प्राण शक्ति द्वारा कठिन रोगों का उपचार

June 1981

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वैज्ञानिक अन्वेषण जैसे-जैसे स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ रहा है, यह तथ्य सप्रमाण पुष्ट हो रहा है कि सूक्ष्म की सामर्थ्य स्थूल की तुलना में कई गुना अधिक है। अब दृश्य की तुलना में अदृश्य की शक्ति को ढूंढ़ने, करतलगत एवं प्रयोग करने की ओर वैज्ञानिकों का ध्यान अधिक केन्द्रित है। कभी बड़े विशालकाय अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण को शक्ति संचय का केन्द्र माना जाता था। कालान्तर में यह मान्यता बदली और परमाणु जैसे नगण्य सूक्ष्म घटक प्रचण्ड शक्ति के स्त्रोत के रूप में ढूंढ़ निकाले गये। पदार्थ का क्षुद्र घटक जब इतना भयंकर-संहारक हो सकता है तो उनकी सामर्थ्य को ही क्यों न संचित करने की कोशिश की जाय। व्यर्थ में विशालकाय अस्त्रों के बनाने का झंझट क्यों मोल लिया जाय? यह विचार धारा प्रत्येक देश के राजनायकों, शासन का दायित्व संभालने वालों के मन में उठती जा रही है।

ध्वंस ही नहीं सृजन की दिशा में भी सूक्ष्म की सत्ता ढूंढ़ने-सामर्थ्य को नियोजित करने का सत्प्रयास चल पड़ा है। फलतः आशातीत सफलता भी मिली है। चिकित्सा जगत में प्रचलित अनेकों पद्धतियां एलोपैथी, आयुर्वेदिक, होम्योपैथी बीमारियों के निदान में एक सीमा के ही सफल हो रही है। गंभीर एवं असाध्य समझी जाने वाली बीमारियों में इनकी पहुँच नहीं के बराबर है। शरीर के सूक्ष्मतम संस्थानों तक पहुँचकर उपचार कर पाना इनके द्वारा संभव नहीं रहा। बीमारियों के उपचार के लिए नई पद्धति ढूंढ़ी गई है- रेडियो विकिरण चिकित्सा की। चिकित्सा जगत में विगत वर्षों की महानतम उपलब्धियों में से इसे एक कहा जा सकता है। इसके लिए रेडियो समस्थानिकों (आयसोरोप्त) का प्रयोग किया जाता है। रोगी के निदान एवं उपचार में रेडियो सक्रिय अनुसारक (ट्रेसर) विशेष रूप से सफल सिद्ध हुए हैं।

हायपर थापराडिज्म, पालीसायथेभिया, कैंसर जैसे साध्य रोगों में भी यह चिकित्सा पद्धति कारगर सिद्ध हुई है। विश्व भर में रेडियो समस्थानिकों से युक्त औषधियों का प्रयोग होने लगा है। गोलियों अथवा इन्जेक्शनों को रेडियो विकिरण से युक्त कर रोगी के रोगग्रस्त भाग में प्रविष्ट कराकर कैंसर जैसी बीमारियों पर भी नियंत्रण पाने में सफलता मिली है।

लगभग 50 से भी अधिक ऐसी रेडियो औषधियों की खोज हो रही है जो विभिन्न रोगों के उपचार के लिए उपयोगी है। इनमें आयोडीन- 131, फास्फोरस- 31, क्रोमियम 51, स्वर्ण- 198, सोडियम- 28, पोटेशियम- 42 तथा लौह- 56 विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इस प्रकार की औषधियों का निर्माण भारत में भी भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र ट्राम्वे, बम्बई में होने लगा है।

हृदय विकार, थायराइड ग्रन्थि की-अव्यवस्था को आयोडीन चिकित्सा द्वारा जाना और ठीक किया जा सकता है। रक्त विकारों का ज्ञान एवं उपचार सोडियम 24 के द्वारा संभव है। अनेकों विटामिनों को रेडियो कोबाल्ट, रेडियो आयोडीन आदि से अंकित कर रोगी को देने से रोगों के आदि हुई क्रियाओं का अध्ययन बाह्य संयमों द्वारा तथा यकृत, वृक्क, पित्ताशय और मस्तिष्क ग्रन्थियों के गुप्त रोगों का उपचार किया जा सकता है। कैंसर जैसे रोग के उपचार में कोबाल्ट-60 विकिरण द्वारा कैंसर कोशिकाओं को जलाने में विशेष सहयोग मिला है। इसके प्रयोग के लिए रेडियम सुइयों का प्रयोग किया जाता था, किन्तु अब नलियों का प्रयोग अधिक लाभकारी माना गया है।

रेडियो विकिरण चिकित्सा में पूरी सतर्कता रखनी होती है ताकि विकिरण का प्रभाव स्वस्थ अंगों के ऊपर न हो। कोबाल्ट-60, इस्पात या जस्ते के कैप्सूल में इस प्रकार रखा जाता है कि विकिरण एक निश्चित दिशा में कैप्सूल में बने मार्ग से ही बाहर निकले ताकि कैंसर ग्रस्त भाग पर ही उसका प्रभाव डाला जा सके। गहरे ट्यूमर के इलाज के लिए इन इकाइयों में व्यवस्था यह रहती है कि विकिरण स्त्रोत को इस प्रकार घुमाया जा सके कि उसका विकिरण प्रभाव ट्यूमर पर ही केन्द्रित रहे।

