पिरामिडों में अंकित सन् 2000 की दुनिया

February 1981

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“सब लोग ऊंटों की सवारी नहीं करेंगे, हवा से भी अधिक तेज गति से चलने और आकाश में उड़ने में सक्षम हो जायेंगे, मौसम पर काबू कर लेंगे और दुनिया में जन्नत (स्वर्ग) की सी सहूलियतें तथा ऐशो आराम के सामान नसीब हो सकेंगे, तब एक ऐसी लड़ाई लड़ी जाएगी जिसमें दुनिया के अधिकाँश लोग मारे जायेंगे। उस लड़ाई के समय कुदरत में भी कुछ ऐसे फेर बदल होने लगेंगे जिनके मारे सारा संसार दोजख में बदल जाएगा।”

यह भविष्यवाणी अंकित है कि मिश्र की राजधानी से 9 मील की दूरी पर बने पिरामिडों पर ये भविष्यवाणियाँ प्रतीकात्मक भाषा में लिखी गई हैं, जिन्हें पढ़ पाने में थोड़े ही विद्वान सफल हो सके हैं, पर जिनने सफलता प्राप्त की है, उन्होंने इन प्रतीकों की जो व्याख्या की है वे अब तक अधिकाँश सही सिद्ध हुई हैं। इसलिए यह संदेह करने का कोई कारण नहीं है कि विश्व युद्ध, महामारी, अकाल आदि का संकेत देने वाली उपरोक्त भविष्यवाणियाँ गलत सिद्ध होंगी।

मिश्र दुनिया का बहुत प्राचीन देश है। वहाँ की सभ्यता अति प्राचीन सभ्यताओं में मानी जाती है। यद्यपि मिश्र की सभ्यता और संस्कृति के अब अवशेष ही बचे हैं, परंतु जो अवशेष बचे हैं उनसे सिद्ध होता है कि अब से तीन चार हजार साल पहले तक वहाँ के लोग काफी उन्नत जीवन व्यतीत करते थे। उस समय वहाँ का कला-कौशल भी बहुत उन्नत था। इसका परिचय देने वाले पिरामिड इस बात के साक्षी हैं। मिश्र को यों पिरामिडों का देश कहा जाता है, परन्तु काहिरा से पूर्व की और स्थित तीन पिरामिडों का समूह संसार के सात आश्चर्यों में गिना जाता है। बाकी छह आश्चर्य हैं बेबीलोन के झूलते बगीचे, चीन की दीवार, ताजमहल, पीसा का बुर्ज, ओलम्पिया में जूपिटर की विशाल मूर्ति तथा सेण्ट पीटर का गिरजाघर।

काहिरा के पास बने इन पिरामिडों के संबंध में समझा जाता है कि ये अब से 5500 वर्ष पूर्व से 3000 वर्ष पूर्व तक की अवधि में बनाये गये। यहाँ पर बड़े-बड़े पत्थरों को एक पर एक चिन कर सीढ़ियों जैसा बनाया गया है। नीचे का भाग बहुत बड़ा है और वे ज्यों-ज्यों ऊपर की ओर उठते गये हैं त्यों-त्यों पतले होते गए हैं। इनका निर्माण देखकर वास्तुशिल्प और भवन निर्माण कला के विशेषज्ञों को आज भी दंग रह जाना पड़ता है। पत्थर की चट्टानों से बने इन स्मारकों का निर्माण किस प्रकार किया गया होगा, यह जानना तो दूर रहा, इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती।

इनके निर्माण में प्रयुक्त किये गये अधिकाँश पत्थर बारह फुट से अधिक ऊंचे हैं। उनकी सतह भी इतनी ही लंबी और चौड़ी है। बारह फुट ऊंचे और बारह फुट लंबे-चौड़े ये पत्थर किस प्रकार इतनी ऊंचाई तक चढ़ाये गये होंगे यह समझ पाना कठिन है। आधुनिक टेक्नोलॉजी और विकसित भवन निर्माण के यंत्र उपकरणों का सहारा लेकर भी पिरामिडों में लगे पत्थरों के एक कोने जितने वाले डाट पत्थर को भी पिरामिडों जितनी ऊंचाई तक ले जाना कठिन है फिर पूरे पत्थर को तो इतनी ऊंचाई तक ले जाने की बात सोची भी नहीं जा सकती।

