हम निराट एकाकी (kavita)

December 1976

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हम जग में, निराट एकाकी।

होने को संसार भरा है।

एकाकी पथ-परम्परा है॥

एकाकी घूमती धरा है।

जिसकी रचना है जग सारा॥

है वह भी विराट, एकाकी।हम जग में निराट एकाकी॥

एकाकीपन की बेचैनी।

लगा रही है, स्वर्ग-नसैनी॥

प्यासी सजग, दृष्टियां पैनी।

खोज रही हैं आकुलता में॥

अपना तृप्ति-घाट, एकाकी।

हम जग में निराट एकाकी॥

रवि एकाकी, शशि एकाकी।

जग एकाकी, नभ एकाकी॥

कण-कण यहां विवश एकाकी।

शत-शत, सरिताओं का उद्गम॥

देखा, शैल-राट एकाकी।

हम जग में निराट एकाकी॥

गति का जनक, चरण एकाकी।

देखे जनम-मरण एकाकी॥

उगती नयी किरण एकाकी।

किस की यहां प्रतीक्षा करना-

पथ के हाट-बाट, एकाकी।

हम जग में निराट एकाकी॥

हम जग में निराट एकाकी॥

*समाप्त*


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