Quotation

April 1967

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

नदी बनाम जोहड़-

एक जल-पूरित नदी कल-कल करती हुई आनन्द और उल्लास के साथ बही जा रही थी । उसके किनारे बड़े-बड़े सुन्दर नगर और उपनगर बसे हुए थे। इन सभी नगरों के निवासी विविध प्रकार से उसके जल का उपयोग करके अपने दैनिक जीवन को सफल बनाते रहते थे।

पर्वतों से टकराकर नदी का पानी जहाँ ऊपर से नीचे गिरता था वहाँ एक विशाल विद्युत-केन्द्र बनाया गया था जहाँ बिजली का उत्पादन होकर उससे अनेक प्रकार के यान्त्रिक और औद्योगिक कार्यों का संचालन किया जा रहा था।

आगे चलकर इसी नदी से कुछ नहरें निकाली गई थीं। कहीं नावों से इसमें व्यापार करके अपनी आजीविका चला रहे थे।

ऐसा था इस नदी का जीवन । आदि से अन्त तक अपने अंग-प्रत्यंग से औरों का भला करती हुई जब इस प्रकार वेग से समुद्राभिमुख बही चली जा रही थी तब एक ठहरी हुई जोहड़ ने, जिसका पानी प्रवाहहीन होने के कारण दुर्गन्धयुक्त हो गया था इस नदी से कहा-

“बहन, बताओ अपने इस दिन-रात के बहते हुए जीवन में आखिर तुम्हें किस बात का अनुभव होता है, जो तुम निरन्तर कल-कल करती हुई किलोलें में किया करती हो? मुझे क्यों नहीं देखती, जो एक जगह ठहरकर अपने जीवन को प्रगति और प्रवाह से दूर करके स्थिर होकर यहाँ पड़ी-पड़ी आराम के साथ अपने दिन गुजार रही हूँ।”

नदी ने जोहड़ से कहा-प्रगति और प्रवाह का पन्थ अपनाने से ही मेरा आभ्यन्तर स्वच्छ और निर्मल बना हुआ है और इसीलिए मेरी हर बूँद का सदुपयोग किया जाता है। प्रगति और प्रवाहहीन होने के कारण ही तुम गंदगी का आगार बनी हुई हो। औरों के उपयोग में न आने वाले तुम्हारे जीवन का इस दुनिया में अधिक अस्तित्व नहीं है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118