उत्तराधिकारी और व्रतधारियों से

September 1965

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

प्रतिनिधियों, उत्तराधिकारियों और व्रतधारियों का हमारा काफिला नव निर्माण की दिशा में एक क्रमबद्ध योजना के साथ निर्धारित लक्ष्य की ओर उत्साहपूर्वक बढ़ता चला जा रहा है। हम सब अपने कर्तव्यों के पालन में इसी प्रकार सतर्क सावधान, निष्ठावान बने रहे तो इस महान अभियान की सफलता सुनिश्चित है।

यों अभी एक घण्टा समय और एक आना नित्य का छोटा सा कार्य परिजनों को अनिवार्य रूप में सौंपा है, पर इतने से भी उज्ज्वल भविष्य की जो सम्भावनायें सामने आ रही हैं उन्हें देखते हुये अगले लक्ष्य और भी उल्लास भरे होंगे। जिनने वह छोटा सा व्रत इस समय लिया है, उनसे हम यह भी आशा करते हैं कि समयानुसार वे वानप्रस्थ भी ग्रहण करेंगे और जब 40 हजार व्यक्ति अपना अधिकाँश समय युग निर्माण के लिये लगाने लगेंगे तब रचनात्मक कार्यों की बाढ़ आ जायगी। एक से एक श्रेष्ठ कार्यक्रमों का संचालन होगा। अनेक अभिनव आन्दोलन पनपेंगे, असुरता के विरुद्ध अनेक मोर्चे खुलेंगे और जन मानस में धरती पर स्वर्ग अवतरित करने की महत्वाकाँक्षा का समुद्र हिलोरें ले रहा होगा। आज युग परिवर्तन की बात असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य दिखाई पड़ती है। पर जब अपने परिवार के आज के उत्तराधिकारी, प्रतिनिधि एवं व्रतधारी आश्रम में प्रवेश कर अपनी पूरी शक्तियों को इधर लगावेंगे तो परिणाम जादू भरा होगा और जो कार्य आज असंभव दीख रहा है कल संभव होकर रहेगा।

यह तो बात आगे की रही, व्यवस्था आज की करनी है। आज यह होना चाहिये कि अपना एक भी परिजन ऐसा न हो जो एक घंटा समय जैसे छोटे कर्तव्य पालन से विमुख रह रहा हो। गत गुरु पूर्णिमा से जिनने व्रत ग्रहण किया है उनमें से प्रत्येक को ‘युग निर्माण योजना’ पाक्षिक का नियमित ग्राहक बन जाना चाहिये क्योंकि उनका व्यवहारिक मार्ग दर्शन इसी के द्वारा संभव होगा। अखण्ड-ज्योति से विचार निर्माण का कार्य होता है पर उन्हें व्यवहार रूप में कैसे लाया जाय, कैसे लाया जा रहा है, यह तो पाक्षिक पत्रिका ही बताती है। विचारों को कार्य रूप में परिणत करने का मार्ग दर्शन करना उसी के द्वारा सिखलाया, समझाया जा रहा है। जो उसे नहीं पढ़ते वे कैसे जान पायेंगे कि हमें क्या करना है, किस प्रकार करना है, कार्य करते समय जो कठिनाइयाँ आती हैं उनका हल बताने के लिये इस प्रकार की पत्रिका की आवश्यकता अनुभव हुई, तभी तो उसे निकालने का आयोजन किया गया। 22 अगस्त को युग निर्माण योजना का जो समाज सुधार अंक निकला है वह तो 104 पृष्ठों की इतनी महत्वपूर्ण सामग्री से सुसज्जित है कि समाज सुधार से तनिक भी दिलचस्पी रखने वाला व्यक्ति उसे पाकर प्रसन्न हुये बिना नहीं रह सकता।

संभवतः सभी व्रतधारी युग निर्माण पत्रिका मँगाते होंगे जो न मँगाते हो उन्हें तुरन्त ही उसे आरम्भ कर देना चाहिये। वर्ष का चन्दा 6 रुपये जो न भेज सके वे छः महीने का 3 रुपये तो भेज ही सकते हैं। शेष पीछे भेज सकते हैं, पर उसका नियमित पाठक तो बन ही जाना चाहिये। अखण्ड-ज्योति में व्यवहारिक मार्ग दर्शन की जो कमी रहती है उसे इस पाक्षिक के द्वारा पूरा कर ही लेना चाहिये।

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर विवाहोन्माद उन्मूलन आन्दोलन के लिये 10 ट्रैक्ट छापे गये थे। उन्हें जिनने पढ़ा है, इस विचारधारा से अतिशय प्रभावित हुए हैं। दो महीनों में ही उन्हें हजारों व्यक्ति पढ़ चुके और एक से लेकर दूसरा उसे पढ़ता ही चला जा रहा है। यह अभिरुचि अगले दिनों आन्दोलन का रूप धारण करेगी और हिन्दू समाज के उज्ज्वल मुख पर कलंक कालिमा की तरह लगी हुई उस घृणित बुराई का उन्मूलन करके रहेगी।

अब इन दिनों अन्य दुष्प्रवृत्तियों के विरुद्ध 20 नये ट्रैक्ट लिखे जा रहे हैं जो सितम्बर के अन्त तक तैयार हो जायेंगे। अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में इन्हें व्रतधारियों के पास भेज दिया जायगा। डाक व्यय समेत 20 नये पैसे के यह ट्रैक्ट अब 30 हो जायेंगे, जिनका मूल्य छः रुपये हो जायगा। जो विवाहोन्माद वाले ट्रैक्ट ले चुके हैं उन्हें अगले 20 ही मँगाने हैं। उसका 4 रुपया हुआ। यह अगले ट्रैक्ट भी उतने ही क्रान्तिकारी हैं जितने विवाहोन्माद वाले थे। प्रचलित दुष्प्रवृत्तियों को इनमें आड़े हाथों लिया गया है और विषय का प्रतिपादन इस ढंग से किया गया है जिसे पढ़कर उन्हें छोड़ने के लिये भावनायें उमड़ने ही लगें। व्रतधारी अपने संपर्क के क्षेत्र में इन्हें भी पढ़ाने का उसी उत्साह के साथ प्रयत्न करें जैसा कि इन दिनों उन्होंने विवाहोन्माद वाले ट्रैक्टों को पढ़ाने में दिखाया है।

एक आना प्रतिदिन की बचत इसी प्रकार के साहित्य के लिये है। इसी बचत में से इस महीने युग निर्माण योजना का चन्दा भेजना चाहिये तथा इन्हीं दिनों प्रकाशित ट्रैक्टों को मंगा लेना चाहिये। यह साहित्य व्रतधारी सैनिकों के लिये अस्त्र-शस्त्रों की तरह आवश्यक है। उनके द्वारा अपने, अपने परिवार के तथा समीपवर्ती क्षेत्र में विचारशील लोगों की भावनाओं में उत्साहवर्धक परिवर्तन लाया जा सकता है। अतएव उसका उपयोग करने में तनिक भी ढील-ढाल या आलस नहीं करना चाहिये। जो करना ही ठहरा उसे समय पर और मुस्तैदी के साथ क्यों न किया जाए?


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118