व्यंग्य जो वरदान बना

June 1981

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फूँस की झोपड़ियों के बीच बनी आलीशान कोठी में रहता था गाँव का जमींदार। उस कोठी में कदाचित किसी नीग्रो परिवार को सेवा टहल या चाकरी का अवसर मिल जाता तो उसे वे अपना सौभाग्य समझते थे। यद्यपि अन्तरंग कक्षों में इन चाकरों का प्रवेश वर्जित था, फिर कोठी के जिन भागों में चाकर नीग्रो प्रवेश करते थे और वहाँ के बारे में अपने अन्य साथियों को बताते थे तो साथियों के मन में ईर्ष्या होने लगती थी।

उस जमींदार का नाम था विल्सन। विल्सन परिवार के कपड़े धोने और कोठी की सफाई करने का काम पैट्सी नामक एक नीग्रो महिला के जिम्मे था। वह जब अपने काम में लगी रहती थी तो बच्चो को कोठी के बाहर ही छोड़ दिया करती थी। वे छोटे-छोटे बच्चे बाहर ही खेला करते थे और कभी-कभी कोठी की ओर निहारते हुए उसके अंदर की कल्पनाएं करते रहते थे। एक बार ही घटना है पैट्सी अपने काम से निबटने के बाद कोठी के रास्ते से अन्दर गई। उसके साथ उसकी बेटी ‘मेरी जीना’ भी थी। मेरी ने जब अपनी माँ को अन्दर जाते देखा तो स्वाभाविक ही उसके मन में भी भीतर जाने की इच्छा हुई।

पैट्सी ने जब देखा कि मेरी भी उसके पीछे अन्दर आ रही है तो वह डपटकर बोली- ‘बाहर ही रह, साहब नाराज होंगे।’

बेचारी मेरी ठिठक कर खड़ी रह गई।

उसने देखा कि माँ अन्दर चली गई है और नजरों से ओझल हो गई है तो वह धीरे से खिसकी और दरवाजे के पास जाकर खड़ी हो अन्दर झाँकने लगी।

उसे सामने वाले कमरे में सुनहरी बालों वाली दो गोरी लड़कियां खेलती दिखाई दीं। मेरी के दरवाजे पर आने और अन्दर झाँकने के कारण हुई आहट से उन लड़कियों का ध्यान भी आकृष्ट हुआ। उन लड़कियों में से एक ने पूछा- ‘हमारे साथ खेलोगी?’

मेरी को जैसे निमन्त्रण मिल गया। वह बोल उठी- ‘हाँ, खेलूँगी। आप खिलाएंगी तो जरूर खेलूँगी।’

‘अन्दर आओगी?’ उसी लड़की ने मेरी के समीप आते हुए पूछा तो मेरी ने फिर कहा, हाँ! हाँ!! जरूर आऊँगी।

‘तो फिर खड़ी क्यों हो? आ क्यों नहीं जाती अन्दर? उसी लड़की ने कहा।

फुदकती हुई मेरी अंदर चली गई। भीतर की साज सज्जा देखकर एक बार तो लगी कि वह कल्पना लोक के किसी स्वर्ग में पहुँच गई है। जब वह आंखें फाड़-फाड़ कर चारों और देख रही थी तो उसकी नजर मेज पर रखी हुई एक रंगीन और खूबसूरत पुस्तक पर पड़ी। आज तक उसने इतनी सुन्दर और ऐसी कोई चीज नहीं देखी थी। वह उस मेज के पास जाकर खड़ी हो गई और उस किताब को छूकर देखने का लोभ संवरण न कर सकी।

‘ऐ...............वहाँ खड़ी हुई क्या कर रही हो’, उन दोनों लड़कियों में से एक ने कहा जो उसकी प्रत्येक गतिविधि को बड़े गौर से देख रही थी, -क्या किताब चुराने का इरादा है?

‘पर चुराकर करोगी भी क्या?’ कुछ क्षण रुककर वे फिर बोली, ‘तुम्हें पढ़ना तो आता नहीं’ और वे खिल-खिलाकर हंस पड़ीं।

इस फटकार और व्यंग की मार से क्षण भर पहले उभरी प्रफुल्लता चट से उड़ गई। घटना छोटी-सी थी पर मेरी के मन में गहरी चोट कर गई। वह घर आकर खूब रोई। इसके बाद नन्हीं मेरी ने असम्भव परिस्थितियों में रहते हुए वह कर दिखाया जो उस समय कल्पना में भी नहीं आ सकता था। उसने स्वयं शिक्षा प्राप्त की और अपने समाज में शिक्षा का ऐसा प्रचार किया कि आज मेरी जीना की गणना अमेरिका की प्रख्यात समाज सेवी महिलाओं में की जाती है।


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