पहाड़ी नदी उफान पर थी। यात्री थोड़ी देर पशोपेश में रहा। इधर-उधर नजर दौड़ाई। नाव देख कर वह खिल उठा। उसने सुन रखा था कि नाव से नदी पार की जा सकती है। वह पेड़ से बँधे रस्से को खोलने लगा। पास खड़ा अन्य यात्री बोला- “भाई! ये क्या कर रहे हो? तुम्हें नाव चलाना आता है क्या? पहले यात्री ने उत्तर दिया- “इससे क्या? नाव है, तो नदी पार हो ही जायगी?”
“लेकिन यहाँ मल्लाह नहीं। डाँड-पतवार भी नहीं। पागल हो रहे हो क्या?” दूसरा यात्री कहता समझाता रहा।
पहला यात्री अपनी जिद पर अडिग था। नाव है तो नदी पार हो ही जायेगी।
रस्सा खोला नाव में बैठा। नाव बह पड़ी। थोड़ी ही दूर जाकर वह एक भँवर में पड़ गई। यात्री डूब मरा लोगों ने कहा- यह नाव अशुभ थी
राम -नाम की नाव के सहारे लोग ऐसे ही पार जाना चाहते हैं, साथ में उपयुक्त मार्ग दर्शन की, सत्प्रवृत्तियों-सद्गुणों के डाँड-पतवार की भी आवश्यकता है, यह भुलाकर। परिणाम स्पष्ट है।