उल्लेखनीय है कि पिरामिडों का निर्माण या तो मिश्र के राजाओं की स्मृति सुरक्षित करने के लिए किया गया है अथवा वे किन्हीं धार्मिक स्थलों के रूप में बनाये गये हैं। इनमें जो सबसे बड़ा स्तूप हैं वह राजा च्योप्प की कब्र पर बनाया गया है। इसके निचले भाग ने 13 एकड़ जमीन घेर रखी है और लगभग 13 लाख पत्थरों के बड़े-बड़े टुकड़े लगे हुए हैं। कहा जा चुका है कि अधिकांश पत्थर 1500 घनफुट से भी अधिक आकार वाले हैं और उनका वजन ढाई टन से भी अधिक है। इतने भारी और इतने बड़े पत्थरों को बीसियों फुट ऊंचाई तक कैसे पहुँचाया गया होगा, यही एक आश्चर्य का विषय है। उल्लेखनीय है इन पिरामिडों में सबसे बड़ा पिरामिड 450 फीट ऊंचा तथा सबसे छोटा 140 फुट ऊंचा है।

आश्चर्य यहीं तक सीमित नहीं रह जाता। इससे भी बड़ा आश्चर्य यह है कि पिरामिडों के निर्माण में प्रयुक्त पत्थर बड़ी सफाई के साथ काटे और तराशे गये हैं और इतनी मजबूती से उन्हें एक के ऊपर एक जमाया गया है कि उनके बीच में बाल बराबर भी जगह नहीं है। मिश्र एक रेगिस्तानी इलाका है। इसलिए वहाँ पानी आदि के साधन जुटाना और वह भी इतने बड़े निर्माणों के लिए, कल्पनातीत विषय ही है। अस्तु इनके बारे में यही अनुमान लगाया जाता है कि इनमें निर्माण में पानी आदि का उपयोग सम्भवतः नहीं ही किया गया होगा।

इनकी बाह्य और आँतरिक रचना को देखते पर इस बात का अनुमान लगा पाना कठिन है कि इनके निर्माण में कितने प्रशिक्षित और दक्ष, अनुभवी शिल्पियों का योगदान रहा होगा। इनकी एक विशेषता यह भी है कि इनमें प्रयुक्त पत्थरों का माप पिरामिडों के भीतरी कक्ष और उन तक पहुँचने का मार्ग इतना छोटा है कि कोई भी व्यक्ति इनके पीछे विद्यमान रहस्य का अनुमान नहीं लगा सकता। सुप्रसिद्ध इतिहास लेखक यहूदी विज्ञान ने इन पिरामिडों के रहस्यों पर प्रकाश डालते हुए सिद्ध किया है कि इनका निर्माण बहुद्देशीय प्रयोजनों से किया गया है। इनमें से एक तो तत्कालीन आविष्कारों और ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अर्जित उपलब्धियों का अंकन था। इन स्मारकों में उस समय की विभिन्न कलाओं, गणित और ज्यामितीय अन्वेषणों तथा नक्षत्र विज्ञान की विविध उपलब्धियों का प्रतीकात्मक चित्रण किया गया है।

जोसेफस के अनुसार बड़े पिरामिडों में नक्षत्र विज्ञान संबंधी बहुत-सी बातों, सिद्धान्तों का विवरण मिलता है। इनमें नक्षत्रों से संबंधित विभिन्न चक्रों में बीती घटनाओं अर्थात् इतिहास के अतिरिक्त आने वाली घटनाओं का विवरण भी अंकित है। इन पिरामिडों के संबंध में यह तथ्य बहुत ही विस्मयकारी है कि ये मिश्र देश की बीचों बीच तो स्थित है ही पृथ्वी के भी बीचों बीच स्थित है तथा उनकी स्थिति से यह बात प्रमाणित होती है कि इनके निर्माणकर्ताओं को उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों की स्थिति के संबंध में भी पता था। उनकी स्थिति और सूर्य की गतिविधियों के बीच एक सुनिश्चित संबंध तो है ही, उन पर जो भविष्यवाणियाँ अंकित की गई हैं, उनका आधार ध्रुवतारे की स्थिति है। जोसेफस के अनुसार इनके निर्माण का उद्देश्य न तो किसी की स्मृति में किया गया है तथा न ही राजा महाराजाओं के शव को सुरक्षित रखने के लिए किया गया है। ये उद्देश्य तो गौण है, इनका मूल उद्देश्य एक ऐसे निर्माण को खड़ा करना रहा है जो भविष्य में आने वाली घटनाओं के संबंध में लोगों को संकेत देता रहे।

