विचारों की हरियाली उगाइये

October 1965

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महाकवि शेक्सपीयर ने लिखा है-”दृश्य और अदृश्य का ज्ञान विचारों से होता है, संसार में अच्छा या बुरा जो कुछ भी है, वह विचारों की ही देन है।” इससे दो बातें समझ में आती हैं। एक तो यह कि संसार का यथार्थ ज्ञान पैदा करने के लिए विचार शक्ति चाहिये। दूसरे, अच्छी परिस्थितियाँ, सुखी जीवन और सुसंस्कृत समाज की रचना के लिये स्वस्थ और नवोदित विचार चाहिये। यह जो रचना हम करते रहते हैं, उसकी एक काल्पनिक छाया हमारे मस्तिष्क में आती रहती है, उसी को क्रियात्मक रूप दे देने से अच्छे-बुरे परिणाम सामने आते हैं।

तालाब ऊपर तक भरा होता है, चारों ओर से घिरा रहता है, तब उसमें किसी तरह की लहर नहीं उठती। तालाब के पानी में कम्पन पैदा करना है तो एक कंकड़ी उठाइये और उसे पानी में फेंक दीजिये। लहरें उठने लगेंगी। तालाब की गन्दगी किनारे को हटाने लगेगी। पुराने सड़े, गले, जीर्ण, शीर्ण, अशुभ, निराशापूर्ण विचारों को भगाने के लिये ऐसी ही गति मस्तिष्क में भी करनी पड़ेगी। दिमाग में जो ज्ञान-तत्व भरा हुआ है, उसे सजग करने के लिये एक विचार की कंकड़ी फेंकनी पड़ेगी। चिन्तन का सूत्रपात करेंगे तो विचारों की शृंखला बँध जायगी। पक्ष के भी विचार आयेंगे, विपक्ष के भी आयेंगे। आप अपनी निर्णायक शक्ति द्वारा भले-बुरे की छटनी करते रहिये। अशुभ विचारों को छोड़ दीजिये और भले विचारों को क्रिया में परिवर्तित कर दीजिये। धीरे-धीरे सही सोचने और सही करने का अभ्यास बन जायगा।

मान लीजिये आपके सामने रोजगार की समस्या है। अब आप इस तरह सोचना प्रारम्भ करें कि इस समस्या का हल किस तरह निकले? अपनी योग्यता, पूँजी, समय आदि प्रत्येक पहलू पर गहराई से विचार करते चले जाइये। जो बातें ऐसी हों, जिन्हें आप पूरा न कर सकते हों, उनको छोड़ते जाइये और जिनसे कुछ अच्छे परिणाम निकल सकते हों, उनकी प्रत्येक सम्भावनाओं की खोज-बीन कर डालिये। कोई न कोई रास्ता जरूर निकल आयेगा। आपकी समस्या सुलझाने का यही सही तरीका होगा।

यह याद रखिये कि आपकी ज्ञान-शक्ति जितनी विस्तृत होगी, उतने ही व्यापक और महत्वपूर्ण विचार उठेंगे। विचार की खाद है ज्ञान। इसलिये जिस विषय के विचार आप चाहते हैं, उस व्यवसाय के जानकर पुरुषों का साथ प्राप्त करना चाहिये या साहित्य के माध्यम से उसे अर्जित किया जाना चाहिये। सम्बन्धित विषय की प्रतिपाद्य पुस्तकों में सोचने के लिये प्रचुर सामग्री मिल जायगी। उनका अपनी स्थिति के अनुरूप चुनाव करने में आपको विचार मदद देंगे। उत्तम स्वास्थ्य की अभिलाषा हो तो आरोग्य वर्द्धक पुस्तक और पत्रिकायें प्राप्त कीजिये। स्वास्थ्य-संस्मरण, व्यायाम, आहार, संयम, प्राणायाम, सफाई आदि जितने भी विषय स्वास्थ्य से सम्बन्धित हों, उन पर एक गहरी दृष्टि डालिये, आपको अपनी स्थिति के अनुरूप कोई न कोई हल जरूर मिलेगा। किसी स्वास्थ्य-विशेषज्ञ डॉक्टर या प्राकृतिक चिकित्सक से भी सलाह लें तो आपकी समस्या और भी आसान होगी। विरोध करने वाले विचार न पैदा कीजिये, अन्यथा निराशा बढ़ेगी और परिश्रम व्यर्थ चला जायगा। आपको केवल रचनात्मक पहलू पर ध्यान देना है।

