जिन्हें आना हो समय रहते स्वीकृति प्राप्त करें

April 1980

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

गायत्री नगर की इमारत का काम चलाऊ भाग बनते ही उस शिक्षण प्रक्रिया का अब आरम्भ होना है, जो नव-निर्माण के लिए नितान्त आवश्यक होते हुए भी अब तक स्थान न होने के कारण रुकी पड़ी थी। गायत्री नगर का उद्देश्य और स्वरुप अध्यात्म विश्वविद्यालय स्तर का होगा। यों साधन सीमित रहने के कारण उसका विस्तार और कलेवर तो छोटा रहेगा ही। दुर्बल काया में भी उच्चस्तरीय आत्मा का निवास हो सकता है। छोटी इमारत में भी नव सृजन की गंगोत्री किस प्रकार प्रादुर्भूत होती है इसका अीिनव दृश्य अगले दिनों इन्हीं आँखों से देखा जा सकेगा।

जुलाई से गायत्री नगर में सभ प्रशिक्षण चल पड़ेगें। चुग शिल्पियों के पूर्व घोषित सत्रों की क्रम व्यवस्था सुनियोजित ढंग से इसी नई देव नगरी में प्रारम्भ होगी। इस वर्ष नव निर्मित गायत्री शक्ति पीठों में काम करने वाले कार्यकर्ताओं को उन महान् उत्तरदायित्वों के निर्वाह की पात्रता उत्पन्न करने वाले प्रशिक्षण को प्राथमिकता दी जायेगी। उसके लिए न्यूनतम अवधि एक महीना है। अधिक तीन महीना या जतना अधिक सम्भव हो सके उतना उत्तम है।

गायत्री नगर में बसने के लिए अभी उन परिजनों को आमन्त्रित किया है जो मिशन की विचारधारा के साथ लम्बे समय से जुड़े रहे हैं और उसकी दिशाधारा भली प्रकार हृदयगंम कर चुके हैं। अजनबी लोगों को प्रवेश न मिलेगा। उनके लिए यहाँ की गतिविधियाँ अवपेक्षित होंगी। फलतः वे स्वयं हैरान होंगे और यहाँ के व्यवस्था तंत्र को हैरान करेंगे। जो शारीरिक और मानसिक दृष्टि से स्वस्थ है उन्हीं को बुलाया गया है। रुग्ण, जराजीर्ण एवं विकृत स्वभाव के लोगों की सेवा, सहायता करने का जब समय आयेगा तब उन्हें भी बुलाया जायेगा अभी तो उन्हीं के लिए आमन्त्राण है जो यहाँ का वातावरण बनाने में योगदान दे सकने की जिनमें क्षमता एवं तत्परता विद्यमान है। अभी हाथ बंटाने वाले बुलाये गये हैं जिन्हें कन्धे पर लेकर चलना है उनकी बारी बाद में आयेगी।

आर्थिक दृष्टि से स्वावलम्बी लोगों को इस प्रथम चरण में प्रमुखता दी जायेगी। अपने निर्वाह के आर्थिक साधन जिनके पास हैं वे आवें तो मिशन पर आर्थिक भार न पड़ेगा। जो पारिवारिक चिन्ताओं से छुटकारा पा सकें उन्हीं को स्थिरतापूर्वक कुछ करते बन पड़ेगा। अन्यथा देह कहीं मन कहीं रहने की उथल-पुथल में ऐसे ही कुछ आधा-अधूरा सध पाना है। बाल-बच्चों समेत किसी को आने के लिए इस बार नहीं कहा गया है। एकाकी न सही पत्नी समेत सही, इतना ही छोटा कुटुम्ब होना चाहिए। पत्नी भी गुड़िया या संकीर्ण प्रकृति की नहीं होनी चाहिए अन्यथा पति के किये धरे पर पानी फेरती रहेगी।

जिनके निजी आर्थिक साधन नहीं हैं ऐसे भी कुछ व्यक्तियों के निर्वाह की व्यवस्थ्ज्ञा की जायेगी, किन्तु उनके ऊपर अन्यान्यों की जिम्मेदारियाँ नहीं होनी चाहिए। जो अपने को गायत्री नगर में देव परिवार में बसने की मनःस्थिति परिस्थिति में पतो हों वे अपने भूतकाल के अनुभव अभ्यास का तथा वर्तमान परिस्थितियों का विवरण लिख भेजे। तदनुरुप ही उन्हें आने के लिए कहा जायेगा।

जिन्हें स्वीकृति मिले वे गायत्री जयन्ती 23 जून 80 को शान्तिकुन्ज आ जायें। न्यूनतम श्रावणी पूर्णिमा तक यहाँ रहने का कार्यक्रम बनाकर आवे। इस एक मात्र महीने में वे यह अनुमान लगा सकेंगे कि अनुकूलता एवं उपयुक्तता बनी या नहीं। तालमेल बैठा या नहीं। उस अवधिको प्रयोग परीक्ष्ज्ञण का समय माना जाये। इसके उपरान्त ही अन्तिम निश्चय किया जाये कि स्थायी रुप से आना है या नहीं।

भोजनालय के दोनो प्रबन्ध हैं। आश्रम के भोजनालय में भी सम्मिलित रहा जा सकता है और अपने हाथों अथवा मिल-जुलकर भी बनाया जा सकता है। आश्रम भोजनालय में 80/- मासिक का खर्च आता है।

जिन्हें गायत्री नगर में देव परिवार का सदस्य बन कर रहने में रुचि हो वे यथा म्भव जल्दी ही आवेदन पत्र भेजकर स्वीकृति प्राप्त कर लें।

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118