नियति द्वारा प्रस्तुत मानवीय सत्ता की विलक्षणताओं का परिचय

February 1981

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

परमात्मा ने मनुष्य को अनन्त क्षमताओं और अजस्र सम्भावनाओं से पूरित कर इस पृथ्वी पर भेजा है। वह चाहे तो साधना और अभ्यास द्वारा इन क्षमताओं को जागृत कर अपूर्व शक्ति का स्वामी बना सकता है। किन्तु अधिकाँश मनुष्य शिश्नोदर परायण जीवन तक ही अपनी गतिविधियाँ सीमित रखते हैं और पेट तथा प्रजनन का सामान जुटाते-जुटाते ही इस संसार से कूचकर जाते हैं। अधिकाँश लोगों की कल्पना में यह बात आती ही नहीं है कि जिन्हें वे सिद्धियाँ और चमत्कार कहते हैं वे किसी व्यक्ति विशेष को दिये गये उपहार नहीं हैं, अपितु उनके बीज उनमें स्वयं ही निहित हैं। आवश्यकता केवल उन्हें सींचने और खाद पानी देकर अंकुरित भर करने की है।

इस तथ्य को न समझ पाने के कारण लोग ऐसे व्यक्तियों को किसी दूसरे लोक का प्राणी समझते हैं जो साधना और अभ्यास द्वारा अपनी किन्हीं विशेष शक्तियों को जागृत कर लेते हैं। परमात्मा ने ऐसी शक्तियाँ किसी भी मनुष्य को पक्षपात से प्रेरित होकर नहीं दी हैं वरन् उसने अपने सभी पुत्रों को बिना किसी भेदभाव के इन सम्भावनाओं से पूरित बनाया है।

समय-समय पर किन्हीं व्यक्तियों में इस तरह की विशेषताएं अनायास ही प्रकट हो जाती हैं। उन्हें पूर्व जन्मों का संस्कार भी कह सकते हैं और प्रकृति द्वारा इस बात का परिचय प्रमाण भी, कि उसके परिकर में रहने वाले सभी मनुष्यों को अतिमानव बनने की सम्भावनाएं वरदान के रूप में प्राप्त हैं। यह मनुष्य पर निर्भर करता है कि उन संभावनाओं को साकार करता है अथवा नहीं। इस तरह के कुछ प्रसंग इस प्रकार हैं।

उत्तर प्रदेश के बिजनौर शहर के मुहल्ला ब्रह्मनान में एक साधारण परिवार में जन्मी ग्यारह वर्षीय लड़की सुधा ने 27 जनवरी 1948 को सुबह उठते ही अपने माता-पिता से कहा कि महात्मा गाँधी को किसी ने प्रार्थना के समय गोली मार दी। सुधा घर में सबसे छोटी थी और माता-पिता का उस पर कुछ स्नेह भी विशेष था इसलिये कोई उसे कुछ कहता नहीं था। लेकिन जब उसने बिना किसी प्रसंग वश घरवालों से यह बात कही तो वे हैरान भी हुए और उन्होंने सुधा को डाँटा-डपटा भी। सुधा डाँट खाकर चुप हो गई। लेकिन ठीक, तीन दिन बाद 30 जनवरी 1948 की संध्या को रेडियो से लोगों ने महात्मा गाँधी की हत्या का समाचार सुना। समाचार का विवरण बिल्कुल वैसा ही था जैसा कि सुधा ने बताया था। सुधा को तीन दिन पहले ही महात्मा गाँधी की हत्या का पूर्वाभास कैसे हो गया? इस संबंध में सुधा कुछ नहीं बता सकी, उसके माता-पिता द्वारा कुछ बताने का तो प्रश्न ही नहीं उठता।

