दृश्य संसार के भीतर अदृश्य संसार

February 1981

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जो कुछ दिखाई देता है या प्रत्यक्ष अनुभव होता है, जगत का अस्तित्व वहीं तक सीमित नहीं है। यों बहुत सी वस्तुएं ऐसी भी हैं जो प्रत्यक्ष चर्म-चक्षुओं से नहीं दिखाई देती, उसका कारण उनका दूर स्थित होना है। उदाहरण के लिए दिल्ली में बैठे व्यक्ति के लिए, बहुत दूर की बात तो जाने दें, दूसरा मुहल्ला भी एक तरह से अदृश्य है। आँखों की देखने की क्षमता थोड़ी-सी है और उनसे बहुत थोड़ी दूर तक देखा जा सकता है। बीच में यदि कोई आवरण आ जाएं तो उसे भी वेध कर देख पाना असम्भव हो जाता है। अनुभव भी अपने आस-पास के कुछ फीट के घेरे के वातावरण का ही होता है। उसके आगे क्या हो रहा है? यह जान पाना और अनुभव करना ज्ञानेन्द्रियों के बस की बात नहीं। परन्तु उनका भी अस्तित्व है और उन्हें भी स्थूल में गिना जा सकता है।

सौर-जगत में अनेकों ग्रह हैं। नभ-मण्डल में लाखों तारे और नक्षत्र हैं। ब्रह्मांड का अमित विस्तार है। इस विस्तार को स्थूल अस्तित्व में गिना जा सकता है। उन तक पहुँचना सम्भव नहीं हो सका है किन्तु कभी सम्भव हो भी सकता है। उस स्थूल जगत के अलावा एक ऐसा सूक्ष्म जगत भी है जिसका अस्तित्व अपने आस-पास ही है और उसे न चर्मचक्षुओं से देखा जा सकता है, न ज्ञानेन्द्रियों से अनुभव किया जा सकता है। कदाचित कोई ऐसा वैज्ञानिक उपकरण विकसित हो सके, जिसके द्वारा इस सूक्ष्म जगत को देखा जा सके, तो प्रतीत होगा कि अपने शरीर से ही कितनी ही ऐसी सूक्ष्म सत्ताएं चिपटी हुई हैं, जिन्हें देखकर दंग रह जाना पड़ता है। यह जानकर विस्मय विमुग्ध हो जाना पड़ता है कि कदाचित ये अदृश्य सूक्ष्म सत्ताएं सूक्ष्म और दृश्य होतीं तो क्या अपने स्थान से एक इंच भी हटना या हिलना-ढुलना सम्भव हो पाता?

स्थूल और दृश्य जगत के अलावा इसी जगत में ऐसी सूक्ष्म और अदृश्य सत्ताएं भी हैं जो मनुष्य की अपेक्षा काफी बलवान और सामर्थ्यवान हैं। ये सत्ताएं कभी अपने अस्तित्व का परिचय बड़े ही विचित्र ढंग से देती हैं और जब इस तरह की घटनाएं प्रकाश में आती हैं तो उन्हें चमत्कार कहने के अलावा कोई मान्यता बनाना सम्भव नहीं होता।

घटना सन् 1975 की है। लन्दन निवासी श्री एलन और श्रीमती क्रिस्टीन गर्मियों की छुट्टी में उत्तरी ध्रुव की यात्रा करने के लिए निकले उस समय दोनों रूस की सीमा से सटे हुए लैपलैण्ड नामक स्थान से गुजर रहे थे। दोनों बातें करते हुए चल रहे थे। अचानक क्रिस्टीन ने अनुभव किया कि उसका साथी एलन अभी अभी ही जैसे गायब हो गया है। क्योंकि एलन की बात के उत्तर में उसने जो कुछ कहा था उसके बाद उत्तर मिलना तो दूर रहा उसकी पदचाप तक सुनाई देना बंद हो गई। यह सब इतना आकस्मिक हुआ था कि क्रिस्टीन कुछ समझ नहीं पाई थी। उसने पीछे मुड़कर देखा तो दूर तक भी कहीं एलन दिखाई नहीं दे रहा था। जैसे उसे जमीन निगल गई हो, ऐसी ही घटना थी यह। ऐसी घटना पहले कभी कहीं देखने-सुनने में नहीं आई थी इसलिए यह विश्वास बंधते नहीं बनता था कि एलन गायब हो गया है।

