जीवन-दीप (Kavita)

April 1967

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

जीवन-दीप जले अभिराम, पाकर त्याग स्नेह निष्काम।

हो पथ तम जिससे दूर,

सदा प्रकाश रहे भरपूर,

जल जल व्यथा करे जो दूर,

शीलता दे ज्यों कर्पूर,

छाये दुःख की चाहे शाम, जीवन दीप जले अभिराम।

जलें एक से दीप अनेक,

मिले प्रेरणा ऐसी नेक,

होवें पथ प्रशस्त अनेक,

रहे सदा केवल यह टेक,

उगे न जब तक सूर्य ललाम, जीवन-दीप जले अभिराम।

भटक न जाये तिमिर अजान,

कुश कंटक पथ में पाषाण,

दुख के मुख पर मधु मुस्कान

मुखर न हो जब तक द्युतिमान,

लक्ष्य पूर्व कैसा विश्राम, जीवन-दीप जले अभिराम।

करो आज तुम नव-अभिमान,

रहे न दुख का नाम निशान,

उगे ज्ञान का नव दिनमान,

हो जिससे जग का कल्याण,

मंगलमय हो भव अभिराम, जीवन-दीप जले अभिराम।

रामस्वरूप खरे एम. ए.

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles