शक्ति पुरश्चरण की पूर्णाहुति

October 1966

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शक्ति पुरश्चरण की पूर्णाहुति

गत वर्ष शक्ति महापुरश्चरण पाकिस्तान और चीन हमले को निरस्त करने के संदर्भ में आश्विन नवरात्रि से प्रारम्भ किया गया था। शरद पूर्णिमा से उसकी विधिवत घोषणा की गई थी, पर आरम्भ नवरात्रियों में ही हो गया था। इसमें 10 हजार साधकों ने भाग लिया। ‘क्लीं बीज’ शत्रु संहारिणी दुर्गा शक्ति का मंत्र है। गायत्री महाशक्ति के साथ उसका संयोग करके प्रति मास 24 करोड़ जप का आयोजन था। प्रसन्नता की बात है कि वह क्रम पूर्ण शास्त्रोक्त् विधि-विधान के साथ एक वर्ष तक सुव्यवस्थित रीति से निर्विघ्न चलता रहा और आज आश्विन नवरात्रि में पूर्ण होने जा रहा है।

इस महापुरश्चरण को पूर्ण सफल कहा जा सकता है। गत वर्ष इन दिनों पाकिस्तान का प्रत्यक्ष और चीन का परोक्ष आक्रमण भयानक सम्भावनाओं के साथ चल रहा था। युद्ध की विभीषिका विश्व युद्ध में परिणित हो जाने की सम्भावना थी। उस अवसर पर भारत की बहादुर सेनाओं ने, राजनेताओं ने तथा अनेक देशभक्तों ने अपने-अपने ढंग से जिस त्याग, बलिदान, देशभक्ति एवं सूझ-बूझ का परिचय दिया उस पर देश का मस्तक सदा गर्वोन्नत रहेगा। इस अवसर पर अध्यात्म क्षेत्र भी अकर्मण्य नहीं रह सकता था। गायत्री परिवार ने उपरोक्त पुरश्चरण आरम्भ किया । उसका जो प्रभाव अभीष्ट था वही हुआ भी। इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका अपने इस शक्तिशाली पुरश्चरण की भी है।

इस पुरश्च्रण की पूर्णाहुति आश्विन नवरात्रि के अन्तिम दिन विजया दशमी को कर दी जानी चाहिए। क्लीं बीज समेत गायत्री मंत्र का हवन उस दिन हर शाखा में सामूहिक रूप से किया जाय। अन्त में कन्या भोजन तथा सत्साहित्य का प्रसाद वितरण भी किया जाय। जिन लोगों ने पुरश्चरण में भाग लिया है वे तथा अन्य लोग मिलकर जितनी आहुतियाँ दें उसकी सूचना मथुरा अवश्य भेज दें ताकि आहुतियों में कुछ कमी रह जाय तो उसकी पूर्ति यहाँ पर कर दी जाय। पुरश्चरण के भागीदारों के साहस, त्याग , परमार्थ, प्रेम एवं देशभक्ति का सादर अभिनन्दन!


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