श्रीमती क्रिस्टीन ने अपने पति को आसपास इधर-उधर बहुत ढूंढ़ा, तलाशा परन्तु वह कहीं हो तो मिले। उसका कहीं अता-पता नहीं चल रहा था। अपनी खोजबीन का कोई परिणाम न निकलते देखकर क्रिस्टीन ने स्थानीय लोगों की मदद ली। उस क्षेत्र में बसने वाले फिनिश जाति के लोगों ने भी एलन को ढूंढ़ने के लिए काफी श्रम किया, परन्तु कोई परिणाम नहीं निकला। खोजी कुत्तों की सहायता भी ली गई परन्तु खोजी कुत्ते उस स्थान पर आकर रुक जाते, जहाँ से एलन गायब हुआ था। रूसी सेना का एक कैम्प भी पास ही था। यह आश्चर्यजनक घटना सुनकर फौजी अधिकारियों ने श्रीमती क्रिस्टीन से सहानुभूति व्यक्त की और विशेषज्ञों की सहायता से एलन की खोज की परन्तु उन्हें भी कोई सफलता नहीं मिली। अन्त में निराश होकर श्रीमती क्रिस्टीना अपना अभियान अधूरा छोड़कर वापस लन्दन आ गई। एलन का आज तक कोई पता नहीं चला है।

ऐसी ही घटना मनीला के माध्यमिक स्कूल में पढ़ रहे बारह वर्षीय छात्र कार्बोलिया बलोजा के साथ घटी। सितम्बर 1951 में वह अपने सहपाठियों के साथ खेल रहा था कि अचानक वह गायब हो गया। उसके सहपाठी हैरान रह गए कि देखते ही देखते कार्बोलिया कहाँ चला गया? फिर जिस रहस्यमय विचित्र ढंग से वह गायब हुआ था, इसी प्रकार वह वापस प्रकट भी हो गया। इसके बाद तो ऐसा सिलसिला चला कि वह प्रायः कक्षा में बैठे-बैठे ही गायब होने लगा। कई बार वह गायब होता और फिर प्रकट हो जाता। इस संबंध में पूछे जाने पर कार्बोलिया ने बताया कि उसे प्रायः ऐसा अनुभव होता है कि परी जैसी कोई सुन्दर लड़की उसे अपने पास बुला रही है। वह सहज आकर्षण वश उसके समीप जाने की इच्छा से आगे बढ़ने की कोशिश करता है कि यकायक हलका हो जाता है और हवा में उड़ जाता है। उसे नहीं मालूम कि वह गायब हो जाता है परन्तु जिस समय वह अन्य सहपाठियों और कुटुम्बी-जनों को गायब हुआ प्रतीत होता है, उस समय वह परी जैसी लड़की के साथ खेल रहा होता है।

मनीला के जियोरा स्कूल का यह छात्र कई बार गायब हुआ। एक बार तो वह दो दिन तक गायब रहा। पुलिस में रिपोर्ट कराई गई और पुलिस इस मामले की छानबीन करने लगी। लेकिन उसके हाथ भी कुछ नहीं लगा। अन्त में पुलिस हार-थक कर रह गई। विवश पिता ने उसे एक कमरे में बंद कर दिया परन्तु कार्बोलिया को वहाँ से गायब होने में भी कोई परेशानी नहीं हुई।

