सफलता का आयु से क्या सम्बन्ध?

February 1981

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प्रगति की आकाँक्षा किसे नहीं होती? प्रत्येक व्यक्ति अपनी स्थिति से असंतुष्ट रहता है और उससे आगे बढ़कर उन्नत स्थिति को प्राप्त करना चाहता है। बहुत से इसके लिए प्रयास भी करते हैं और अनेकों सफल भी होते हैं। किन्तु अधिकाँश व्यक्ति वह प्राप्त नहीं कर पाते, जो प्राप्त करना चाहते हैं। कारण संकल्प का अभाव, प्रयत्नों में प्रखरता की कमी और तत्परता का न होना। बहुत से व्यक्ति युवावस्था में बड़े जोश-खरोश के साथ अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करते हैं, किन्तु थोड़े से प्रयत्न करने के बाद ही निराश हो जाते हैं। बहुतों की स्थिति ऐसी होती है, प्रयत्न और संघर्ष करते-करते युवावस्था बीत जाती है और वे अपने आपको वृद्ध समझकर हार थककर बैठ जाते हैं।

वृद्धावस्था क्या सचमुच जीवन की संध्या बेला है? इस प्रश्न का का उत्तर उनके लिए “हाँ” में ही होता है किन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं। बहुत से व्यक्तियों ने जिसे वृद्धावस्था कहते हैं, इस उम्र तक सामान्य जीवन बिताया और उसके बाद उनमें प्रगति के लिए ऐसी उदात्त आकाँक्षा उत्पन्न हुई कि उसके बाद अपने प्रखर प्रयत्नों से उन्नति के उच्च शिखर पर पहुँचे। संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान श्रीपाद दामोद सातवलेकर 60 वर्ष की आयु तक एक पाठशाला में ड्राईंग पढ़ाते थे। रिटायर होने के बाद उन्होंने संस्कृत सीखी और संस्कृत भाषा के क्षेत्र में इतना काम किया कि देखने वाले दंग रह गये। वेदों का शुद्ध पाठ तैयार करने से लेकर भारतीय संस्कृति का प्रगतिशील स्वरूप प्रतिपादित करने तक के क्षेत्र में उन्होंने इतनी सफलता अर्जित की कि आज भी जहाँ संस्कृत के संबंध में कहीं कोई मतभेद उठता है तो उसके समाधान और निराकरण के लिए सातवलेकर के ग्रन्थों को ही आधार माना जाता है।

महात्मा गाँधी ने 45 वर्ष की अवस्था तक सामान्य जीवन जिया और इसके बाद वे एक क्रान्तिकारी संत के स्वरूप में उभरकर सामने आये। दादा भाई नौरोजी ने 50 वर्ष की आयु में अपना राजनैतिक जीवन आरम्भ किया तथा 60 वर्ष की आयु में बम्बई काउंसिल के सदस्य चुने गए। 61 वर्ष की अवस्था में वे काँग्रेस के सभापति बने। गोपालकृष्ण गोखले ने 40 वर्ष की आयु में ‘भारत सेवक समाज’ की स्थापना की थी। लोकमान्य तिलक ने यद्यपि 33 वर्ष की आयु में अपना राजनैतिक जीवन आरम्भ किया था किन्तु उनकी गतिविधियाँ 1905 में ही अधिक सक्रिय हुई, तब उनकी आयु 50 वर्ष थी। उसी समय उन्होंने गरम दल की स्थापना की थी।

टोमरूल लीग बनाते समय श्रीमती एनीबीसेण्ट की आयु 70 वर्ष की थी। उन्होंने 40 वर्ष की आयु के बाद ही सार्वजनिक क्षेत्र में पदार्पण किया था। इसी प्रकार 45 वर्ष की आयु के बाद राजनीतिक जीवन में प्रवेश करने वाले पं. मोतीलाल नेहरू 58 वर्ष की आयु में कांग्रेस के सभापति बने। डा. राजेन्द्र प्रसाद का प्रखर और सक्रिय जीवन 41 वर्ष की आयु के बाद ही आरम्भ हुआ।

