प्रेत भी भले और उदार होते हैं।

June 1981

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मरणोत्तर जीवन के संबंध में विभिन्न धर्मों की विभिन्न मान्यताएं हैं। भारतीय धर्म शास्त्रों ने भी मरने के बाद परलोक के संबंध में कितने ही प्रकार से प्रकाश डाला है। वे लोग, जो पुनर्जन्म के संबंध में विश्वास नहीं करते, यह मानते हैं कि मरने के बाद मनुष्य का अस्तित्व नष्ट नहीं हो जाता। उसका अस्तित्व किसी न किसी रूप में विद्यमान रहता है। पुनर्जन्म में आस्था रखने वाले मत-मतान्तर भी यह मानते हैं कि मरने के बाद किसी भी व्यक्ति या प्राणी का तुरन्त जन्म नहीं हो जाता। पुनर्जन्म के जो मामले प्रकाश में आए हैं, जिन व्यक्तियों ने अपने पिछले जन्मों के संबंध में प्रामाणिक जानकारी दी है, उनके विवरणों से भी यह बात स्पष्ट होती है कि मरने और पुनः जन्म धारण करने के बीच की अवधि में कुछ अंतर रहता है।

प्रश्न यह उठता है मरने और पुनः जन्म लेने के बीच की अवधि में जीवात्मा क्या करता है? इस अवधि में वह कहाँ रहता है? इन प्रश्नों के उत्तर तरह-तरह से दिये जाते हैं। परलोक के संबंध में जानकारी रखने और अन्वेषण करने वाले व्यक्तियों ने इस विषय में विभिन्न परीक्षण और प्रयोग कर यह जाना है कि इस अवधि में प्राणी को अशरीरी अवस्था में अपना अस्तित्व बनाये रखना होता है। भारतीय धर्मशास्त्रों ने इस स्थिति वाली अस्तित्व धारी जीवात्मा को ही प्रेतयोनि का नाम दिया है। मरने के बाद पुनः जन्म धारण करने के बीच की अवधि में प्रत्येक जीवात्मा को यह योनि धारण करनी पड़ती है।

जीवन-मुक्त आत्माओं की बात दूसरी है। वे किसी नाटक की तरह जीवन का खेल खेलती हैं और अभीष्ट उद्देश्य पूरा करने के बाद अपने लोक में वापस लौट जाती हैं। उन्हें वस्तुओं, घटनाओं, स्मृतियों और व्यक्तियों का न तो मोह होता है तथा उनकी छाप उनके मन पर होती है, परन्तु सामान्य आत्माओं की बात भिन्न है। वे अपनी अतृप्त कामनाओं, सम्वेदनाओं, तृष्णाओं और रागद्वेष मूलक वासनाओं की प्रतिक्रियाओं से उद्विग्न होती हैं। परिणाम स्वरूप मरने के बाद भी उन पर जीवन के समय की स्मृतियाँ छाई रहती हैं और वे अपनी अभिलाषाओं की पूति के लिए ताना-बाना बुनती रहती हैं। इस तरह की आत्माएं दो स्तर की होती हैं, एक तो वे जो दूसरी को डराती दबाती हैं तथा उनके माध्यम से अपनी अभिलाषाएं पूरी करती हैं।

दूसरे स्तर की आत्माएं इनसे भिन्न होती हैं। वे मरण और जन्म के बीच की अवधि को प्रेत बनकर गुजारती तो है, किन्तु अपने उच्च स्वभाव तथा संस्कार के कारण दूसरों की यथासम्भव सहायता करती हैं। उनका संबंध सूक्ष्म जगत से होता है, इसलिए उनकी जानकारियाँ भी अधिक होती हैं और जिनसे उनका संबंध होता है, वे उनकी कई प्रकार की सहायता करती हैं। इस स्तर की प्रेतात्माओं से देव स्तर की सहायता प्राप्त की जा सकती है।

