सिंह, सियार और गधा तीनों ने शिकार खेलने का एक सिण्डीकेट बनाया और निश्चय किया कि जो कमाई होगी उसे तीनों मिलकर बाँट लिया करेंगे।
एक दिन सिंह ने एक मोटा हिरन धर दबोचा। फैसले के अनुसार तीनों सदस्य इकट्ठे हुए। गधा पंच बनाया गया था। सो उसने शिकार के तीन भाग किये और सिंह से कहा-जो एक भाग आपको पसन्द हो सो ले लीजिये।
इस पर सिंह कुढ़ गया। शिकार मैंने किया और मिलेगा एक तिहाई ही। यह गधा तो पूरा गधा है सिंह गधे पर भी टूट पड़ा और उसका भी कचूमर निकाल कर रख दिया।
अब दो शिकार सामने पड़े थे। बँटवारा करने के लिए अब की बार पंच सियार को बनाया गया।
सियार ने दोनों लाशें सिंह के हवाले कर दीं और कहा मेरा पेट छोटा-सा है और पुरुषार्थ भी कम है। सो जो आप से बचेगा उतने से ही काम चला लूँगा।
सिंह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने पूछा-भला तुमने इतनी बुद्धिमानी कहाँ से पाई? सियार बोला-गधे के व्यवहार ने मुझे यह पाठ पढ़ाया। दूसरों की गलती से नसीहत लेने लायक अकल हर समझदार में होनी चाहिए, सो हे वनराज! मैंने उसी राह पर चलना अपने लिए उपयुक्त समझा है।