यह तो खैर राजनैतिक जीवन से संबंधित उदाहरण हैं और सामान्यतः समझा जाता है कि राजनीति बूढ़ों का खेल है। इस क्षेत्र में व्यक्ति युवावस्था से प्रवेश करे, तभी वृद्धावस्था तक पहुँचने तक सफलता मिलती है, ऐसी धारणा है। किन्तु और क्षेत्रों में भी ऐसे उदाहरण हैं जिनसे सिद्ध होता है कि प्रगति या सफलता का आयु से कोई संबंध नहीं है। वह किसी भी उम्र में पाई जा सकती है और वृद्धावस्था में अपने क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करने वालों के तो ढेरों उदाहरण हैं। यूनानी नाटककार सोफोप्लीज ने 90 वर्ष की आयु में अपना प्रसिद्ध नाटक ‘आडीपस’ लिखा था। यद्यपि उन्होंने इसके पहले भी कई रचनाएं लिखी थी, पर जिन रचनाओं ने उन्हें साहित्यिक जगत में प्रतिष्ठित किया वे सभी अस्सी वर्ष की आयु के बाद लिखी गई थी। अंग्रेजी के सुप्रसिद्ध कवि मिल्टन 44 की आयु में अंधे हो गये थे। अंधे होने के बाद उन्होंने सारा ध्यान साहित्य रचना पर केन्द्रित किया और 50 वर्ष की आयु में अपनी प्रसिद्ध कृति ‘पैराडाइज लास्ट’ लिखी। 62 वर्ष की आयु में उनकी एक और प्रसिद्ध कृति ‘‘पैराडाइज रीगेण्ड’’ प्रकाशित हुई। जर्मन कवि गेटे ने अपनी प्रसिद्ध कृति “फास्ट” 80 वर्ष की आयु में लिखी थी। 92 वर्ष का अमेरिकी दार्शनिक जानडेवी अपने क्षेत्र में अन्य सभी विद्वानों से अग्रणी था, उन्होंने दर्शन के क्षेत्र में 60 वर्ष की अवस्था में ही प्रवेश किया था।

जार्ज बर्नार्ड शॉ 93 वर्ष की आयु तक इतना अधिक लिखते थे कि वे स्वयं 40 वर्ष की आयु में भी इतना नहीं लिख पाते थे। दार्शनिक वैनदित्तो क्रोचे 80 वर्ष की अवस्था में भी नियमित रूप से दस घण्टे काम करते थे। 85 वर्ष की आयु में उन्होंने दो महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं। जिनकी चर्चा विश्व साहित्य में होती है। बट्रैग्ड रसेल को 78 वर्ष की आयु में उस कृति पर पुरस्कार मिला जो उन्होंने 77 वर्ष की अवस्था में पूरी की थी। माटिस मैटर लिंक का देहान्त 88 वर्ष की आयु में हुआ। जिन दिनों वे मरे, उसके कुछ दिन पूर्व ही उन्होंने अपनी अंतिम पुस्तक पूरी की थी। इस पुस्तक का नाम था ‘द एवार्ट ऑफ सेतु आल’ यह पुस्तक उनकी सर्वोत्कृष्ट रचना समझी जाती है।

ब्रिटेन के सुप्रसिद्ध अखबार ‘डेली एक्सप्रेस’ के संचालक लार्ड वीवनवर्क 80 वर्ष की अवस्था में भी दफ्तर में जमकर बैठते और काम करते थे। दार्शनिक काण्ट को 74 वर्ष की अवस्था में उनकी एक रचना के आधार पर दर्शन के क्षेत्र में प्रतिष्ठा मिली। 70 वर्ष की आयु के बाद चार वर्षों में उन्होंने ‘एंथ्रोपोलॉजी’ ‘मेटाफिजिक्स आफ ईथिक्स’ और ‘स्ट्राइफ आफ फैक्लटीज’ यह तीन पुस्तकें लिखी थीं, जिनने उन्हें दार्शनिक जगत में प्रतिष्ठित किया। टैनीसन ने अपना प्रख्यात ग्रन्थ ‘क्रासिंग द बार’ 83 वर्ष की आयु में पूरा किया। होब्स ने 88 वर्ष की आयु में ‘इलियड’ अनुवाद प्रकाशित कराया था। चित्रकार टीटान ने विश्व प्रसिद्ध कलाकृति ‘बैटल आफ लिमाँटो’ 98 वर्ष की आयु में पूरी की।

