वर्तमान युद्ध और हमारा कर्त्तव्य

October 1965

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पाकिस्तान द्वारा थोपे हुए युद्ध में आत्मरक्षा के लिए हमें विवश होकर लड़ना पड़ रहा है। मातृभूमि की अखण्डता और सुरक्षा के लिए हमारे रणबांकुरे युद्ध भूमि में अपने जौहर दिखा रहे हैं। अनीति के विरुद्ध न्याय और मनुष्यता की रक्षा के लिए लड़े जाने वाले इस युद्ध में जीत हमारी ही होगी। पाण्डवों की विजय उनके आदर्श की सत्यता के कारण हुई थी। रावण और कंस विपुल शक्ति होते हुए भी न्याय और नीति से विरत होने के कारण परास्त हुए थे। वर्तमान युद्ध का अन्तिम परिणाम भी यही होगा।

स्वर्ण की आभा कसौटी पर कसे जाने और अग्नि से तपाये जाने पर निखरती है। जातियों को भी अपनी समर्थता एवं पात्रता की परीक्षा समय-समय पर देनी पड़ती है। इसी से उनका शौर्य, पराक्रम एवं गौरव निखरता है। भारतीय राष्ट्र को आज ऐसी ही अग्नि परीक्षा में होकर गुजरना पड़ रहा है।

पुराने समय में युद्ध दो दलों की सेनाओं के बीच होते थे। सेनाओं के बाहुबल पर हार-जीत निर्भर रहती थी पर अब परिस्थितियाँ बदल गई हैं। सेना के साथ-साथ दूसरे मोर्चे पर देश की जनता को लड़ना पड़ता है। अब युद्धों में शस्त्र बल ही एकमात्र आधार नहीं रहा, वरन् उसके पीछे अन्य अनेक महत्वपूर्ण पहलू भी जुड़ गए हैं। जनता के सहयोग से ही कोई बड़ा युद्ध लड़ा जा सकता है। सैनिकों की वीरता तथा प्रचुरता जन उत्साह पर निर्भर है। इसी प्रकार युद्ध में काम आने वाली विपुल साधन-सामग्री को भी हमें जुटाना पड़ता है। सैनिकों की निपुणता ही नहीं, अब युद्ध की निर्णायक भूमिका में युद्धरत देशों की प्रजा की तत्परता का महत्वपूर्ण स्थान रहता है। भारतीय नागरिकों को भी अपने स्तर की दूसरे मोर्चे की लड़ाई लड़नी पड़ती है।

सैनिकों को भर्ती, प्रशिक्षण, शस्त्रों की उपलब्धि, मोर्चे का चुनाव एवं युद्ध कौशल, आर्थिक प्रबन्ध, आवश्यक सामान का जुटाना, आन्तरिक शान्ति, जन उत्साह, कूट-नीति के ऊहापोह जैसे कार्य प्रधानतया सरकार को सम्भालने पड़ते हैं। इसलिए हर देशभक्त नागरिक का कर्तव्य है कि अपनी सरकार को इन साधनों के जुटाने में पूरा-पूरा सहयोग दे। सरकार की शक्ति जन सहयोग पर निर्भर रहती है। इसलिए इस धर्म युद्ध में अपनी सरकार को सफल बनाने के लिए जो भारतीय नागरिक जिस क्षमता का हो, उसे उसी स्तर पर अपनी सामर्थ्य भर सरकार को सहयोग देना चाहिये।