अन्त में घटनाओं को किन्हीं शैतानी शक्तियों का चक्कर मानकर कार्बोलिया के पिता ने चर्च के पादरी से अपना दुखड़ा रोया, पादरी ने कार्बोलिया को इस शैतानी चक्कर से छुड़ाने के लिए प्रार्थना की और जब कहीं जाकर उसका गायब होना बन्द हुआ।

अमेरिका के टेनेसी राज्य में गालारिन नामक स्थान पर डेविंग लैंग के साथ भी इसी प्रकार गायब होने की घटना घटी। यह 23 सितम्बर 1808 की बात है। डेविड अपने क्षेत्र का प्रतिष्ठित व्यक्ति था, लोग उसे सम्मान की दृष्टि से देखते थे और उसका दबदबा भी मानते थे क्योंकि वह जमींदार था। उस शाम वह अपने दो मित्रों के साथ घूमने के लिए निकला और घूमते समय ही रास्ते में अचानक गायब हो गया। ऐसा भी नहीं था कि वह अपने मित्रों की दृष्टि बचाकर कहीं छुप गया हो अथवा किसी ने उसका अपहरण कर लिया हो। क्योंकि जिस समय वह अंतर्ध्यान हुआ उस समय वह अपने मित्रों से बात कर रहा था और उसकी बात अधूरी ही थी कि वह अंतर्ध्यान हो गया। मित्रों ने वहाँ खोज की परन्तु डेविड का कहीं भी पता नहीं चला। मित्रों ने घरवालों को इसकी सूचना दी, पुलिस में भी रिपोर्ट की गई। हर तरह से खोजबीन हुई परन्तु डेविड का कहीं भी पता नहीं चला। जिस स्थान पर वह गायब हुआ, वहाँ कोई गड्ढा अथवा झाड़ी भी नहीं थी, जिसमें कि वह छुप जाता। उस स्थान के आस-पास वाले क्षेत्र सहिता नगर का कोना-कोना छान मारा किन्तु डेविड का पता नहीं चलना था और नहीं ही चला।

डेविड कोई साधारण व्यक्ति तो थे नहीं, प्रतिष्ठित जमींदार थे, अतः उनकी खोज के लिए पत्रकारों से लेकर जासूसों तक ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया। सरकार ने इस घटना की जाँच के लिए एक आयोग ही नियुक्त कर दिया। इस आयोग ने वहाँ से निवासियों से कई तरह के प्रश्न पूछे, इस क्षेत्र की जानकारियाँ एकत्रित की, मिट्टी, पानी और घास आदि का परीक्षण किया गया। देखा गया कि पहले भी कभी कोई इस तरह की घटना घटी थी क्या? लेकिन इस तरह की कोई घटना पहले कभी न घटी थी, इसका कोई प्रमाण तो क्या विवरण भी नहीं मिला। हर तरह से जाँच-पड़ताल करने पर आयोग के अध्यक्ष, जो एक भूतपूर्व न्यायाधीश थे, ने लिखा, यह एक अविश्वसनीय सत्य घटना है। जिसका समाधान बहुत खोजने पर भी नहीं मिल पाया।

सन् 1920 में लंदन के युवा साँसद पिक्टर ग्रेसर एक दुकान से निकल रहे थे कि लोगों के देखते ही देखते गायब हो गए। उनकी खोज की गई, प्रेतविद्या के जानकार लोगों की भी सहायता ली गई, परन्तु पिक्टर ग्रेसर का कहीं भी पता नहीं चला, न कोई सूत्र हाथ लगा, जिसके आधार पर इस संबंध में निश्चयपूर्वक कुछ कहा जा सके।

13 जुलाई 1950 को पोलैंड निवासी पादरी वोनिस्की अपने किसी मित्र से मिलने के लिए घर से निकले। वे सौ कदम भी नहीं जा पाए होंगे कि अचानक अंतर्ध्यान हो गये। वोनिस्की बहुत प्रतिष्ठित और लोक-प्रिय पादरी थे। उनके गायब होने की घटना पर बड़ा तहलका मचा। पुलिस ने भी जी-तोड़ कोशिश कर डाली परन्तु उनका कहीं भी पता नहीं चला कि वे कहाँ गए?