इस तरह के कई उदाहरण हैं, जिनमें प्रसिद्ध व्यक्तियों ने इन देव स्तर की प्रेतात्माओं का सहयोग प्राप्त किया तथा उनसे लाभ उठाया। महायोगी अरविन्द के संबंध में विख्यात है कि वे जब अलीपुर जेल में थे तब दो सप्ताह तक लगातार विवेकानन्द की आत्मा ने उनसे संपर्क किया था। स्वयं अरविन्द ने लिखा है, “जेल में मुझे दो सप्ताह तक कई बार विवेकानन्द की आत्मा उद्बोधित करती रही और मुझे उनकी उपस्थिति का भान होता रहा। उनके उद्बोधन ने मुझे आध्यात्मिक अनुभूति के एक विशेष महत्वपूर्ण पक्ष के विषय में बताया।

सन् 1901 में अरविन्द प्रेतात्माओं से संपर्क का अभ्यास किया करते थे। इस अभ्यास में एकबार रामकृष्ण परमहंस की आत्मा ने भी अरविन्द को कुछ महत्वपूर्ण साधनात्मक निर्देश दिए थे। श्री अरविन्द जिन दिनों बड़ौदा में रह रहे थे, उन दिनों का एक अनुभव बताते हुए उन्होंने लिखा है कि एक बार जब वे अपनी गाड़ी में कैंप रोड से शहर की ओर जा रहे थे तब आमबाग के पास उन्हें लगा कि जैसे कोई दुर्घटना होने को हो। उस समय उन्होंने स्पष्ट देखा कि दुर्घटना को बचाने की बात मन में आते ही एक ज्योति पुरुष ऐसे प्रकट हुआ, मानो वह वहाँ पहले से विद्यमान था और उसने एक क्षण में ही स्थिति को अपने हाथ में लेकर सम्हाल लिया।

अरविन्द आश्रम की श्री माँ को बचपन से ही इस प्रकार दिव्य आत्माओं द्वारा सहयोग तथा मार्ग-दर्शन प्राप्त होता रहता था। भारत सरकार के नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित श्री अरविन्द के जीवन चरित के श्री माँ प्रकरण में इस प्रकार की घटनाओं का विवरण देते हुए लिखा गया है, “वे (श्री माँ) जब छोटी-सी बालिका थीं, तब उन्हें बराबर भान होता रहता था कि उनके पीछे कोई अति मानवी शक्ति है जो जब-तब उनके शरीर में प्रवेश कर जाती है और तब वे बड़े-बड़े अलौकिक कार्य किया करती है।” इस प्रकरण में उस दिव्य शक्ति द्वारा श्री माँ के कई काम सम्पन्न करने की अनेक घटनाएं वर्णित हैं। निश्चित ही इस स्तर का सहयोग मुक्त आत्माएं करती हैं। यद्यपि वे सहायता के लिए बाध्य नहीं हैं, फिर भी वे स्वेच्छा से करुणावश आध्यात्मिक मार्ग के पथिकों सच्चे जिज्ञासुओं की सहायता के लिए सक्रिय होती हैं।

थियोसोफिकल सोसायटी की जन्मदात्री मैडम ब्लैवटस्की को चार वर्ष की आयु में ही देव आत्माओं का सहयोग सान्निध्य प्राप्त होने लगा था। वे अचानक आवेश में आकर ऐसी तथ्यपूर्ण बातें बता दिया बरती थीं जिन्हें कर पाना किन्हीं विशेषज्ञों के लिए ही सम्भव था। परिवार के लोग तो उन्हें विक्षिप्त समझने लगे पर जब उनके हाथ देवात्माओं के प्रत्यक्ष संपर्क के प्रमाण मिलने, देखे जाने लगे तो उन्हें यह तथ्य स्वीकार करना पड़ा। एक बार वे अपने संबंधियों से मिलने के लिए रूस गईं। वहाँ उनके भाई के कानों तक भी यह चर्चा पहुँची कि उनकी बहन का संपर्क किन्हीं दिव्य आत्माओं से है। जब इस विषय पर चर्चा चली तो उसने इतना ही कहा कि ‘मात्र बहिन होने के कारण मैं तुम्हारी बातों पर विश्वास नहीं कर सकता, कोई प्रमाण दो।’