इंग्लैंड का इतिहास जिसने पढ़ा है, वे ग्लैडस्टन के नाम से अवश्य ही परिचित होंगे। ग्लैडस्टन ने 50 वर्ष की आयु में ब्रिटेन की राजनीति में प्रवेश किया और 70 वर्ष की आयु में राज्य का उत्तरदायित्व सम्भाला। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में ‘होमर’ पर उन्होंने जो भाषण दिया वह अत्यन्त शोधपूर्ण माना जाता है। वह जब प्रधानमंत्री बने तब उनकी आयु 79 वर्ष थी। 85 वर्ष की आयु में उन्होंने ‘ओडेसी आफ हाटस’ नामक ग्रन्थ की रचना की। वृद्धावस्था में भी वे चैन से नहीं बैठे रहे।

ग्लैडस्टन की तरह ही जार्जलायड भी ब्रिटेन के मूर्धन्य राजनेता रहे हैं। 75 वर्ष की आयु में भी उनकी कार्यक्षमता नौजवानों जैसी थी। चर्चिल ने दूसरे विश्व युद्ध में जब ब्रिटेन का प्रधान मन्त्रित्व सम्हाला तो उनकी आयु 80 वर्ष थी। जनरल मेक आर्थर 73 वर्ष की आयु में भी वैसे ही सक्रिय थे, जैसा 45 वर्ष की आयु में उल्लेखनीय है कि उन्होंने 45 वर्ष की आयु में ही सैनिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण कमान सम्हाली थी।

आठवीं जर्मन सेना का सेनापतित्व जब पालशन हिण्डैन वर्ग को सौंपा गया था, तब उनकी आयु 67 वर्ष की थी। 78 वर्ष की आयु में वे पार्लियामेंट के अध्यक्ष चुने गए। नौ वर्ष तक उन्होंने यह दायित्व कुशलतापूर्वक सम्हाला और 87 वर्ष की अवस्था में स्वर्गवासी हुए। हैनरी फिलिप मिटेन जब फ्राँस के प्रधानमंत्री बने तब वे 84 वर्ष के थे। उसी देश की नेशनल असेम्बली के अध्यक्ष स्टवर्ड हैरियो 71 वर्ष की आयु में उस पद के लिए चुने गये। 84 वर्ष की आयु में जब उनका स्वर्गवास हुआ, तब तक वे उस पर के कर्तव्यों को बड़ी कुशलतापूर्वक निभाते रहे। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति सिगमन 80 वर्ष की आयु में भी पूरी तरह क्रियाशील रहे।

कहा जा चुका है कि सफलता और कार्यक्षमता का आयु से कोई संबंध नहीं है। उत्साह, लगन और संकल्प बना रहे तो किसी भी आयु या स्थिति में युवा रहा जा सकता है। गोस्वामी तुलसीदास 50 वर्ष की आयु के बाद रामचरित मानस लिखना आरम्भ किया था और दो वर्ष की अवधि में उसे समाप्त कर विश्व साहित्य की महत्वपूर्ण देन देकर विश्व को उपकृत किया। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 90 वर्ष की आयु में अपना एक उपन्यास पूरा किया था।

यौवन अथवा सक्रियता का आयु विशेष से संबंध नहीं है। वह वृद्धावस्था में भी अक्षुण्ण रह सकता है तो बचपन में भी प्रतिभा बनकर फूट सकता है। कई बार यह सक्रियता अथवा क्षमता बचपन में ही आश्चर्यजनक रूप से विकसित होती देखी गई है। इसे सौभाग्य कहें अथवा पूर्वजन्मों के संचित संस्कार। परंतु संसार में ऐसी कई विभूतियाँ हुई हैं, जिन्होंने खेलने खाने की उम्र में ही अद्वितीय उपलब्धियाँ अर्जित कर दिखाई। मुगल सम्राट अकबर 14 वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठा था और 18 वर्ष की आयु में उसने बैरम खाँ को हटाकर स्वतंत्र रूप से कार्य भार सम्हाला था। सम्राट अशोक जब सिंहासनारूढ़ हुए थे तो उनकी आयु मात्र 20 वर्ष थी। छत्रपति शिवाजी ने मात्र 19 वर्ष की आयु में तोरण का किला जीता था। इसी प्रकार महाराजा रणजीत सिंह ने भी 19 वर्ष की आयु में ही लाहौर पर विजय प्राप्त की थी। विश्व विजय के अभियान पर निकलते समय सिकन्दर की आयु मात्र 20 वर्ष थी। जूलियस सीजर ने भी 24 वर्ष की आयु में एक भयंकर डाकू गिरोह को गिरफ्तार किया था।