जो सेना में भर्ती होने योग्य हो, उन्हें वीरतापूर्वक इसके लिए अपने को प्रस्तुत करना चाहिए। टैंक तोड़ने वाली तोपों और शत्रु के दाँत खट्टे करने वाले वायुयानों के खरीदने के लिए धन की जरूरत पड़ती है। गोला बारूद के लिए और सैन्य व्यवस्था के लिए पैसा चाहिये उसके लिए सरकार टैक्स लगावे उसे तो अब कठिनाइयों को सहते हुए भी सहन करना ही चाहिए, साथ ही अपनी विशेष देशभक्ति के प्रमाण स्वरूप अपनी स्थिति के अनुरूप सुरक्षा कोष में भी धन देना चाहिए । घायल सैनिकों को जीवन रक्षा के लिए रक्त चढ़ाना पड़ता है। हम अपने शरीर का थोड़ा सा रक्त देकर बिना कोई जोखिम उठाये राष्ट्र रक्षा में महत्वपूर्ण योग दे सकते हैं। जगह-जगह नागरिक सुरक्षा दल स्थापित दल स्थापित हो रहे हैं, उनमें स्वयं सेवक के रूप में भर्ती होकर आन्तरिक सुरक्षा की दृष्टि में बहुत काम कर सकते हैं। शत्रु के एजेन्ट, जासूस ऐसे अवसरों पर भारी हानि पहुँचाते हैं। एजेन्टों के रूप में पाकिस्तान ने तो छतरीधारी सैनिकों के रूप में बहुत लोग भेजे हैं। इनकी पूरी-पूरी खोज खबर रखनी चाहिए और जिसे राष्ट्र विरोधी हरकत करते देखा जाय उसे पुलिस के सुपुर्द किया जाय। अफवाहें हानिकारक होती हैं। ऐसी अफवाहें जो भ्रम एवं आतंक उत्पन्न करती हैं, फैलने नहीं देनी चाहिए। इनसे बड़ी हानि पहुँचती है। अपराधों और उपद्रवों के बढ़ने की ऐसे समय सम्भावना रहती है, इसलिए हर देश भक्त को चाहिए कि ऐसे कटु प्रसंग उत्पन्न होने की जहाँ भी सम्भावना हो, वहाँ उनकी सम्भावना समाप्त करने के लिए संगठित प्रयत्न करें।

युद्ध के दिनों में खेतों और कारखानों, दुकानों और बाजारों के मोर्चे पर ही हर नागरिक को जूझना पड़ता है। किसान अधिकाधिक खाद्य उत्पन्न करे ताकि विदेशों से आने वाले अन्न की आवश्यकता न पड़े। सर्व साधारण की अन्न का उपयोग कम और शाक भाजियों का प्रयोग बढ़ाना चाहिए क्योंकि ऐसी विषम परिस्थितियों में बाहर से अन्न आने से भी ऐसी ही रोक लग सकती है, जैसी शस्त्रों पर लगी है। ऐसी दशा में खाद्य की दृष्टि से देश का स्वावलम्बी होना आवश्यक है। व्यापारियों का कर्तव्य है कि वे राष्ट्रीय संकट के समय मुनाफाखोरी, जमाखोरी, अति लाभ, चोरबाजारी को पनपने न दें। न वस्तुओं के दाम बढ़ने दें। जीवन भर रुपया कमाया है, आगे भी कमायेंगे, ऐसे विषम समय में कम नफा या बिना नफा के भी काम चलाने का साहस करना चाहिए। श्रमिकों का कर्त्तव्य है कि कारखानों, फैक्ट्रियों एवं उद्योगों का उत्पादन अधिकाधिक बढ़ायें। अधिक श्रम करें और अधिक सावधानी बरतें। औद्योगिक झगड़े इन दिनों न बढ़ने दें। विवादों को शान्ति से सुलझावें। हड़ताल या ताला बन्दी जैसे अवसर न आने दें। सर्वसाधारण को वस्तुओं का उपयोग कम से कम करना चाहिए। ताकि उस बचत से देश की अन्य आवश्यकतायें पूर्ण हो सकें। कहीं कोई ऐसा काम न होने देना चाहिए, जिससे सरकार की शक्ति युद्ध मोर्चे से हट कर घरेलू झंझटों में लगे। इन दिनों उपभोग की वस्तुओं पर नियन्त्रण लग सकते हैं, ‘रोशनी गुल’ जैसे प्रतिबन्ध लग सकते है, उन्हें सच्चे मन से पालन करना चाहिए । अनावश्यक यातायात नहीं बढ़ाना चाहिए, ताकि परिवहन साधनों एवं रेल-मोटर की सड़कों को लड़ाई सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति में प्राथमिकता मिल सके।

युद्ध के दिनों योद्धा सैनिक मोर्चे पर लड़ते हैं, पर प्रजाजनों को भी अपने को दूसरे मोर्चे का सैनिक ही मानना पड़ता है। देश भक्ति की, राष्ट्रीय उत्तरदायित्वों की परीक्षा ऐसे ही समय होती है। मातृ भूमि पर आये हुए संकट के समय उसमें प्रत्येक भारतवासी को उत्तीर्ण होने का प्रयत्न करना चाहिए। जिसकी जो स्थिति है, उसे अपनी सामर्थ्य के अनुरूप राष्ट्र को हर प्रकार शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।