मैडम ने अपने भाई को एक हल्की-सी मेज उठाकर लाने के लिए कहा, वह ले आया। अब उन्होंने फिर कहा कि इसे जहाँ से उठाकर लाए हो, वहाँ वापस ले जाकर रख आओ। भाई ने मेज को उठाने की कोशिश की पर मेज इतनी भारी हो गई कि पूरा जोर लगाने के बाद भी नहीं उठ सकी। घर के अन्य लोगों ने भी मिलकर मेज उठाने की कोशिश की, परन्तु कोई सफलता नहीं मिली। जब सब लोग थक हार गए तो मैडम ने अपने सहयोगी प्रेतों से कहा कि वे हट जाएं। तत्क्षण मेज पूर्ववत् हलकी हो गई। मैडम ब्लैवटस्की के कथनानुसार उनके अदृश्य सहयोगियों की एक पूरी मण्डली थी, जिसमें सात प्रेत थे। ये प्रेत समय-समय पर उन्हें उपयोगी परामर्श दिया करते थे और मुक्त हस्त से उनकी सहायता किया करते थे।

यह तो हुई लोगों के आध्यात्मिक उत्थान के लिए सहयोग देने वाले दिव्य प्रेतों की बात। ऐसे भी उदाहरण हैं जिनमें दयालु प्रेतात्माओं ने लोगों के लौकिक जीवन में सहायता पहुँचाई और उनके उत्कर्ष में योगदान दिया। इस तरह का एक प्रसंग अमेरिका के एक दरिद्र व्यक्ति आर्थर एडवर्ड के संबंध में विख्यात है। उसने 40 डालर प्रति मास पर कुलीगिरी की, छोटी-सी नौकरी से अपना जीवन आरम्भ किया था। पन्द्रह वर्ष की आयु में उस पर कुछ प्रेत मेहरबान हो गए और उन्होंने आर्थर को नौकरी छोड़कर अपने बताए अनुसार काम करने का परामर्श दिया, साथ ही यह भी कहा कि हम तुम्हें बड़ा आदमी बनाएंगे। आर्थर के पास न तो तो ज्ञान था, न अनुभव और न ही व्यावसायिक बुद्धि। फिर भी उसने प्रेतों के परामर्श से रेलमार्ग बनाए, अपनी नहरें खोदीं तथा एक बन्दरगाह के निर्माण का भी काम हाथ में लिया। ये योजनाएं, जो प्रेतों के परामर्श से बनाई गई थीं। जादुई ढंग से सफल हुईं और वह कुछ ही वर्षों में अरबपति बन गया।

डा. लीज ने इंग्लैण्ड के राजघराने में प्रेतात्माओं की अनुभूतियों का संकलन तीन पुस्तकों में किया है। इन पुस्तकों में एक घटना जार्ज पंचम से संबंधित है। उस समय वही राज्यकार्य सम्हालते थे। दुर्योगवश उन्हीं दिनों जार्ज की बहन लुईस विधवा हो गई। लुईस को अपने पति ड्यूक ऑफ फिक से बहुत प्रेम था। उसके मरने के बाद भी स्नेह में कोई अंतर नहीं आया, अस्तु दिवंगत आत्मा भी अपनी पत्नी से संपर्क बनाये रही ड्यूक की आत्मा ने लुईस को कई बार कठिनाई के समय इस प्रकार सहायता पहुँचाई थी, जिन्हें भी इस संबंध में ज्ञात हुआ वे चकित हुए और हर किसी ने सच्चे प्रेम की अमरता पर विश्वास किया। इसी प्रकार एडवर्ड सप्तम की पत्नी महारानी एलेग्जेण्ड्रा भी प्रेतात्माओं पर अधिक विश्वास करती थी। एक बार उन्हें किसी सहयोगी आत्मा ने पहले से ही आगाह कर दिया था कि सम्राट एडवर्ड अब कुछ ही दिन जीवित रह सकेंगे। महारानी विंडसर पैलेस में रह रही थीं। प्रेतात्मा की इस चेतावनी के कुछ ही क्षणों बाद सम्राट के अस्वस्थ होने का समाचार मिला। वह एडवर्ड के पास पहुँची और कुछ समय बाद ही सम्राट का देहावसान हो गया।

