वासन्ती वायु का एक झोंका आया और मेरे तन मन को शीतल सुगन्ध से भर कर चला गया। मैं उसके पीछे यह कहता हुआ दौड़ा-”ऐ शीतल समीर मुझे अपने साथ ले लो, मुझे अपने जैसा बना लो।” तभी वायु का एक गर्म झकोरा आया और मेरे तन, मन को झुलसाता और यह कहता हुआ निकला गया-तुम मूर्ख हो। मैं युगों-युगों से इसके पीछे, इसकी शीलता और सुगन्ध को प्राप्त करने के लिये भाग रहा हूँ, किन्तु अब तक सफल न हो सका। न मैं शीतल हो सका और न सुगन्धित।
मैंने कोई उत्तर न दिया और चुपचाप फिर शीतल समीर की प्रतीक्षा करने लगा- वह आई। मैंने फिर याचना की- उसने बाँसों के एक झुरमुट में प्रवेश करके कहा-मनुष्य! याचना और अनुकरण से कुछ नहीं मिलता। मेरी तरह शीतलता और सुगन्ध तुम्हारे अन्दर भरी है। प्रयत्न करो- तुम भी शीतल और सुगन्धित हो जाओगे।