अखण्ड-ज्योति परिवार के सदस्यों का इन संकट की घड़ियों में विशेष कर्त्तव्य है। वे नव-निर्माण योजना के व्रतधारी सदस्य हैं। निर्माण के लिए सुरक्षा सबसे पहले चाहिए। आक्रमण से होने वाले विनाश को रोका जाय, तभी तो कुछ निर्माण होगा। इसलिए जिस श्रद्धा और लगन के साथ हम लोग नैतिक, सामाजिक एवं बौद्धिक स्तर का नव-निर्माण के प्रयास कर रहे थे, वैसे ही वरन् उससे भी अधिक उत्साह के साथ हमें वर्तमान युद्ध में मातृ-भूमि की स्वाधीनता एवं सुरक्षा के लिए प्राणपण से कार्य करना चाहिए। उपरोक्त कर्त्तव्यों को स्वयं तो पालन करना ही चाहिए, साथ ही जन-साधारण में भी वही प्रवृत्तियां उत्पन्न करनी चाहिए। आमतौर से लोगों की प्रवृत्तियां स्वार्थपरता एवं संकीर्णता के दायरे तक ही सीमित रहती है। लोकहित की उपेक्षा की जाती रहती है। लोक मानस को इस स्तर से ऊँचा उठाने और उसमें देश भक्ति की, त्याग-बलिदान की भावनाएँ उभारने के लिए प्रबुद्ध लोगों के विशेष प्रयत्नों की आवश्यकता होती है। हमें वही करना चाहिए अपने-अपने क्षेत्रों में वह वातावरण बनाना चाहिए, जिससे लोग आज की अग्नि-परीक्षा के समय अधिकाधिक शौर्य, साहस, त्याग एवं बलिदान का परिचय देने के लिए समुद्यत हो सकें। इस दृष्टि से जहाँ जो कार्यक्रम बन सकें, वह बनाने चाहिए। ऐसे प्रयासों को संगठित रूप से कार्यान्वित करने का प्रयत्न किया जाय तो उसमें बहुत काम होता है। युग-निर्माण शाखाओं के संगठन हर जगह मौजूद हैं, इन संगठनों को यह देखना है कि वे अपने क्षेत्र में क्या कर सकते हैं? जहाँ जैसी संभावना हो, वहाँ उस तरह की गतिविधियाँ तत्काल आरम्भ कर देनी चाहिए। समय की इस माँग को पूरा करने में हमें तनिक भी आलस्य- प्रमाद न करना चाहिए।

पिछले चीन आक्रमण के समय अखण्ड- ज्योति परिवार के सदस्यों ने इतना काम किया था कि उसका लेखा-जोखा यदि प्रकाशित किया जाय तो उस पर प्रत्येक देशभक्त को गर्व हो सकता है। अब की बार भी हमें बहुत कुछ करना है। भारत सरकार के रक्षा मन्त्री श्री चौहान को पत्र लिख कर हमने अपनी व्यक्तिगत सेवाएं अर्पित की हैं और लिखा है कि वे हमारे शरीर एवं साधनों का राष्ट्र रक्षा के लिए जो भी उपयोग करना चाहें करें। साथ ही एक हजार सैनिक, एक मन रक्त तथा एक लाख से ऊपर सुरक्षा कोष जुटाने के लिए आश्वासन दिया है। धन के लिए कोई फंड अलग से नहीं खोला जायेगा, वरन् जिन्हें जो भेजना होगा-सेक्रेटरी, राष्ट्रीय सुरक्षा कोष, दिल्ली के पते पर भेज दें। चीनी आक्रमण के समय धन संग्रह कर्ताओं की कई गड़बड़ियों की चर्चा सुनी गई थी। वैसा अवसर न आने पावे, इसलिए मनीआर्डर, चैक, ड्राफ्ट आदि से सीधा ही धन भेजना अधिक उपयुक्त है।