अदृश्य और उदार आत्माएं स्थूल सहायता भी पहुँचाती हैं। द्वितीय महायुद्ध के समय मोन्स की लड़ाई में ब्रिटिश सेना जर्मनों द्वारा बुरी तरह पिट गई। केवल 500 सैनिक बचे थे। जर्मनों की संख्या 10 हजार थी। वे इन पाँच सौ सैनिकों का भी काम तमाम कर देना चाहते थे। सभी ब्रिटिश सैनिक बुरी तरह घिर गए थे। तभी एक ब्रिटिश सेनाधिकारी को स्वर्गीय सेना नायक सेंटजार्ज का स्मरण आया। उसने अपने साथियों को इस महान सेना नायक का स्मरण कराया और भावना पूर्वक उनका स्मरण करने के लिए कहा। सभी सैनिकों ने तन्मयभाव से स्मरण किया, उसी समय एक बिजली सी कौंधी। पाँच सौ सैनिकों के पीछे हजारों श्वेत वस्त्रधारी सैनिकों की आभा दृष्टिगोचर हुई और कुछ ही क्षणों बाद रणभूमि में सभी जर्मन सैनिक मृत पड़े थे। न गोला बारूद छूटा, न किसी अस्त्र-शस्त्र का उपयोग किया गया। फिर भी आश्चर्य था कि शत्रु जर्मन कैसे मर गए?

स्काटलैंड के राजा जोस चतुर्थ को उन्हीं का कोई पूर्वज जो प्रेतयोनि में था, बार-बार दिखाई देता था। इंग्लैण्ड पर आक्रमण करते समय वह रक्तपात न करने के लिए समझाता, पर जेम्स ने कभी उसकी बात नहीं मानी। एकबार प्रेत ने उसे चेतावनी दी कि अब तुम्हारे हित के लिए कहता हूं। तुम युद्ध में मत जाओ। यदि गए तो जीवित नहीं लौट सकोगे। इस चेतावनी को सुनने के बावजूद भी जेम्स नहीं माना। वह युद्ध में गया और मारा गया। फ्राँस के सम्राट हेनरी चतुर्थ को भी इसी प्रकार एक प्रेतात्मा ने एक षड़यंत्र में मारे जाने की चेतावनी देते हुए बताया था कि वह चाहे तो बच सकता है। प्रेतात्मा ने यह चेतावनी उस समय दी थी जब हेनरी घूमने के लिए गया था। घूमकर लौटने के बाद उसने यह बात दरबारियों को बताई तो दरबारियों ने इसे दिवास्वप्न कहा। हेनरी ने भी कोई खास महत्व नहीं दिया। बात आई गई हो गई किन्तु कुछ ही समय बाद सचमुच एक षड्यन्त्र में प्रेतात्मा के संकेतानुसार हेनरी की हत्या कर दी गई।

अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को तो प्रेतात्माओं पर इतना विश्वास था कि वे अक्सर एक प्रेत विद्या विशारद कुमारी नैटिकोलबर्म को ह्वाइट हाउस में बुलाया करते थे और उसके माध्यम से प्रेतात्माओं से संपर्क कर महत्वपूर्ण निर्णय लेते थे। गृह युद्ध के दिनों में तो प्रेतात्माओं जैसी उनकी विश्वस्त सलाहकार हो गई थी। उनकी मदद से लिंकन को उपद्रवियों के ऐसे-ऐसे रहस्यों का पता लगा जिन्हें जासूसों द्वारा प्राप्त करना सम्भव ही नहीं था।

ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि प्रेत बुरे और दुष्ट ही होते हैं। उनमें भी भले-बुरे व्यक्तियों की तरह भले-बुरे स्वभाव वाले चरित्र होते हैं। आखिर मनुष्य ही तो मर कर प्रेत बनते हैं। मरने के बाद भी वे अपना स्वभाव कहाँ छोड़ पाते हैं? उसी स्वभाव के वशीभूत होकर भली आत्माएं सत्पात्रों की सहायता किया करती हैं।


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