“गर्मी आई और धरती के जलबिन्दु भाप बनकर आकाश में उड़ गये। उनने अपने को बादल के रूप में पाया और इतराने लगे कि हम धरती वालों से बहुत ऊपर हैं।
सर्दी आई उसने बादलों को ओस और कुहरे के रूप में बदल कर धूलि में छितराने के लिए विवश कर दिया। जल बिन्दुओं की समझ में यथार्थता आई। बड़प्पन उनका नहीं सर्दी और गर्मी का था।’’