किन्तु ये भविष्यवाणियाँ जिस प्रकार अंकित की गई हैं, वे न तो किसी भाषा में लिखी गई हैं और न ही चित्रों के रूप में बनाई गई हैं। यदि कोई भाषा में लिखी भी गई है तो उसके जानकार इस समय तो पृथ्वी पर कम से कम नहीं ही हैं। खगोल शास्त्रियों का मत है कि यह भाषा कुछ सार्वभौम सिद्धान्तों पर आधारित है जो पृथ्वी तथा ब्रह्मांड के गणितीय और ज्यामितीय नियमों से संबंध रखते हैं। इस पद्धति का इस्तेमाल इस उद्देश्य से किया गया था कि भविष्य में जो भी कोई इन नियमों को जान और समझ सकेगा, वह इन नियमों के आधार पर इन पहेलियों को सुलझा लेगा तथा आने वाले कल की घटनाओं और सम्भावनाओं के संबंध में संसार को सचेत कर सकेगा।

सर फिलण्डर्स पैत्री ने लंबे समय तक पिरामिडों के इन प्रतीकों का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है कि पृथ्वी के मध्य भाग में स्थित ये पिरामिड मापन, ज्यामिती तथा खगोल विज्ञान के अनेकों मूलभूत सिद्धान्तों को उद्घाटित करते हैं। इन विशालकाय निर्माणों के भीतरी कक्षों और भागों के संबंध में यह एक रोचक तथ्य है कि ये परस्पर तो संबंधित है ही, पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों से भी इनका संबंध स्थापित करने में सक्षम स्थान है।

पिरामिडों में अंकित भविष्यवाणियों को अब से 50 वर्ष पूर्व पढ़ा जाने लगा था और उनमें प्रयुक्त भाषा को मापन इकाई नाम दिया गया था। जिन लोगों ने इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य किये हैं, उनमें डेविड डेविडसन का नाम सर्वाधिक प्रसिद्ध है। डेविडसन एक मेधावी खगोल शास्त्री और इंजीनियर थे। उन्होंने 25 वर्षों तक पिरामिडों के क्षेत्र में इन निर्माणों के संबंध में खोज की और अपने निष्कर्षों को तथ्य तथा प्रमाणों सहित ‘द ग्रेट पिरामिड- इट्स डिवाइन मैसेज’ पुस्तक में लिखे। इस ग्रन्थ में पिरामिडों से संबंधित अनेक दुर्लभ चित्रों के साथ 97 ऐतिहासिक पुरातत्वीय और खगोल विज्ञान संबंधी तालिकाएं भी दी गई हैं जो पिरामिडों में अंकित भविष्यवाणियों का सार्थक दिशाबोध कराती हैं। डेविडसन के अनुसार पिरामिडों के मापनों के आधार पर पृथ्वी से सूर्य की औसत दूरी, पृथ्वी की सतह और उसके परिक्रमा पथ में आने वाले परिवर्तनों का अध्ययन भी किया जा सकता है।

डेविडसन के अतिरिक्त ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के खगोल विज्ञानी जॉन ग्रीव्ज, सर जॉन मार्शल, लंदन के प्रमुख गणितज्ञ जॉन टेलट तथा एच. स्पेन्सर लुई आदि ने पिरामिडों की रहस्यमय प्रतीकात्मक भाषा पढ़ने में सफलता प्राप्त की है। डेविडसन ने तो सन् 1924 में ही अपनी पुस्तक ‘द ग्रेट पिरामिड इट्स डिवाइन मैसेज’ में लिखा था कि इनमें पृथ्वी के जन्मकाल से लेकर अब तक की तथा आगे के हजारों वर्षों की घटनाएं तथा भविष्यवाणियाँ अंकित हैं। आरम्भ में जिन भविष्यवाणियों का उल्लेख मिलता है उनमें पृथ्वी के जन्म, बाढ़, भूकम्प, महामारियों और युद्धों की घटनाएं हैं जो इतिहास का विषय है। इनमें महान सम्राटों और योद्धाओं का उल्लेख तो है ही युद्धों तथा धार्मिक क्रान्तियों और विश्व के महान संतों का भी वर्णन है।