व्यक्तिगत रूप से इन दिनों हम सुरक्षा कार्यों को मजबूत बनाने के लिए अपना सारा ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं। इसलिए कई आवश्यक कार्यक्रमों को भी अस्थायी तौर से स्थगित कर दिया है। जाड़े के दिनों में विभिन्न प्रान्तों का दौरा करने का कार्यक्रम बनाया गया था। वह स्थगित कर दिया गया है। कहीं कोई कार्यक्रम हो तो बात दूसरी है पर अब अपनी ओर से हम दौरा करेंगे। मथुरा रहकर 3000 शाखाओं में प्रेरणा भरने तथा परिवार के कर्तव्यों का आवश्यक मार्ग दर्शन करने सम्बन्धी कार्य अधिक अच्छी तरह हो सकता है। बाहर चले जाने पर जहाँ जाते, वहाँ तो कार्य होता, पर देश भर से स्वजनों का मार्ग दर्शन करने, उन्हें पन्नों द्वारा आवश्यक मार्ग-दर्शन करने का सिलसिला ही बन्द हो जाता, फिर देश के विशिष्ट व्यक्तियों के साथ परामर्श, उनके एवं देशव्यापी नागरिक मोर्चे की योजनाबद्ध रूप से अग्रगामी बनाने के लिए भी यह आवश्यक था कि दौरा इन दिनों स्थगित रखा जाय और सुरक्षात्मक कार्यक्रमों में अपनी शक्ति लगा दी जाय। हमारा व्यक्तित्व बना ही इस ढंग का है कि राष्ट्रीय रक्षा एवं सम्मान के लिए जो सामयिक कर्तव्य सामने आवे उनकी उपेक्षा हो ही नहीं सकती। अंग्रेजी सरकार के विराट् स्वाधीनता संग्राम में पौने चार वर्ष तक जेल की यन्त्रणाएं सहीं। चीन का आक्रमण जितने दिन रहा उतने दिन पूरी तरह नागरिक मोर्चे को मजबूत बनाने के लिए काम करते रहे। अब वर्तमान इस राष्ट्रीय सम्मान के दाँव पर लगा देने वाले संघर्ष में भी हम पीछे नहीं रह सकते। पूजा, उपासना हमें प्राणों से अधिक प्रिय हैं, पर उसके साथ-साथ देश-सेवा के सामयिक कर्तव्यों का पालन करते रहने में हमें कोई अड़चन नहीं दिखाई पड़ती।

जिन शाखाओं ने जाड़े के दिनों में अपने यहाँ हमारे दौरे के संदर्भ में सम्मेलन आदि रखे थे, वे अब उन्हें स्थगित समझें। यदि पीछे उनकी आवश्यकता हुई तो नये सिरे से इस सम्बन्ध में विचार किया जायगा।

एक बात स्पष्ट है, हमें राष्ट्र को अधिक सबल एवं समर्थ बनाने के लिए रचनात्मक कार्यक्रमों में पहले से भी अधिक तत्परता के साथ लगना होगा। राष्ट्र संघ के प्रयत्न से फिर युद्ध विराम होता है या नहीं? लड़ाई देर तक चलती है या जल्दी बन्द होती है, इसका कोई महत्व नहीं। जब तक हमारे देश का प्रत्येक घर लोह-दर्ग और प्रत्येक नागरिक लौह-पुरुष नहीं बन जाता तब तक आक्रमणों की सम्भावना सदा ही बनी रहेगी। गरम युद्ध शीत युद्ध में और शीत युद्ध, गरम युद्धों में बदलते रहेंगे। जब तक ईर्ष्यालु लोग यह अनुभव न कर लें कि लड़ने में उन्हीं की हानि है, तब तक वे अनुचित लाभ उठाने की दुरभिसंधियाँ करते ही रहेंगे। संसार का नियम ही कुछ ऐसा है-’दुर्बल का दैव भी घातक होता है’, की उक्ति सार्थक ही सिद्ध होती हैं। चीन ने कुछ दिन गरम युद्ध किया था, अब बहुत-सा भू-भाग दबा कर शीत युद्ध जारी रख रहा है। पाकिस्तान अठारह वर्ष से शीत युद्ध लड़ रहा था, अब उसने गरम युद्ध छेड़ दिया है। शीत युद्ध भी कम खर्चीला और चिन्ता का विषय नहीं होता। ऐसे संघर्ष में भारत को अभी काफी समय तक संलग्न रहना पड़ेगा। युद्ध विराम चीन ने भी कर लिया है पर इसके साथ लड़ाई जारी है। पाकिस्तान पहले भी युद्ध विराम कर चुका है, अपनी जान बचाने के लिए फिर भी कर सकता है, पर इससे भी युद्ध का अन्त न होगा। वास्तविक हल तब निकलेगा, जब आक्रान्ता यह अनुभव करेंगे कि लूट-खसोट की घात लगाने में नहीं, भारत के साथ मित्रता करने में उनका लाभ है। यह स्थिति तब आवेगी जब हम सैन्य दृष्टि से ही नहीं, सामाजिक, शारीरिक, आर्थिक, नैतिक, बौद्धिक सभी दृष्टियों से सुसम्पन्न एवं समर्थ होंगे। युग निर्माण का उद्देश्य ऐसी ही विशिष्टता एवं बलिष्ठता प्राप्त करना है। इसलिए इन प्रयासों को दिन-दूने रात-चौगुने उत्साह के साथ आगे बढ़ना होगा। वास्तविक शक्ति का स्रोत यही हैं। जब राष्ट्र का हर नागरिक लौह-पुरुष सिद्ध होगा तो उसकी शक्ति अजेय होगी, कोई शत्रु उसकी ओर आँख न उठा सकेगा। जब तक वह स्थिति नहीं आयेगी, खतरा इधर से न सही, उधर से बना ही रहेगा। राज्य अपने क्षेत्र में समर्थता उत्पन्न करता है। धर्म को अपना मोर्चा संभालना चाहिए। नैतिक शक्ति के लिए राज्य-तन्त्र और आन्तरिक शक्ति के लिये धर्म-तन्त्र दोनों ही समान रूप से कार्य करते हैं। धर्म-तन्त्र की यद्यपि इन दिनों कम दुर्दशा नहीं है, फिर भी हमें जोड़-तोड़ कर उसे उपयोगी बनाना ही होगा। मानव जाति की भौतिक प्रगति राज्य-तन्त्र द्वारा भले ही सम्भव हो, पर उसकी आन्तरिक प्रगति एवं समर्थता धर्म-तन्त्र की सहायता के बिना अन्य किसी प्रकार भी उपलब्ध नहीं हो सकती। आन्तरिक समर्थता के बिना नैतिक बल बालू की भीति की तरह है। आक्रमणों का स्थायी अन्त करने के लिये जिस सर्वांगीण समर्थता की आवश्यकता है उसको उत्पन्न करने के लिए हमें प्राणपण से जुट जाना होगा। उसमें उपेक्षा करने से फिर वैसे ही दुर्दिन देखने पड़ सकते हैं, जैसे गत एक हजार वर्षों तक खून के आँसू बहाते हुए हमने देखे हैं।

