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November 1974

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एक खिला हुआ फूल दूसरा पका हुआ फल—एक सौंदर्य की मादकता दूसरा रस का कलश। दोनों की अपनी−अपनी सुवास है और अपनी अपनी उपयोगिता।

फूल चाहे कि मैं सदा फूल ही बना रहूँ—और फल चाहे की सदा वह पेड़ की ही शोभा बढ़ाता रहे तो वे दोनों ही मूर्ख हैं। फूल के लिए उचित है कि वह खिले और दर्शकों की आँखों में उत्साह उत्पन्न करे। फल के लिए उचित है कि वह पके और क्षुधार्तों को तृप्ति प्रदान करे।


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