शिष्य ने गुरु से पूछा- “गुरुदेव ! शरीर के सर्वोत्तम अंग कौन से हैं?”
“वत्स! जिव्हा और हृदय।
“और सबसे अद्यम अंग ?” “यही दोनों”।
शिष्य आश्चर्य में पड़ गया। क्या एक ही वस्तु सर्वोत्तम और अहम दोनों ही हो सकती हैं? वह अपनी जिज्ञासा को न रोक सका। उसने पुनः पूछा-‘‘यह कैसे ?’’
गुरु ने समझाया- “जिह्वा सत्य और मधुर बोलती है। यह खाने योग्य वस्तुओं को ही अपने भोजन में स्थान देती है। परिश्रम की कमाई का सात्विक भोजन करती है। हृदय, ममता, प्रेम और सहानुभूति से परिपूर्ण रहता है। किसी के दुःख को देखकर सहायता पहुँचाने के ताने-बाने बुनता रहता है तो यह कहा जायेगा कि ये सर्वोत्तम अंग हैं और यदि किसी की जिह्वा असत्य और कटु भाषण करती है, खाद्य- अखाद्य का ध्यान किये बिना जो भी स्वादिष्ट पदार्थ मिल जाता है उसका भक्षण करती है, ऐसी जिह्वा अपने टोने से अपनी ही कब्र खोदती है और किसी का हृदय निर्दयता से भरा हुआ हो, प्रेम और ममता का स्रोत सूख गया हो, तब ये ही सर्वोत्तम माने-जाने वाले अंग सबसे अद्यम कोटि में आ जायेंगे।”