जीवन से प्रियतरराष्ट्र

April 1967

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जीवन से प्रियतर राष्ट्र

जीवन से बढ़कर सौंदर्य नहीं पर, वह किसी को स्थायी सम्पत्ति के रूप में नहीं मिला। वह तो इस प्रयोग के लिये है कि उससे कौन कितना आनन्द पाता है। मैंने अनेक मनुष्यों के जीवन-संस्मरण सुने हैं पर मुझे सबसे प्यारे वे लगे, जिन्होंने अपने आप को देश के हित के लिए पतिंगों की तरह जला दिया। राष्ट्र-प्रेम भी कितनी ऊँची वस्तु है, कितना बड़ा त्याग होता है वह जब मनुष्य केवल जातीय आदर्शों की रक्षा के लिये जीवन जैसी सुन्दर वस्तु को यों लुटा देता है मानो राष्ट्र-प्रेम के समक्ष वह कोई नगण्य वस्तु रही हो। जो इस सम्पत्ति का उपयोग राष्ट्र-हित में कर सकें वे धन्य हैं, उन्हें मेरे शत शत प्रणाम। -लुक्रीक्स


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