मरणोत्तर जीवन की अनुभूतियाँ

April 1980

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मरणोपरान्त जीवन के सम्बन्ध में प्रत्यक्ष अनुभवों के उदाहरणों से परिपूर्ण ‘लाइफ आफ्टर लाइफ’ पुस्तक का प्रकाशन अभी हाल ही में हुआ है। इसके लेखक डा0 रेमाँड ए. मूडी है। जिन्होंने 50 ऐसे व्यक्तियों के अनुभवों को इस पुस्तक में संग्रहीत किया है। जिन्हें डाक्टरों ने मृतक घोषित कर दिया था किन्तु थोड़ी देर बाद वह पुनः जीवित हो उठे। स्वर्गीय अनुभवों से युक्त इस पुस्तक के कई बार संस्करण प्रकाशित हो चुके है।

रेमाण्ड ए. मूडी जब वर्जोनिया विश्व विद्यालय में छात्र थे तब उनके एक मनोविज्ञान के प्रोफेसन ने बताया कि अपनी बीमारियों के दौराव वह दो बार मर चुके है। उनके कथन को लेखक ने टेपरिकार्ड कर लिया था। उनके अनुसार मृत्यु के बाद महाशान्ति प्राप्त होती है।

लेखक जब कारोलिना विश्वविद्यालय में प्राध्यापक था। तब उसके एक छात्र ने अपनी दादी की मृत्यु के बाद पुनः जीवित हो उठने की बात बताई। जिसमें मृत्यु के बाद अंधेरी गुफा, घण्टियों की आवाज, महाप्रकाश व पितरों की आत्मा से साक्षात्कार की बात उस महिला ने स्वीकार की थी।

एक व्यक्ति जिसकी चोट लगने से अचानक मृत्यु हो गई थी और थोड़ी देर बाद वह पुनः जीवित हो उठा। उसने अपना अनुभव बताया - “चोट की जगह एक क्षण के लिए दर्द महसूस हुआ और फिर सारा दर्द गायब हो गया। मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैं अन्धकार में उड़ता जा रहा हूँ। यद्यपि शीत ऋतु थी फिर भी अन्धकार में तैरता हुआ गर्मी और दिव्यतम सुख का अनुभव किया।”शारीरिक पीड़ा के असह्मय होते ही डाक्टरों द्वारा मृत घोषित एक व्यक्ति ने जीवित होने के बाद बताया कि उसे यह शरीर छोड़ते ही नये किस्म का शरीर मिल गया था। उसने घण्टियों की आवाज सुनी, अंधेरी सुरंग में जाने और बाद में अपने पूर्व मित्रों व पितरों से मिलने की बात कही। उस व्यक्ति ने यह भी बताया कि उसने अपने पूर्व मृत पितरों के साथ एक दिव्य प्रकाश युक्त आत्मा को देखा जिसमें प्यार और ममता का निर्झर बह रहा था। इस प्रकाश ने उसके पूर्व जीवन में घटित घटनाओं अर्थात् कार्यां का नक्शा दिखाया। उस दिव्य वातावरण से वह लौटना भी न चाहता था किन्तु अचानक उसे अपने इस जीवन का स्मरण हो आया और वह जीवित हो उठा। उसने बताया कि उस अलौकिक वातावरण का वर्णन वाणी से करने में असमर्थ है।

मृत घोषित होने के बाद पुनः जीवित होने वाली एक महिला ने बताया कि - “मैंने अखण्ड शान्ति, परम आनन्द और सुख के अलावा अपने मृत्यु काल में और कुछ भी नहीं महसूस किया।”

वियतनाम युद्ध में गोली लगने से मरा और बाद में जीवित होने वाले सैनिक ने बताया कि- “गोली लगते ही मैंने परमशान्ति और राहत की साँस ली। मुझे कुछ भी कष्ट नहीं हुआ। असके पूर्व इससे ज्यादा सुख मैंने कभी नहीं महसूस किया था।”

एक मृत व्यक्ति ने बताया कि मैंने मरते समय पाया कि एक ऐसी सीमा रेखा पर पहुँच गया हूँ जहाँ पर दिव्य प्रकाश पुँज के रुप में एक आत्मा मिली उसने बड़े ही प्रेम से, ममता व अपनत्व का परिचय दिया। साथही वहाँ पर व्याप्त दिव्य प्रकाश पुँज आत्मा ने उसके जीवन में किये कार्यों से सम्बन्धित नाना प्रकार के प्रश्न भी किये।

एक व्यक्ति का अनुभव है कि मरने के बाद उसने अपने को एक हरे रंग के प्रकाश युक्त मैदान में उड़ते देखा। उस मैदान के पार एक चहार दीवारी है उसके उस पार एक दिव्य ज्योति पुँज व्यक्ति उसे लेने आ रहा था।

