भारतवर्ष की भौतिक उन्नति इसलिए नहीं लुट गई कि यहाँ के लोग धर्म और परमार्थ-निष्ठ होते हैं वरन् भारत की विकसित और हरी-भरी फुलवारियां इसलिए लुट गईं कि उनके आस-पास काँटों और झाड़ियों की बाड़ी नहीं रही। कष्टों के काँटे और झंझावातों की झाड़ियों के बीच जीवन सुरुचि का उद्यान विकसित होता है। इसलिए मेरे प्यारे काँटों और झाड़ियो। तुम मुबारक हो, धर्म और संस्कृति, जीवन के उच्चादर्शों और भौतिक उन्नतियों के तुम्हीं रक्षक हो। तुम दूर न होना ताकि मेरे देशवासी निरन्तर फलते-फूलते रहें। तुम्हारी बाड़ में उनका विकास सुरक्षित रहे। कष्ट उनके जीवन का अंग बना रहे। -स्वामी रामतीर्थ