Quotation

March 1968

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

मोक्ष का महामंत्र-

“आत्म-शोध है” भिक्षुओ! इसके लिये तुम्हें जंगल-जंगल भटकने की आवश्यकता नहीं। परम-पद तुम्हारे बिलकुल समीप है।

एक स्त्री दर्पण के सामने बैठी अपना चेहरा देख रही थी। और बड़ी तत्परता से उसे सुन्दर और निर्मल बनाने का प्रयत्न कर रही थी। मैंने देखा- वह बड़े ध्यान से चेहरे में लगी गन्दगी को ढूंढ़ती है और उसे साफ करती है। आत्म-परीक्षण के सम्बन्ध में भी यही बात है। अपनी चेतना के दर्पण में अपने आपको देखो और ढूंढो कहीं काम, क्रोध, भय, उद्विग्नता, असन्तोष, असंतुलन तो नहीं छिपा हुआ है? तुम्हारे विचार गन्दे तो नहीं हैं? इंद्रियों पर तुम्हारा नियन्त्रण है या नहीं?

यदि इनका सही उत्तर न मिले तो उन बुराइयों को मिटाने में लग जाओ, उस स्त्री की तरह जब तुम्हें अपने आन्तरिक चेहरे की निर्मलता पर सन्तोष हो जायेगा, उसी दिन तुम मोक्ष, परम-पद पा, आत्म-कल्याण की स्थिति प्राप्त कर लोगे। -भगवान् बुद्ध,


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles