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March 1968

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भीतवत्संविधातव्यं यावद् भयमनागतम्। आगतं तु भयं दृष्ट्वा प्रहर्तव्यमभीतवत्॥

जब तक भय का कारण आ न पहुँचे तब तक उससे डरते रह कर बचने का उपाय करते रहना चाहिए, किन्तु जब वह सिर पर आ ही पहुँचे तो उसे निडर होकर मार भगाना चाहिये।


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