युगान्तरीय चेतना उत्पन्न करने के लिए शान्ति कुँज हरिद्वार में सत्र पद्धति की जो प्रशिक्षण योजना इन दिनों चल रही है उसका परिचय इस अंक में प्रस्तुत किया गया है। पाँच स्तर की इन प्रक्रियाओं में से दो ऐसी हैं जो निरन्तर चलती हैं। महिला जागरण के तीन−तीन महीने के सत्र अनवरत रूप से चलते हैं। वर्ष में वे चार बार सम्पन्न होते हैं। प्रायः चालीस महिलाओं के लिए स्थान है। दूसरी अनवरत प्रक्रिया भजनोपदेशकों की है यह भी तीन−तीन महीने की चलती है और अविछिन्न रूप से चलती है। (1) जनवरी, फरवरी, मार्च (2) अप्रैल, मई, जून (3) जुलाई, अगस्त, सितम्बर (4) अक्टूबर, नवम्बर, दिसम्बर। वर्ष में यह चार सत्र दोनों प्रशिक्षणों के चलते रहते हैं। संगीत सत्र में पच्चीस स्थान बनाये गये हैं। अक्टूबर से आरम्भ होने वाले प्रथम सत्र में कुछ कम सीटें रखी गई हैं। व्यवस्था बढ़ने पर स्थान पूरे कर लिये जायेंगे या सुविधानुसार और अधिक बढ़ा दिये जायेंगे।
तीन सत्र परिवर्तन क्रम से चलते हैं। वर्ष में छै महीने जीवन साधना सत्रों के लिए हैं। यह दो भागों में विभाजित है (1) फरवरी, मार्च, अप्रैल (2) जुलाई, अगस्त, सितम्बर। यह सत्र दस−दस दिन के होंगे। वर्ष में कुल 18 इनमें से प्रत्येक में 100 से अधिक को स्थान न दिया जा सकेगा। थोड़ी कम की ही गुंजाइश है।
वानप्रस्थ सत्र दो−दो महीने के हैं। शिक्षार्थियों को एक महीने सैद्धान्तिक शिक्षा शान्ति कुञ्ज में प्राप्त करनी होती है और एक महीने के लिए दस−दस दिन के तीन युग−निर्माण सम्मेलनों का संचालन करने के लिए कार्य क्षेत्र में जाना पड़ता है। हरिद्वार में उनकी एक−एक महीने की शिक्षा नवम्बर, दिसम्बर, जनवरी में तीन महीने होती है।
लोक शिक्षण और लेखन सत्रों की संयुक्त शृंखला गर्मी की छुट्टियों में डेढ़ महीने चलती है। उसमें पन्द्रह−पन्द्रह दिन के तीन सत्र होते हैं। पन्द्रह दिन अन्य कार्यों के लिए छोड़कर मई, जून इस कार्यक्रम में लग जाता है।
अक्टूबर टैप रिकार्डर पर संगीत तथा प्रवचनों के टैप तैयार करने के लिए है। इनकी कापी युग−निर्माण शाखाएँ अपने टैपों पर करा लेती हैं और उन्हें अपने क्षेत्र में विभिन्न वर्ग के लोगों को स्थान−स्थान पर सुना कर जन−जागरण का प्रयोजन पूरा करती हैं।
इससे पूर्व कन्याओं के सत्र चलते थे उनमें नई भर्ती बन्द कर दी गई हैं। जो पुरानी है वे ही आगे की शिक्षा प्राप्त करती रहेगी। इसी प्रकार प्रत्यावर्तन सत्र भी फिलहाल स्थगित कर दिये गये हैं। अन्य आवश्यक प्रशिक्षणों से यदि समय बचा तो फिर कभी सुविधानुसार जारी किया जा सकेगा। यही बात कन्या शिक्षा के सम्बन्ध में भी है।
शिक्षार्थियों के लिए कुछ नियम बना दिये गये हैं जिनका पालन कर सकने पर ही उनका आवेदन पत्र भेजना और आना उचित है—
(1)जिन्हें स्वीकृति मिली है वे ही आवें। अपने अपने स्थान पर किसी दूसरे को न भेजें। अपने साथ अन्य बिना स्वीकृति वालों को लेकर न चले। छोटे बच्चों समेत आने की स्वीकृति किसी को भी नहीं दी जाती। पत्नी माता आदि पर्यटन के लिए आने वालों को सम्बन्धी के रूप में लाने की आज्ञा नहीं है। यदि उनमें से कोई मिशन को भली प्रकार समझती रही हैं और अखण्ड−ज्योति पढ़ती सुनती रही हैं तो उनको अलग आवेदन पत्र भेजकर स्वीकृति प्राप्त करनी चाहिए।