अब से पाँच हजार वर्ष पूर्व पिरामिड का निर्माण करने वालों ने ईसा से करीब 1500 वर्ष पूर्व से इजराइलवासियों के मिश्र से निकाले जाने की तिथि लिख दी थी। उल्लेखनीय है इनका निर्माण उक्त घटना से भी 3500 वर्ष पूर्व हुआ था। इसके बाद सिकन्दर के उदय, ईसामसीह के जन्म तथा उनके क्रूस पर चढ़ाये जाने की घटना भी पिरामिड की दीवारों पर अंकित है।

सन् 569 में मोहम्मद साहब के जन्म तथा 632 में उनके देहाँत, तेरहवीं शताब्दी में चंगेज-खाँ के उदय, 1280 में बारूद के आविष्कार, 18 वीं-19 वीं शताब्दी नैपोलियन के उदय, वाटरलू की लड़ाई तथा नेपोलियन की पराजय और मृत्यु, सन् 1833 में तुर्की के स्वतन्त्र होने, 1854, 56 में रूस और टर्की के बीच क्राइमन की लड़ाई आदि के संबंध में भी स्पष्ट भविष्य संकेत दिये गये हैं।

पिरामिडों की भाषा पढ़े जाने से पूर्व ईसा के जन्म तथा कार्यकाल के संबंध में भारी मतभेद था। विशेषज्ञों ने ईसा के जन्म की विभिन्न तिथियाँ निर्धारित कर रखी थीं, जो 1 अक्टूबर से 23 मार्च तक है। परन्तु पिरामिडों की जब अन्य भविष्यवाणियाँ या ऐतिहासिक घटनाएं सही निकलीं तो विशेषज्ञों ने इस संबंध में भी पिरामिडों की सूचनाओं को प्रामाणिक मान लिया, जिसके अनुसार ईसा की जन्म तिथि 4 अप्रैल सिद्ध होती है। इसी प्रकार एक कक्ष में ईसा के साढ़े तैंतीस वर्ष जीवित रहने का संकेत मिलता है। पूरी तरह सही गणना के अनुसार ईसा को 5 अप्रैल सन् 30 के दिन क्रूस पर चढ़ाया गया।

कहा जा चुका है कि पिरामिडों में उनके निर्माण पूर्व से लेकर अब तक के इतिहास और आगे की भविष्यवाणियाँ अंकित हैं। उन सबका संकलन किया जाए तो एक विशालकाय ग्रंथ तैयार हो सकता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि पिरामिडों में पृथ्वी के जन्म से लेकर समाप्त होने तक का इतिहास या भविष्यवाणियाँ अंकित हैं। आज उन सबका उल्लेख नहीं किया जा सकता। इस शताब्दी में सही सिद्ध हुईं भविष्यवाणियों का उल्लेख कर ही संतोष करना पड़ेगा, जो मुख्य-मुख्य इस प्रकार हैं। जो भविष्यवाणियाँ सही सिद्ध हो चुकी हैं। वे इस प्रकार हैं-

(1) सन् 1909 में रूस और यूरोप के प्रमुख देशों के बीच हुई महत्वपूर्ण संधि।

(2) सन् 1911 में चीन की क्रान्ति तथा अगले वर्ष वहाँ प्रजातंत्र की स्थापना।

(3) सन् 1913 में जब बालकन प्रदेश की स्थिति का तनावपूर्ण बनना तथा यूरोप में मंदी और असुरक्षा का वातावरण बनना।

(4) सन् 1914 में ब्रिटेन द्वारा जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा।

