पात्रता की परीक्षा-
एक महात्मा के पास तीन मित्र गुरु-दीक्षा लेने गये। तीनों ने बड़े नम्र भाव से प्रणाम करके अपनी जिज्ञासा प्रकट की। महात्मा ने उनको शिष्य बनाने से पूर्व पात्रता की परीक्षा कर लेने के मन्तव्य से पूछा-”बताओ कान और आँख में कितना अन्तर है?”
एक ने उत्तर दिया-केवल पाँच अंगुल का, भगवन् महात्मा ने उसे एक ओर खड़ा करके दूसरे से उत्तर के लिये कहा। दूसरे ने उत्तर दिया-महाराज आँख देखती है और कान सुनते हैं, इसलिये किसी बात की प्रामाणिकता के विषय में आँख का महत्व अधिक है। महात्मा ने उसको भी एक ओर खड़ा करके तीसरे से उत्तर देने के लिये कहा। तीसरे ने निवेदन किया -भगवन् कान का महत्व आँख से अधिक है। आँख केवल लौकिक एवं दृश्यमान जगत् को ही देख पाती है किन्तु कान को पारलौकिक एवं पारमार्थिक विषय का पान करने का सौभाग्य प्राप्त है। महात्मा ने तीसरे को अपने पास रोक लिया। पहले दोनों को कर्म एवं उपासना का उपदेश देकर अपनी विचारणा शक्ति बढ़ाने के लिये विदा कर दिया। क्योंकि उनके सोचने की सीमा बाह्यतत्व की परिधि में अभी प्रवेश कर सकने योग्य, सूक्ष्म बनी न थी।