पदार्थ सत्ता की सूक्ष्म सामर्थ्य रेडियो विकिरण का प्रयोग करने से चिकित्सा जगत में चमत्कारी परिणाम निकले हैं। जड़ की तुलना में मानवी चेतना कहीं अधिक सामर्थ्यवान, रहस्यमय है। काया में सन्निहित प्राण की असाधारण महिमा गायी गई है। प्राण को जीवन का केन्द्र माना गया है। पुरातन ऋषियों ने इसकी सत्ता एवं महत्ता को न केवल अनुभव किया वरन् इस तथ्य का प्रतिपादन भी किया कि कायिक स्वास्थ्य एवं मानसिक संतुलन का आधार प्राण है। प्राण की न्यूनता अथवा अधिकता ही, रोग अथवा आरोग्य का कारण है। बहु प्रचलित वर्तमान अनेकों चिकित्सा प्रणालियों की तरह पुरातन काल में प्राण चिकित्सा का प्रचलन था। सबल प्राण सम्पन्न व्यक्ति- रोगी असमर्थ को, अपने प्राणों से अनुप्राणित करके आरोग्य एवं स्वास्थ्य प्रदान करते थे।

भारत ही नहीं अन्य देशों में भी प्राण-चिकित्सा से लोग परिचित थे। रोगी के रोगग्रस्त अंगों पर प्राण संपन्न चिकित्सक अपने हाथों को फेरता था। इतिहास में उसके अनेकों प्रमाण मिलते हैं। मिश्र के प्राचीन शिलालेख चित्रों में रोगियों के पेट पर एक हाथ तथा पीठ पर दूसरा हाथ रखे हुए चिकित्सक दर्शाए गये हैं। वहाँ के साहित्य में भी प्राण चिकित्सा का उल्लेख मिलता है। कि संत पैट्रिक ने आयरलैंड के एक अंधे के आँख पर हाथ रखकर उसे नेत्र-ज्योति दी थी। संत वर्नाड के विषय में भी कहा जाता है कि उन्होंने एक दिन में ही 10 अंधों और 12 अपाहिजों को अच्छा कर दिया था। ईसाई धर्मग्रन्थ के पन्ने ऐसी अनेकों घटनाओं से भरे पड़े हैं। हिन्दू-मुस्लिम, धर्म-ग्रंथों, पुराणों में तो ऐसे असंख्यों उदाहरण मिलते हैं। पिछली कुछ सदियों के इतिहास में प्राण-चिकित्सा के अनेकों ऐतिहासिक प्रमाण हैं।

सत्रहवीं सदी में लंदन के लेन्हर्ट नामक एक माली को अंगुलियों से छूकर रोग विमुक्त करने में अद्भुत ख्याति मिली। उन्नीसवीं सदी के आरम्भ से सिलिपिया के रिचर नामक चौकीदार ने हजारों रोगियों को अपने स्पर्श मात्र से आरोग्य प्रदान करने में सफलता पायी। प्राचीन यूनानी वैद्य प्राण-चिकित्सा के लिए प्रख्यात रहे हैं।

इस्कुलेपियस नामक एवं ‘यूरोपीय’ रुग्ण अवयवों पर श्वास छोड़कर और अपनी हाथों की थपकियां देकर रोगों की चिकित्सा करने में पारंगत था। इंग्लैंड के ड्इड नामक पादरी को इस क्षेत्र में असाधारण सफलता मिली। अनेकों विद्वानों ने अपने साहित्यों में उसकी चमत्कारी शक्ति का उल्लेख किया है। स्काटलैंड के ‘मैक्सवेल’ नामक विद्वान ने प्राण-चिकित्सा प्रशिक्षण के लिए केन्द्र खोल रखा था। वह विश्वव्यापी, प्राण तत्व में विश्वास करता था।

महामनीषी हिपेक्रेट को प्राणतत्व के प्रति असाधारण श्रद्धा थी। वे लिखते हैं कि ‘‘शरीर आत्मा की शक्ति में संचालित एवं नियंत्रित होता है तो उनकी प्रचण्ड शक्ति से रोगों का निवारण भी हो सकता है। प्राचीन काल के वैद्य, अपनी आत्म शक्ति से रोगों का अनुभव कर लेते थे। वे निदान एवं उपचार में रोगी के अंदर प्राण का संचार करते थे। पिछले दिनों ‘मेस्मर’ ने चिकित्सा जगत में चमत्कारी सफलता प्राप्त करने के उपरांत विश्व के मूर्धन्य वैज्ञानिकों का ध्यान प्राण-तत्व की ओर आकर्षित किया है।

पदार्थ की रेडियो विकिरण क्षमता रोगों के उपचार में इतनी समर्थ एवं सफल हो सकती है तो कोई कारण नहीं कि प्राण शक्ति द्वारा रोगी को रोग मुक्त न किया जा सके। आवश्यकता इस सूक्ष्म सामर्थ्य को समझने की है। मनोवैज्ञानिक उपचारों में इसका एक छोटा प्रयोग आरम्भ हो चुका है किन्तु बड़ा भाग अब भी अविज्ञात बना हुआ है। सूक्ष्म की सामर्थ्य विज्ञान जगत में इन दिनों चर्चा की विषय बनी हुई है। प्राण तत्व को उभारने के लिए साधना विज्ञान का आश्रय लिया जा सके तो रोगोपचार ही नहीं कितनी ही सूक्ष्म शक्तियों को करतलगत किया जा सकता है और असाधारण क्षमता सम्पन्न बना जा सकता है।


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