे बाहर ही इंतजार कर रहे हैं। चिंतामणिजी अपनी कुर्सी छोड़कर भागे दौड़े। आसपास देखा तो कहीं भी राजेन्द्र बाबू का पता नहीं था। एक बार सब ओर ध्यान से निगाह दौड़ाने पर उन्होंने बाबूजी को चपरासियों के बीच बैठा देख लिया। वे बड़े मजे से वहाँ गप्पें लड़ा रहे थे और कपड़े भी सुखा रहे थे। चिंतामणिजी वही दौड़े आये बोले, “आपको व्यर्थ कष्ट हुआ। चपरासी आपको शायद पहचानता नहीं है। नया-नया ही आया है। आपने अपना परिचय क्यों नहीं दिया?’’

इसके लिए चिंतामणिजी जब राजेन्द्र बाबू से क्षमा माँगने लगे तो उन्होंने ऐसे कहा जैसे कुछ हुआ ही न हो, ‘कपड़े सुखाना भी तो जरूरी काम था। इतनी देर में यह काम निबट गया। आप व्यर्थ ही परेशान हो रहे हैं।’

साधारण बातों पर ध्यान न देना, उन्हें अनावश्यक महत्व न देना तथा अनजाने में हुई भूलों या त्रुटियों से क्षुब्ध अथवा आवेशग्रस्त न होना भी सरलता का एक रूप है। सरलता को भली प्रकार अपने स्वभाव में सम्मिलित करने वाले व्यक्ति अपनी शक्तियों का सही उपयोग कर पाते हैं और दूसरों की गलती से होने वाली हानि को भी व्यर्थ महत्व नहीं देते। एक बार चीन के भूतपूर्व राष्ट्रपति डा. सनयात सेन ने रात भर जागकर किसी आवश्यक मसविदे का प्रारूप तैयार कराया। उनकी तथा उनके सहयोगी की पूरी रात आंखों में कटी तब कहीं जाकर काम पूरा हो सका। प्रारूप तैयार हो जाने के बाद ही डा. सेन करीब रात को चार बजे के लगभग सोने के लिए गए। उनके जाने के बाद सहायक की जरा-सी असावधानी के कारण मेज पर रखा लैंप लुढ़क गया और घंटों की कराई मेहनत पर पानी फिर गया। कागजों में आग लग गई थी और इतनी देर तक किया हुआ परिश्रम बेकार चला गया था।

बेचारे सहायक की तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। भय के कारण वह काँपने लगा और जब डा. सेन सोकर उठे तो घटना सुनाते-सुनाते उसकी आंखों से आँसू बह निकले। इस नुकसान से उन्हें दुःख तो बहुत हुआ परन्तु वे जानते थे कि दुःखी होने से क्या बनेगा? इसलिए वे अपने सहायक से बहुत ही शान्त, सहज और मधुर स्वर में बोले, ‘‘कोई बात नहीं। तुम भी थके हुए थे, ऐसे में असावधानी हो जाना स्वाभाविक है। चलो कागज निकालो और हम तुम दोनों बैठकर फिर से प्रारूप तैयार कर लेते हैं। इसमें घबराने की क्या बात है।” इतना कह कर डा. सेन पुनः अपने सहायक को साथ लेकर काम करने की टेबल पर बैठ गए।

नयी प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने के लिए सरल और सहृदय व्यक्ति स्वयमेव अपने को पृष्ठभूमि में कर लेते हैं और नये लोगों को बढ़ावा देते हैं। उन्हें यह गुमान नहीं होता कि हम बड़े, वरिष्ठ और अनुभवी हैं इसलिए हमें प्राथमिकता मिलनी चाहिए। बल्कि वे अपने सरल स्वभाव से प्रेरित होकर इस दृष्टि से सोचते हैं कि नये व्यक्तियों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए।

इंग्लैण्ड की प्रसिद्ध कला संबंधी संस्था रॉयल अकादमी ने एक प्रदर्शनी का आयोजन किया। इसके लिए चित्र छाँटकर लगाये जाने लगे। सब चित्रों को यथास्थान लगा देने के बाद किसी नये कलाकार का बनाया एक चित्र बचा रहा। इस चित्र को कमेटी के सदस्यों ने पसंद तो कर लिया था, पर समस्या यह थी कि उसे लगाया कहाँ जाय क्योंकि सब स्थान भर चुके थे और चित्र लगाने के लिए कोई स्थान खाली नहीं था। विवश होकर सदस्य इस चित्र को अस्वीकृत करने ही वाले थे कि सुप्रसिद्ध चित्रकार टर्नर ने उठकर कहा, ‘मैं अपने एक चित्र को हटा कर इस चित्र को स्थान देने के लिए तैयार हूँ।’ और उन्होंने चित्र हटा लिया।

सदस्यों ने कहा कि आपके किसी भी चित्र से यह चित्र बढ़िया नहीं है, परन्तु टर्नर यही कहते रहे कि नये लोगों को स्थान अवश्य मिलना चाहिए ताकि वे प्रोत्साहन पा सकें और आगे चलकर कला की तन्मयता व निष्ठा के साथ सेवा कर सकें।

सरलता का सीधा-सा अर्थ है- निरभिमानिता। अपने कुछ होने का अहंकार ही व्यक्ति को उसके गौरव से वंचित करता है तथा अपने आपकी दृष्टि में स्वयं को पदच्युत करता है। और कुछ नहीं केवल जीवन में सरलता का ही समावेश कर लिया जाय तो उसके पीछे अनेकों गुण अपने आप चले आते हैं।


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