व्यक्तियों के इस प्रकार चलते-फिरते या देखते ही देखते गायब हो जाने की असंख्य घटनाएं हैं। इस संदर्भ में वारमूडा के रहस्यमय त्रिकोण की चर्चा अप्रासाँगिक नहीं होगी, जिसे शैतान के त्रिकोण के नाम से जाना और संबोधित किया जाता है। वारमूडा से फ्लोरिडा तक, फ्लोरिडा से सटगामो और सटगामो से वारमूडा तक एक ऐसी सीमा रेखा बनती है, जो रेखा गणित के त्रिकोण की तरह आकृति बनाती है। इस क्षेत्र में कोई भी विमान या जहाज पहुँच जाता है तो उसका फिर पता नहीं चलता। वह गायब ही हो जाता है। वहाँ से किसी प्रकार लौटकर आ सके कुछ लोगों का कहना है कि उस क्षेत्र में दिशा सूचक यंत्र सहित वे सभी उपकरण काम करना बंद कर देते हैं, जिनके माध्यम से बाहरी जगत के साथ संपर्क रखा जा सके। अब तक कई एक जहाज तथा विमान इस शैतानी त्रिकोण की चपेट में आकर लुप्त हो चुके हैं। ऐसा भी नहीं है कि वे नष्ट हो जाते हों। क्योंकि नष्ट होने या कोई दुर्घटना घटने की स्थिति में उन जहाजों या विमानों के कुछ तो अवशेष प्राप्त होते। कोई तो ऐसा चिन्ह मिलता कि कहा जा सके ये यान दुर्घटना ग्रस्त होकर नष्ट हो गये हैं। किन्तु ऐसे कोई चिन्ह नहीं मिले, न ही उन यानों के अवशेष ही प्राप्त हो सके।

इन घटनाओं से सिद्ध होता है कि परिचित और प्रत्यक्ष अनुभव में आने वाले संसार के भीतर ही कुछ ऐसी अदृश्य सत्ताएं भी हैं जिन्हें अभी तक जाना-पहचाना नहीं जा सका है। सूक्ष्म होने के कारण ये किन्हीं यंत्रों की पकड़ में भी नहीं आती। ये अदृश्य और सूक्ष्म सत्ताएं अच्छी भी हो सकती हैं और बुरी भी। इन्हें अदृश्य लोक या अदृश्य दुनिया भी कहा जा सकता है। जिस प्रकार मानवीय सत्ता या अन्य प्राणियों के तीन शरीर हैं- स्थूल, सूक्ष्म और कारण। उसी प्रकार प्रत्यक्ष जगत के भीतर भी स्थूल, सूक्ष्म और कारण जगत की तीन पर्तों को भारतीय मनीषियों ने स्वीकार किया है। देखते ही देखते गायब हो जाने वाली घटना सूक्ष्म परत की ही गतिविधि है। स्थूल-जगत के रहस्य ही अभी पूरी तरह नहीं जाने जा सके हैं, तो सूक्ष्म जगत की कौन कहे? परन्तु यह निर्विवाद है कि संसार, जो अपने आसपास ही दिखाई देता है, वह उतना ही नहीं है जितना कि दिखाई देता या अनुभव होता है। उसके अस्तित्व की अनेकों गहरी परतें हैं। कदाचित उन्हें जाना जा सके और उपयोग में लाने की सामर्थ्य अर्जित की जा सके तो मनुष्य की शक्ति सामर्थ्य अनन्त गुना बढ़ और विकसित हो सकती है, जिसकी कल्पना करना सम्भव नहीं है।


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