एक व्यक्ति ने बताया कि उसने भूरे रंग के कुहरे में अपने को उड़ते देखा था। उसे पार धरती के निवासियों के समान इंसान थे। वहाँ पर बड़ी-बड़ी इमारतें व रोशनियाँ जगमगा रही थी। वहाँ पर उसने कई वर्ष पूर्व मरे चाचा कार्ल को भी देखा। उसे चाचा ने उसे पुनः धरती भेज दिया था।

इस प्रकार की सुखद अनुभूतियाँ उन्हे होती है जो शान्ति और सद्भावनाओं से भरा हुआ जीवन जीते है। जीवन भर छाई रही उत्कृष्टता ही मरण के उपरान्त अपने लिये एक सुखद संसार गढ़ लेती है और उन्हें इस हलकी फुलकी दुनिया में भी स्वर्गीय वातावरण छाया दृष्टिगोचर होता है।

इसके विपरीत जिनने निराशा, दुर्बुद्धि एवं दुष्टता से घिरी मनःस्थिति एवं परिस्थिति में जीवन गुजारा है उन पर इसी स्तर के स्वप्न मरणोत्तर जीवन में छाये रहते है। यह अपना रचा नरक है जो जीवित हरते भी दीखता है और शरीर छोड़ने के उपरानत भी। र्स्वग और नकर भी अपने इसी संस्कार की तरह अदृश्य प्रगति का कोई घटक हो सकता है पर इसमें किस द्वार से प्रवेश किया जाये यह पूर्णतया अपनी ही आदतों पर निर्भर रहता है।

उपरोक्त शोध में ऐसे उत्तर भी मिले है जिसे प्रतीत होता है कि मरने के बाद का समय डरावना भी होता है और नीरस तथा कष्टकारक भी। इसी स्थिति का विवेचन कोई चाहे तो नकर की विभीषिकाओं के साथ भी संगति बिठा सकता है।

एक व्यक्ति का अनुभव है कि जैसे ही वह मरा वह एक अंधकार युक्त सुरंग में पहुँच गया।

एक दूसरे का कहना है कि मर कर वह सर्वप्रथम एक अंधकार युक्त सिलिण्डर में पहुँच गया।

एक मृतक व्यक्ति ने जीवित होने पर बताया कि मेरे मस्तिष्क में एक प्रकार की बुरी भन-भनाहट सुनायी पड़ रही थी, मैं उससे बेचैन हो उठा। उस दृश्य को कभी नहीं भूल सकता।

मरने के बाद भी जीवात्मा अपने मृत शरीर के इर्द-गिर्द मंडलाती रहती है और उसका अस्तित्व बने रहने ते उसके समीप ही बना रहता है। इसलिए स्वजनों द्वारा मृत शरीर को जल्दी ही समाप्त करने का प्रयत्न किया जाता है। इस दृष्टि से शरीरों को बहुत समय तक सुरक्षित रखने का प्रयास अनुपयुक्त प्रतीत होता है। सम्बन्धी लोग मोह वश उसकी स्मृति को बनाये रहने के लिए अवशेषों की रक्षा भी करते पाये जाते है पर मृतात्मा को शान्ति और सद्गति की दृष्टि से यही उचित है कि उसका मोह मृत शरीर से छूट सके ऐसा प्रयत्न किया जाये। उसी में उसके शोक की निवृत्ति और भावी प्रगति का पथ प्रशस्त होता है।

एक व्यक्ति ने बताया कि वह जल में डूब कर मर गया था। मरने के बाद उसकी आत्मा जलाशय से 4-5 फुट ऊँचाई पर रुक गई और वहीं से अपने शरीर को डूबते उतराते देखा था। इस समय वह अपने को अत्यन्त हल्का महसूस कर रहा था।

एक मृतक महिला ने बताया कि मरते ही मैं तैरते-तैरते धीरे-धीरे ऊपर उठने लगी। कोडपिक, कोडपिंक की नर्सों की आवाज सुनी और देखा कि 10-12 नर्सें उसके शरीर को घेर कर खड़ी है। डाक्टर को बुलाया गया। मैंने डाक्टर को अपने कमरे में प्रवेश करते कौतुक देखती रही। मैं स्वयं को अत्यन्त हल्की-फुल्की महसूस कर रही थी। डाक्टर के आदेशानुसार जैसेही डिफिब्रिलेटर मशीन द्वारा मेरे शरीर को झटके दिये गये मैंने सारे शरीर को उछलते पाया, हड्डियों में दर्द हुआ। मैं पुनर्जीवित हो गई।

हर जन्म लेने वाले का मरण निश्चित है, मरण के उपरान्त जीवन का क्रम भी दिन और रात की तरह चलता रहता है। इसका मध्य काल कैसे बीतता है इसका कुछ आभाश उपरोक्त अनुभवों से मिलता है जो थोड़े समय तक मृत्यु की गोद में रहने के बाद वापिस लौटे और अपनी अनुभूतियों को व्यक्त करने में समर्थ रहे।


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