संवेदित मानव (kavita)

February 1981

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छटपटा उठा कोई जब घायल होकर, हमने ममहित होकर अश्रु बहाये। जब-जब अनीति, अन्याय बढ़ें इस भू पर, तब-तब हमने ही गीत क्रान्ति के गाये॥1॥

हम कोमल कोंपल से ज्यादा कोमल हैं। हम स्नेह और सम्वेदन के शतदल हैं। भावों का सागर लहराता है हम में। भावनाशील हैं, स्नेह स्नात विह्वल हैं। जिन घावों को सबने देखा नफरत से, वे घाव हमीं ने अधरों से सहलाये॥2॥

अन्याय चुनौती देने जब-जब आया, जब-जब अनीतियों ने निज शीश उठाया। हमने अनीति, अन्यायों से टक्कर ली, पर उनके सन्मुख सिर को नहीं झुकाया। उनको समझाया शास्त्र, शस्त्र दोनों से, जब-जब जिसको जैसे भी समझा पाये॥3॥

हममें मानव का हृदय धड़कता रहता। गौतम का करुणा भाव छलकता रहता। सिंहों के शावक से भी खेले हैं हम, पौरुष अजमाने प्राण पुलकता रहता। इतिहास हमारी करुणा का साक्षी है, हमने ही पौरुष के इतिहास बनाये॥4॥

*समाप्त*


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