“संयम से ही विकास होता है। वृक्ष की जड़ें पृथ्वी के साथ जकड़ी हुई हैं, इसीलिए वह ऊँचा होकर फलों से शोभा पाता है। वृक्ष कहे कि यह जड़ों का बन्धन किसलिए? मुझे इन्हें तोड़ कर स्वच्छंद ऊपर उठने दो, तो क्या ऐसा होने पर वृक्ष सुसज्जित रह सकेगा? वह पृथ्वी से जकड़ा हुआ है, इसलिए ऊँचा उठ सका और फल-फूल सका। सितार के तार बँधे होने के कारण ही दिव्य-संगीत सुना सकते हैं। यह सब संयम की महिमा है। संयम बिना सुसंस्कृति नहीं, विकास नहीं।” -रवीन्द्रनाथ ठाकुर