सन् 1959 में लखनऊ के एक प्रतिष्ठित परिवार में स्वप्नों के माध्यम से पूर्वाभास की घटना घटी। लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा. डी.एन. मजूमदार एन्थ्रोपोलॉजी विभाग के अध्यक्ष थे। उनकी पुत्री भी कलकत्ता विश्वविद्यालय में लेक्चरार थी। एक दिन रात को दस बजे डा. मजूमदार के फोन की घण्टी घनघना उठी। टेलीफोन आपरेटर ने बताया कि आप अपनी बेटी से कलकत्ता से बात कीजिए। सहसा डा. मजूमदार के माथे पर चिन्ता की रेखाएं खिंच गई। ऐसी तो कोई पृष्ठभूमि बनी नहीं थी जिसमें इतनी रात को बेटी का फोन करना स्वाभाविक लगे। डा. मजूमदार ने पूछा, “क्या बात है बेटी? तुम ठीक तो हो न?”

‘ठीक हूँ पापा!’ बेटी ने कहा, ‘आप बताइए कैसे हैं? घर में सब लोग ठीक तो हैं न?’ डा. मजूमदार को समझ नहीं आ रहा था कि अकारण इतनी रात को उनकी बेटी घर परिवार की कुशलता के बारे में चिन्तित क्यों हो उठी है? उन्होंने कहा- ‘सब ठीक है बेटी?’ इधर ऐसी कोई बात तो हुई नहीं है कि तुम्हें इतनी रात को परेशान होना पड़े। बताओ क्या बात है? ‘कुछ नहीं पापा’, उनकी लड़की ने कलकत्ता से कहा, ‘दरअसल मैंने अभी-अभी एक बहुत बुरा सपना देखा है इसलिए चिन्ता से आकुल हो उठी। मन में तरह-तरह की कल्पनाएं उठने लगीं। इत्मीनान करने के लिए ट्रंक किया था’ डा. मजूमदार हंसे और अपनी बेटी के बताए कारण पर लाड़ से बोले- ‘‘कोई बात नहीं है बेटी, सब ठीक है। तुम आराम से सो जाओ। अरे पगली सपनों को लेकर कहीं इस कदर परेशान हुआ जाता है।” टेलीफोन कट गया। इसके कुछ ही देर बाद डा. मजूमदार अपना काम खतम कर सोने के लिए बैड-रूम में पहुँचे। कपड़े बदल कर वे पलंग पर लेटे ही थे कि उनकी छाती में तेज दर्द शुरू हुआ और कुछ मिनटों में हृदय गति रुक जाने से उनका देहान्त हो गया। कलकत्ता में मजूमदार की बेटी द्वारा देखा गया सपना एकदम सही उतरा था। उसके द्वारा फोन किये जाने के कोई दो घण्टे बाद ही लखनऊ से उसे फोन पर खबर दी गई कि पापा का अचानक देहान्त हो गया है।

स्वप्नों के माध्यम से भविष्य की घटनाओं का पूर्वाभास कैसे हो जाता है? यह अब वैज्ञानिकों के लिए खोज का विषय बन गया है। इस संबंध में भारतीय मनीषियों की मान्यताएं बहुत स्पष्ट हैं। उनके अनुसार भूत, भविष्य और वर्तमान की घटनाएं सूक्ष्म जगत में पहले से विचरण करती रहती हैं और बहुत बाद तक बनी रहती है। कहा जा सकता है कि वर्तमान में जो घटनाएं घट रही हैं उनकी पूर्वभूमिका सूक्ष्म जगत में बहुत पहले ही विनिर्मित हो चुकी थी और भविष्य में जो घटनाएं घटने वाली हैं उनकी पृष्ठभूमि वर्तमान में बन चुकी है। भारतीय दर्शन के अनुसार जो व्यक्ति सूक्ष्म जगत से जागृत अवस्था में ही संपर्क करने की क्षमता रखता है वह भूत, वर्तमान और भविष्य की बातों को सरलता से जान सकता है। लेकिन यह क्षमता सभी में नहीं होती। हाँ, स्वप्नावस्था में अवश्य ही लोग सूक्ष्म के अधिक निकट तक पहुँच जाते हैं और बहुतों को भावी का ज्ञान हो जाता है।