युग निर्माण योजना का प्रयोजन यही है, उसके शतसूत्री कार्यक्रमों में से प्रत्येक इसी दृष्टि से प्रस्तुत किया गया है कि हम वैयक्तिक एवं सामूहिक दृष्टि से, शारीरिक, बौद्धिक, आर्थिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से सर्वतोन्मुखी, सुसम्पन्नता उपलब्ध कर सकें। युद्ध के प्रत्यक्ष स्वरूप से निपटने के लिये जहाँ हमें सुरक्षात्मक मोर्चे को मजबूत बनाने के लिये सामयिक कदम उठाने हैं वहाँ आक्रमणों की जड़ उखाड़ने वाली समर्थता प्राप्त करने के लिये रचनात्मक मोर्चे के महत्व को भी स्मरण रखना है। क्योंकि टिकाऊ शक्ति तो उसी से प्राप्त होगी और दीर्घकालीन समस्याओं का चिरस्थायी हल तो उसी से निकलेगा। नव-निर्माण कार्यक्रमों में अखण्ड-ज्योति परिवार के सदस्यों को तेजी लानी चाहिए। यह कार्य संकीर्ण स्वार्थपरता की कीचड़ में गन्दे कीड़ों की तरह बुजबुजाने से नहीं, वरन् अपने समय और साधनों को लोक-मंगल के लिये लगाने का मानवोचित साहस दिखाने से ही सम्भव होगा। परिजनों ने-हमारे उत्तराधिकारी और प्रतिनिधियों ने-एक घण्टा समय और एक आना रोज नव-निर्माण के लिये लगाने का व्रत लिया है, उसे उन्हें एक परम पवित्र धर्म प्रतिज्ञा समझ कर नियमित रूप से कार्यान्वित करते रहना चाहिये। युग-निर्माण योजना पाक्षिक के द्वारा रचनात्मक कार्यक्रमों का नियमित मार्ग-दर्शन होता रहता है। उसे ध्यानपूर्वक पढ़ते रहना चाहिये। अखण्ड-ज्योति के सदस्यों में से एक भी ऐसा न रहे जो पाक्षिक-पत्रिका को न पढ़ता हो। राष्ट्र को विजयी बनाने वाले रचनात्मक कार्यक्रमों की ट्रेनिंग एवं प्रेरणा तो उसी से प्राप्त करते है। परिजनों ने जो व्रत लिया है वह राष्ट्र-रक्षा के लिये लगे हुए युद्ध-मोर्चे पर लड़ने वाले सैनिकों की तरह ही कठोर एवं महान् है। उसे सच्चाई के साथ निवाहा जाना चाहिये। वर्तमान परिस्थितियाँ इसके लिये अधिकाधिक तत्पर होने के लिये प्रत्येक प्रबुद्ध परिजन को विवश कर रही हैं। इन उत्तरदायित्वों को हमें पूरी श्रद्धा एवं निष्ठा के साथ निवाहना चाहिए।


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