प्रसिद्ध साहित्यकार विक्टर ह्यूगो ने 14 साल की अवस्था तक तीन हजार से भी अधिक कविताएं लिख डाली थी। महाकवि गेटे ने 10 साल की उम्र में अपना पहला नाटक लिखा था। संत ज्ञानेश्वर ने गीता पर अपनी टीका ज्ञानेश्वरी 15 वर्ष की आयु में लिख डाली थी। सिगमंड फ्रायड ने 19 वर्ष की आयु में ही मनोविज्ञान के क्षेत्र में अपना क्रान्तिकारी सिद्धान्त प्रतिपादित किया था।

प्रसिद्ध कवि गेटे ने 14 वर्ष की आयु में ही अपनी प्रसिद्ध रचना ‘थाडस इन द डिस्टेटो आव जीसस क्राइस्ट इन टू हेल’ पुस्तक लिखी और ख्याति अर्जित की। रूसी कवि पुश्किन ने 10 वर्ष की आयु में ही फ्रेंच भाषा में एक कविता और एक नाटक तैयार कर लिया था।

वैज्ञानिक क्षेत्र में कितनी ही ऐसी प्रतिभाएं हुई हैं जिन्होंने छोटी उम्र में ही बड़े आविष्कार किए। एली ह्विटवी ने 28 वर्ष की आयु कपास ओटाने की मशीन का आविष्कार किया। चार्ल्स मार्टिन हाल ने 23 वर्ष की अवस्था में विद्युत संश्लेषण द्वारा एल्युमीनियम तैयार करने की नई विधि पेटेण्ट कराई। सैम्युअल कोल्ट ने 26 वर्ष की आयु में ही रिवाल्वर का मॉडल तैयार किया, जिसे बाद में धातु का बनाकर 21 वर्ष की आयु में रिवाल्वर का आविष्कार कर दिया। एलेग्जेण्डर ग्राह्मवेल ने 20 वर्ष में टेलीफोन आविष्कार के लिए प्रयत्न आरम्भ कर दिया तथा 29 वर्ष की आयु में ही सफल टेलीफोन यंत्र का आविष्कार कर उसे पेटेण्ट करा लिया। वायुयान के आविष्कारक ‘विल्वट राइट’ और ‘आल्वर राइट’ बीस और तीस वर्ष की आयु के बीच ही वायुयान बनाकर उसको उड़ाने का परीक्षण करने लगे थे। शक्ति चालित वायुयान उड़ाकर जब उन्होंने पूरे संसार को आश्चर्यचकित कर दिया था तब आर्विल की आयु 32 वर्ष बिरबल की उम्र 36 वर्ष थी। बिजली का मतदान यंत्र पेटेण्ट कराने वाले वैज्ञानिक ‘कोलवर्ट’ की आयु मात्र 21 वर्ष थी। लोगों ने जब इस किशोर को देखा तो दंग रह गये।

वृद्धावस्था में युवकों की सी सक्रियता बरतने वाले और अल्पायु में ही प्रौढ़ परिपक्वता का परिचय देने वाले इन उदाहरणों से सिद्ध होता है कि सफलता अथवा प्रतिभा के विकास का आयु से कोई संबंध नहीं। आयु न तो कार्यक्षमता को मंद बनाती है और न ही उसे उत्तेजित करती है। कार्यक्षमता या सफलता का आधार है सुव्यवस्थित योजना, प्रखर बुद्धि और सघन प्रयास। इस आधार पर किसी भी आयु में सफल हुआ जा सकता है, प्रगति की जा सकती है।


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