भविष्य का पूर्वाभास स्वप्न में प्राप्त करने की एक घटना शास्त्रीजी की मृत्यु के समय रूस में घटी है। इस घटना की चर्चा देश-विदेश के समाचार पत्रों ने भी की थी। सन् 1965-66 में भारत पाक समझौते के समय स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खाँ, रूस के प्रधानमंत्री कोसीगिन की मध्यस्थता में बातचीत करने के लिए ताशकन्द में एकत्र हुए थे। उन दिनों एक भारतीय छात्र उदय कुमार वर्मा ताशकन्द में अध्ययनरत थे। एक दिन उक्त छात्र के पड़ोस में रहने वाली एक सोवियत छात्रा उसके पास आई और बोली, ‘आप हमें आज शास्त्रीजी के दर्शन अवश्य करादें, वरना फिर कभी उनके दर्शन नहीं होंगे।

छात्र अपनी सहपाठी छात्रा के आखिरी शब्दों को सुनकर बहुत हैरान हुआ। उदय कुमार ने पूछा कि ऐसी क्या बात है? तो छात्रा ने कहा कि “मैंने आज रात एक दुःस्वप्न देखा है कि शास्त्रीजी हमारे बीच नहीं रहे हैं। खैर! उदय कुमार ने सोवियत छात्रा को शास्त्रीजी के कार्यक्रम तक पहुँचा दिया और उसकी लालसा पूरी करा दी। उसी रात उदय कुमार ने खुद भी स्वप्न देखा कि शास्त्रीजी को बिदा करने जब वह हवाई अड्डे पर पहुँचता है तो वहाँ खबर लगती है कि शास्त्रीजी का स्वर्गवास हो गया है और लोग उनके शव को विदा करने आए हैं। यह स्वप्न इतना स्पष्ट था कि उदय कुमार की नींद टूट गई और अगले दिन जब वह उसी सोवियत छात्रा से मिले तो उलाहना-सा देते हुए कहा, ‘तुम्हारी बातों का मेरे मन पर इतना बुरा असर पड़ा है कि रात को मैंने भी वैसा ही बुरा स्वप्न देखा है। यह 10 जनवरी 66 की सुबह की बात है और उसी रात को शास्त्रीजी का देहान्त हो गया। 11 जनवरी को प्रातः वह छात्र जब अन्य भारतीय और सोवियत छात्रों के साथ शास्त्रीजी को काबुल प्रस्थान के लिए विदा करने जाने लगे तब यह जानकर स्तब्ध रह गया कि सचमुच शास्त्रीजी का स्वर्गवास हो गया है।

प्रत्यक्ष अनुभवों तथा वैज्ञानिक शोधों के आधार पर अभी तक सपनों की रंगीन और कौतूहलपूर्ण दुनिया के संबंध में जो जानकारी मिल पाई है, वह अत्यन्त रोचक ज्ञानवर्धक और बहुत ही उपयोगी है। उन निष्कर्षों से पता चलता है कि सपने न केवल भविष्यवाणी करते हैं बल्कि ऐसी सच्चाइयों को भी सामने लाते हैं जो प्रायः अविज्ञात ही होती हैं और जिन्हें जानने का कोई सूत्र भी नहीं होता। इस तरह के कई स्वप्न प्रसंगों का विवरण मिलता है जिनमें सपनों के द्वारा मिले संकेतों की मदद से अपराधियों को पकड़ा जा सका और उन्हें दिलाई जा सकी।

