दार्शनिक च्यांगत्सी सरोवर के तट पर बैठे जल-पुष्पों का सौन्दर्य देख रखे थे।
राजा ने उन्हें बुला लाने के लिए अपने मन्त्री को भेजा था। सो वे वहाँ पहुँचे। कहा-चलिए, राजदरबार में आपको पद-प्रतिष्ठा, धन-सुविधा प्राप्त होगी।
च्याँगत्सी ने मन्त्री से पूछा- “तुमने उस केकड़े की कथा नहीं सुनी, जिसे एक राजा की समाधि के साथ स्वर्ण-मंजूषा में रखकर दफनाया गया था,”
“सुनी तो है, श्रीमान! पर उस केकड़े को भला क्या लाभ हुआ? वह तो जल में ही आराम से रहता।” मंत्री ने कहा। पर अपने प्रश्न के सन्दर्भ में वह दार्शनिक द्वारा सुनाई गयी कथा की संगति नहीं बिठा पा रहा था।
मन्त्री के उत्तर देते ही च्याँगत्सी खिल-खिलाकर हँस पड़े। बोले-ओह! आप मुझे उस केकड़े से भी अधिक दुर्गति में डालना चाहते हैं।