(2) शारीरिक और मानसिक दृष्टि से निरोग—अनुशासन प्रिय, निर्व्यसनी और सज्जनोचित शिष्ट सदाचार का पालन करने वाले अखण्ड−ज्योति परिवार के सदस्य ही शिक्षा प्राप्ति के लिए आवेदन पत्र भेजें। जिनका अपने मिशन से संपर्क परिचय नहीं जो युग−निर्माण साहित्य को पढ़ते सुनते नहीं रहे हैं, ऐसे अजनबी लोगों को प्रवेश नहीं मिलेगा। अपरिचित लोगों को मिशन की विचारधारा से जो स्वतन्त्र चेतना मिलती है वह ढरडडडड की धर्मचर्या से संगति नहीं खाती इसलिए यहाँ के प्रतिपादन उनके गले नहीं उतरते और वे असमंजस में पड़ जाते हैं।
(3) शिक्षार्थियों की आयु 16 से 15 वर्ष के बीच हो सकती है। इससे कम और अधिक आयु के लोग कारण बताते हुए विशेष आज्ञा प्राप्त करके ही आ सकेंगे।
(4) जिस सत्र की जिन्हें स्वीकृति मिली है, उसी में आना चाहिए यदि सत्र बदलना है तो उसकी अनुमति पहले से ही माँगनी चाहिए। बिना स्वीकृति पत्र प्राप्त हुए किसी को भी नहीं आना चाहिए। डाक की गड़बड़ी से आवेदन पत्र पहुँचने या स्वीकृति आने में व्यवधान हो सकता है। डाक को ठीक समय ठीक प्रकार पहुँच ही जाना सुनिश्चित नहीं है। स्वीकृति न पहुँचने पर पूर्व पत्र का हवाला देकर पुनः आवेदन करना चाहिए। पूर्व आवेदन का हवाला न देने पर दुहरी स्वीकृति पहुँचने की गड़बड़ी हो सकती है।
(5) आवेदन पत्र अलग से छपे हुए नहीं है। साधारण कागज पर निम्नलिखित दस प्रश्नों का उत्तर देते हुए अपने हस्ताक्षर और तारीख समेत आवेदन भेजे जा सकते हैं।
(1)पूरा नाम (2) पूरा पता (3) शिक्षा (4) जन्म तिथि (5) व्यवसाय (6) जीवन के महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय घटना क्रमों का विवरण (7) शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ठीक होने का आश्वासन (8) शिक्षा काल में निर्व्यसन अनुशासन प्रिय और सज्जनोचित शील सदाचार बरतने की घोषणा (9) जिस महीने के जिस सत्र में सम्मिलित होना हो उसका उल्लेख (10) अखण्ड−ज्योति के नियमित पाठक कब से रहे हैं इसकी जानकारी।
जिस कागज पर आवेदन पत्र लिखा गया है उसमें पत्र या अन्य कोई बात न लिखी हो; ताकि उसे आवेदन फाइल में ठीक तरह लगाया जा सके। पत्र आदि लिखना हो तो दूसरे कागज पर लिखना चाहिए।
(6)स्वीकृति पत्र पहुँचने पर शिक्षार्थियों को कम से कम दो सप्ताह पूर्व आने की निश्चित सूचना अवश्य भेजनी चाहिए; ताकि यदि न आ सकने की स्थिति हो तो वह स्थान खाली न पड़ा रहे। उस स्थान का लाभ दूसरे को मिल सके इस दृष्टि से निश्चित सूचना उतने समय पूर्व भेजनी चाहिए कि अन्य किसी को वह स्थान दिया जाना और उसको आने की तैयारी करना संभव हो सके। नियत समय से दो चार दिन पूर्व ही सूचना देने से भी उसका सुरक्षित स्थान खाली रहने की गड़बड़ी पड़ती है।
(7) प्रत्येक शिक्षार्थी से आशा की जाती है कि वह अपना भोजन व्यय स्वयं ही वहन करेगा। दो बार चाय और दो बार भोजन की न्यूनतम दैनिक लागत दो रुपया पड़ती है। असमर्थ व्यक्ति कम देने या न देने की भी छूट पा सकते हैं पर उन्हें इस बात को आवेदन पत्र के साथ ही स्पष्ट कर देना चाहिए और उस सहायता की स्वीकृति प्राप्त कर लेनी चाहिए।
(8) शिक्षा अवधि में धोती पहनना आवश्यक है। पेन्ट, पजामा यहाँ के शिक्षार्थी नहीं पहनते।
(9) सत्र जिस दिन आरम्भ होने की सूचना दी गई है उससे एक दिन पहले सायंकाल तक हरिद्वार पहुँच जाना चाहिए और जिस दिन सत्र समाप्त होता है उस दिन आश्रम खाली कर देना चाहिए। पर्यटन के उद्देश्य से पहले आना हो या पीछे भी रुकना हो तो उस अवधि में ठहरने की व्यवस्था अन्यत्र करनी चाहिए। यहाँ कठिनाई से उतना ही स्थान बनाया जा सका है जिसमें निर्धारित शिक्षार्थियों को ही ठहराया जा सके।