विनम्रता की शक्ति -
नदी तट पर खड़े हुए शमी-वृक्ष ने बड़े जोर से अट्टहास किया और पास ही पानी में खड़े वेत से कहा—’क्या छोटी-छोटी लहरों के थपेड़े लगते ही झुक जाता है। मुझे देख, किस शान से सिर ऊँचा किये हुए खड़ा हूँ।’ इसी प्रकार वह वृक्ष जब-तब वेत का उपहास उड़ाया करता था। वेत बेचारा केवल इतना ही कह देता था—’वृक्षराज, मैं तो विनम्रता में विश्वास करता हूँ, अभिमान में नहीं।’ शमी वृक्ष उसकी बात सुनकर बड़ी देर तक हँसता रहता।
एक दिन नदी में भीषण बाढ़ आई। लोगों ने देखा कि शमी का अभिमानी वृक्ष जड़ से उखड़कर तूफान में बह गया, किन्तु जो वेत प्रवाह से बच कर जमीन में मिल गया था, वह बाढ़ उतर जाने पर फिर सीधा खड़ा हो गया।
वेत, वृक्ष अन्त देखकर हँसा नहीं बल्कि ईश्वर को धन्यवाद दिया कि उसने उसे ऐंठ में अकड़ा हुआ अभिमानी न बनाकर नतमस्तक विनम्र बनाया।