सफलता और प्रगति की मूल शर्त

February 1981

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किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति में असफलता मिलने के कई कारण हो सकते हैं। परिस्थितियों की प्रतिकूलता, साधनों का अभाव, साथियों द्वारा असहयोग या उनका प्रतिरोध, कोई भी कारण प्रगति में अवरोध खड़े कर सकता है। ये सभी कारण बाहरी हैं। इन कारणों के उपस्थित होने पर न निराश होने की आवश्यकता है और न ही हताश होने की। बाह्य कारणों और अवरोधों को हटाया जा सकता है। मार्ग में पड़े पत्थर को लाँघकर या चट्टान पर चढ़कर आगे बढ़ा जा सकता है। नहीं बढ़ा जा सकता है तो एक ही कारण है व्यक्तित्व की दुर्बलता। मन में यदि थोड़ा साहस हो तो इन अवरोधों को पार किया जा सकता है। प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ने और उन्हें अनुकूल बनाने की सामर्थ्य मनुष्य के भीतर विद्यमान है। साधनों का अभाव भी दूर किया जा सकता है और नये साधन जुटाये जा सकते हैं। साथियों के प्रतिरोध को सहयोग में परिणत करना कोई कठिन काम नहीं है, पर अपना व्यक्तित्व ही दुर्बल हो तो क्या किया जा सकता है? सिवा इन अवरोधों का रोना रोते रहने के।

प्रगति पथ में आने वाले अवरोधों और सफलता प्राप्त करने की दिशा में उत्पन्न होने वाली बाधाओं को दूर करने का एक ही उपाय है- आत्मविश्वास! आत्मविश्वास की गंगोत्री से ही शक्ति धारा निकलती है और प्रचण्ड पुरुषार्थ की गंगा बहती है। इस गंगा में स्नान कर ही तमाम सफल व्यक्तियों ने अपनी दुर्बलताओं के पाप धोए हैं तथा सफलता के पुण्य आनन्द को प्राप्त कर सके हैं।

आत्मविश्वास का अर्थ है अपने आप के प्रति आस्था यह निष्ठा कि मनुष्य अनन्त सम्भावनाओं के बीज अपने भीतर लेकर जन्मा है। यह आस्था और निष्ठा ही श्रम, साहस तथा प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का निर्माण करती है।

स्मरण रखा जाना चाहिए कि आत्मविश्वास का अर्थ बिना पंखों के आसमान पर उड़ने का नाम नहीं है। उसके साथ अपनी सामर्थ्य भी तौलनी पड़ती है। अपने अनुभवों, योग्यताओं और साधनों का मूल्याँकन करना पड़ता है। इस समीक्षा के साथ यह निष्कर्ष निकालना पड़ता है कि वर्तमान परिस्थितियों में किस सीमा तक कितना साहस किया जा सकता है? और कितनी ऊंची छलाँग लगाई जा सकती है? यदि निष्कर्ष उतनी ऊंची छलाँग लगाने की अनुमति नहीं देते हों तो फिर वैसी सामर्थ्य जुटानी होती है, उपयुक्त परिस्थितियों का निर्माण करना होता है और आवश्यक साधन जुटाने होते हैं।

यदि ऐसा नहीं किया गया और वस्तु-स्थिति की उपेक्षा की गई तथा केवल हवाई महल चुनते रहा गया तो शेखचिल्ली की तरह उपहासास्पद बनना पड़ता है। शेखचिल्ली की कहानी बहुश्रुत है जिसमें एक मजदूर ने तेल ढोने की मजदूरी से मिलने वाले पैसों से मुर्गी, बकरी, भैंस खरीदकर मालदार बनने, अमीर औरत से शादी करने, बच्चा होने और बच्चे को झिड़की लगाने का सपना देखा था और बच्चे को झिड़की देने के आवेश में घड़ा फोड़ बैठा था तथा रंगीन सपना गंवाकर मालिक द्वारा दुत्कारा, धमकाया और निकाल दिया गया था।

बहुत से लोग इस तरह के सपने देखते हैं। कुछ आत्मविश्वास की कोरी प्रवंचना लेकर इन्हें साकार करने के लिए भी प्रयत्न करते हैं किन्तु इस उपक्रम में वस्तु-स्थिति की उपेक्षा करने के कारण अन्ततः हाथ मलते रह जाते हैं। अस्तु अपने आपके प्रति, अपनी शक्तियों के प्रति विश्वास रखने के साथ-साथ यह भी देखना चाहिए कि जिन कारणों से प्रगति पथ अवरुद्ध बना हुआ है, दूसरों का सहयोग नहीं मिल रहा है, अवरोध सामने आ रहे हैं वे क्या हैं तथा उन कारणों को किस प्रकार दूर किया जा सकता है? स्वाभाविक ही वे कारण अपनी दुर्बलताओं के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकते। अतः उन दुर्बलताओं को दूर करते हुए आत्मविश्वास पूर्वक प्रगति प्रयास करना चाहिए। सफलता की, आगे बढ़ने की यही मूलभूत शर्त है।


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