इस तरह की घटनाओं में आयरलैंड की एक घटना सर्वाधिक चर्चित है। वहाँ तिपेरारी नगर में रहने वाले एक व्यापारी युवक हिकी ने न्यूफाउलैण्ड से अपने मित्रों को सूचित किया कि वह शीघ्र ही तिपेरारी पहुँच रहा है। हिकी तिपेरारी पहुँच रहा है। हिकी पेरारी से न्यूफाउलैंड व्यापार के सिलसिले में आया था और उसने वहाँ काफी पैसा कमाया था। हिकी ने जिस तारीख को वापस पहुँचने की सूचना दी थी, उस तारीख को वह नहीं पहुँचा। उस तारीख को बीते भी एक सप्ताह बीत गया तो मित्रों ने पुलिस में रिपोर्ट की। पुलिस ने हिकी की खोज बीन शुरू की। इस सिलसिले में रोजर्स नामक एक सराय मालिक के पास पहुँच गया जहाँ हिकी ठहरा था। रोजर्स ने बताया कि हिकी के हुलिये का एक युवक कुछ दिन पहले एक साथी के साथ जलपान के लिए आया था और उसके बहुत रोकने पर भी नहीं रुका था। पुलिस के यह पूछने पर कि वह उन दोनों को क्यों रोकना चाहता था? रोजर्स ने एक विचित्र कारण बताया कि उनके आने के कुछ समय पहले मेरी पत्नी ने स्वप्न में उन दोनों युवकों को जलपान के लिए सराय में आते देखा था और देखा था कि वे दोनों जलपान के बाद चले गये हैं। रास्ते में एक युवक ने दूसरे की हत्या कर दी और उसकी लाश को झाड़ी में छिपा दिया। रोजर्स की पत्नी ने बताया कि मैं वह स्थान बता सकती हूँ जहाँ युवक को छिपाया गया था।

रोजर्स के इस बयान के आधार पर पुलिस ने हिकी के साथी को खोजना आरम्भ कर दिया। कुछ दिन बाद पुलिस ने काउफील्ड नामक उस युवक को एक गिरजाघर में पकड़ा। काउफील्ड वहाँ वेश बदल कर एक पादरी के सहायक के रूप में काम कर रहा था। किसी को भी विश्वास न हुआ कि देखने में इतना भोला-भाला और सीधा लगने वाला लड़का निर्मम हत्यारा भी हो सकता है। अदालत में काउफील्ड ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा- ‘‘कि सराय में रोजर्स की पत्नी को अपनी और घूरते हुये देखकर मैंने हिकी का हत्या करने का इरादा बदल दिया था लेकिन बाद में जैसे ही एकान्त मिला, मुझ पर शैतान सवार हो गया और मैंने उसके ही चाकू से उसका गला काट दिया।” काउफील्ड को इस हत्या के अपराध में फाँसी की सजा मिली।

इस तरह के अनेकों उदाहरण और प्रमाण हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि मनुष्य वही नहीं है, जो कुछ वह प्रतीत होता है और उसकी शक्ति वहीं तक सीमित नहीं है जितनी कि वह दिखाई देती है।

प्रश्न उठता है कि मनुष्य की विराट् सत्ता जब अपने को प्रकट करने के लिए आकुल-व्याकुल है तो जिन्हें अतीन्द्रिय स्तर की क्षमताएं अनायास ही प्राप्त हो जाती हैं उनकी संख्या कुछेक तक ही सीमित क्यों है? क्यों नहीं सभी मनुष्यों में वह प्रकट होती है? इसका कोई उत्तर नहीं दिया जा सकता, पर इतना सच है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने भीतर के विराट् और महान की झाँकी कभी न कभी मिलती अवश्य है। कई बार बिना किसी आधार या ठोस कारण के हुए बिना भी किये गये पूर्वानुमान आश्चर्यजनक रूप से सही सिद्ध होते हैं। ध्यानपूर्वक अपने अतीत के अनुभवों का विश्लेषण किया जाए तो इस तरह की कुछेक घटनाएं सभी लोगों के जीवन में मिल जायेंगी। होता यही है कि इस तरह के अनुभवों या अनुमानों को सामान्य दिनचर्या का ही अंग मानकर उपेक्षा कर दी जाती है और अपने भीतर की अनन्त सम्भावनाओं का परिचय होते-होते रह जाता है।

भारतीय तत्व चिन्तकों ने प्रत्येक मनुष्य को इस तरह की संभावनाओं से पूरित बताया है। क्योंकि उनकी दृष्टि में प्रत्येक व्यक्ति, व्यक्ति ही नहीं प्रत्येक प्राणी परमात्मा का अंश है और उसमें परमात्मा की कल्पित की गई समस्त विशेषताएं बीज रूप में विद्यमान हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118