(5) सन् 1917 में अमेरिका द्वारा भी प्रथम विश्वयुद्ध में कूद पड़ने की घोषणा।

(6) सन् 1918 में विश्व युद्ध का अंत।

(7) सन् 1918 में सोवियत गणतंत्र का जन्म तथा दूसरे वर्ष पूर्व रूस में क्रान्ति।

यह वे प्रमुख घटनाएं हैं जो डेविडसन ने बीसवीं शताब्दी के संबंध में पिरामिडों पर अंकित भविष्यवाणियों को पढ़कर बताई थीं। चूँकि उन्होंने अपनी पुस्तक सन् 1924 में लिखी थी। इसलिए यह भी कहा जा सकता है कि इन्हें ऐतिहासिक कालक्रम देखकर लिख दिया गया होगा। परन्तु 1924 से अब तक 56-57 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। इस अवधि के लिए जो भविष्यवाणियाँ की गई थीं वे शत-प्रतिशत सही सिद्ध हुई हैं इसलिये यह मानने का कोई कारण ही नहीं हैं कि यह सब तीर-तुक्का है अथवा इतिहास देखकर लिख दिये गए विवरण हैं। सन् 1924 के बाद डेविडसन ने अपनी पुस्तक में जिन प्रमुख घटनाओं का उल्लेख किया था और जो सही सिद्ध हुईं, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-

(1) सन् 1929 में विश्वव्यापी आर्थिक संकट, मंदी का दौर आना तथा उससे दुनिया के सभी देशों का प्रभावित होना।

(2) सन् 1933 में हिटलर द्वारा जर्मनी की सत्ता पर संपूर्ण अधिकार कर लेना।

(3) सन् 1939 में दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत और 1945 में अंत, विश्व युद्ध के परिणाम स्वरूप जर्मनी का दो टुकड़ों में विभाजन।

(4) सन् 1947 में भारत द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति तथा भारत का दो टुकड़ों में बंट जाना।

(5) सन् 1947 में इजराइल की स्थापना। यहूदियों का पुनर्स्थापन।

(6) सन् 1960 में अफ्रीका 16 देशों का स्वतंत्र होना।

(7) सन् 1965 में अमेरिका द्वारा वियतनाम पर हमला। पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध।

(8) सन् 1969 में पहली बार मनुष्य द्वारा चन्द्रमा पर पहुँचना।

(9) सन् 1971 में भारत से अलग हुए पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बंट जाना तथा स्वतंत्र बंगला देश का उदय।

(10) चीन में भयंकर भूकम्प।

(11) सन् 1980 में ईराक और ईरान के बीच घमासान लड़ाई।

इसके बाद की भविष्यवाणियाँ अभी सही सिद्ध होना शेष हैं जिनके अनुसार ‘‘सन् 1982 से सन् 2000 तक विश्व-व्यापी हलचलें होंगी। मौसम आश्चर्यजनक रूप से बदलेंगे तथा प्राकृतिक उत्पातों में भी बढ़ोत्तरी होगी। इसी अवधि में तृतीय विश्व युद्ध की सम्भावना भी है, जिसमें दुनिया के लगभग सभी देश भाग लेंगे तथा भयानक शस्त्राणों का प्रयोग किया जाएगा। इन शस्त्रों के प्रयोग से एक बारगी तो समूची मनुष्य जाति के ही नष्ट हो जाने का खतरा उत्पन्न हो जायेगा। फिर भी कुछ लोग बचेंगे और नये युग का सूत्रपात होगा।’ पिरामिडों में इस नये युग का जमाना रुहानी (आध्यात्मिक युग) नाम दिया गया है। इस युग का नेतृत्व एक ऐसे आध्यात्मिक व्यक्तित्व द्वारा किया जाएगा जो जीवन भर इस नवयुग का ढ़ाँचा तैयार करने तथा पृष्ठभूमि बनाने में लगा रहा है। इतने व्यापक परिवर्तन सन् 1999 तक हो जाने निश्चित बताये गए हैं।’’

पिरामिडों पर अंकित सभी भविष्यवाणियाँ अब तक सही सिद्ध हुई हैं। देखना यह है कि सन् 2000 में नये युग का निर्माण करने में किन अध्यात्मवादियों को श्रेय मिलता है और कौन उस समय की सुखद परिस्थितियों का लाभ उठा सकेंगे।


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