हम जग में, निराट एकाकी।
होने को संसार भरा है।
एकाकी पथ-परम्परा है॥
एकाकी घूमती धरा है।
जिसकी रचना है जग सारा॥
है वह भी विराट, एकाकी।हम जग में निराट एकाकी॥
एकाकीपन की बेचैनी।
लगा रही है, स्वर्ग-नसैनी॥
प्यासी सजग, दृष्टियां पैनी।
खोज रही हैं आकुलता में॥
अपना तृप्ति-घाट, एकाकी।
हम जग में निराट एकाकी॥
रवि एकाकी, शशि एकाकी।
जग एकाकी, नभ एकाकी॥
कण-कण यहां विवश एकाकी।
शत-शत, सरिताओं का उद्गम॥
देखा, शैल-राट एकाकी।
हम जग में निराट एकाकी॥
गति का जनक, चरण एकाकी।
देखे जनम-मरण एकाकी॥
उगती नयी किरण एकाकी।
किस की यहां प्रतीक्षा करना-
पथ के हाट-बाट, एकाकी।
हम जग में निराट एकाकी॥
हम जग में निराट एकाकी॥
*समाप्त*