जाने हुये तथ्यों पर अनेक प्रकार से विचार करने से एक लाभ तो यह होता है कि विचार क्रमबद्ध हो जाते हैं, दूसरे नये तथ्यों की खोज होती है, इसलिए ज्ञान और अनुभव बढ़ता है। मस्तिष्क की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने का भी यह अच्छा उपाय है।

विचारों की उड़ान को बिल्कुल काल्पनिक बनाने का प्रयास भी न कीजिए, क्योंकि इससे कोई सही हल नहीं निकल सकेगा। हर समय ध्यान इस बात पर केन्द्रित रहना चाहिए कि जैसे ही आप को कोई निष्कर्ष दिखाई दे, वैसे ही विचारों की गति मोड़कर उन्हें विराम दे दीजिए और उसके क्रियात्मक-क्षेत्र में उतर जाइए। जो सोचकर निर्धारित किया था, उसे पूरा करने के लिए अमल करना जरूरी है, तभी विचार करने का पूर्ण लाभ मिलेगा।

जब एक काम पूरा हो जाता है तो दूसरा उठाइये। एक साथ अनेक विषयों पर चिन्तन करने से आपके ज्ञान-तन्तु लड़खड़ा जायेंगे और आप एक भी विषय का हल ढूँढ़ न सकेंगे। खाने का प्रश्न उठे तो केवल खाद्य के ही विषयों पर विचार कीजिए। उस समय पढ़ाई, भ्रमण या मकान बनाने की समस्या पर मानसिक शक्तियों को लगाने से एक भी समस्या का सही और पूर्ण हल न पा सकेंगे। एक काम रहेगा तो मन एकाग्र हो जायगा। इससे वह काम अच्छा बन सकेगा, पर थोड़ा-थोड़ा सभी ओर दौड़ने से कोई भी काम पूरा नहीं हो सकेगा और आपका उतना समय और श्रम व्यर्थ चला जायगा।

मन की एकाग्रता में बड़ी शक्ति है। जब पूर्ण निश्चिन्त होकर दत्त-चित्त से किसी विषय को लेते हैं, उसे पूरा करने का एक प्रवाह बन जाता है। रुडयार्ड किप्लिंग ने छोटी-छोटी कहानियों को एकत्रित करके उसे एक अत्यन्त उत्कृष्ट रचना का रूप दिया तो किसी मित्र ने उससे इस सफलता का रहस्य पूछा। किप्लिंग ने बताया कि वह जो कुछ लिख लेता था, उसे चुपचाप रख ही नहीं देता था, वरन् उसे बार-बार पढ़ता, उसकी अशुद्धियाँ दूर करता और अनुपयुक्त शब्दों को हटाकर सुन्दर शब्दों का समावेश करता रहता। पूरे समय उसी विषय पर ध्यान केन्द्रित रखने के कारण ही उसकी पुस्तक महान कृति बन सकी। काम करने की भावना और उस पर पूर्ण एकाग्रता से ही महान सफलतायें मिलती हैं। लाँग्रथिम (लघुगणक) के सिद्धान्त की खोज करने में नेपियर को बीस वर्ष तक कठिन परिश्रम करना पड़ा था। उसने लिखा है कि “इस अवधि में उसने किसी अन्य विषय को मस्तिष्क में प्रवेश नहीं होने दिया।”

एक विषय पर ही बार-बार उलट-पलटकर विचार करने से ही तल्लीनता बन पाती है। इस चिन्तन काल में सार्थक विचारों का एक पूरा समूह ही मस्तिष्क में काम करने लग जाता है, जो किसी भी नये अनुसन्धान में मदद करता है। इसलिये जान-बूझकर किसी समस्या के अच्छे-बुरे सभी पहलुओं पर बारीकी से विचार करना चाहिये। इससे सूक्ष्म-विचार तरंगों को पकड़ने वाली बुद्धि का विकास होता है और नये-नये विचार पैदा होने की अनेक सम्भावनायें बढ़ जाती हैं।

माइक्रोस्कोप किसी छोटी वस्तु को कई गुना बढ़ाकर दिखाता है, जिससे स्थूल आँखों से छिप जाने वाले विभागों का भी खुलासा मिल जाता है। विचार करने का दृष्टिकोण भी जितना विकसित होगा तथ्यों की जानकारी उतनी ही अधिक बढ़ेगी। उलझनों और जटिलताओं में भी एक सही हल निकलता हुआ दिखाई देने लगता है। किसानी के नये नये अनुभव, तथ्य और आँकड़े प्राप्त करने के लिए एक किसान से ही पूछ ताछ करना पर्याप्त नहीं होता। किसी को खाद सम्बन्धी जानकारी अधिक होती है, किसी को उपकरणों का ज्ञान अच्छा होता है। बीज बोना, निराई, कटाई आदि की विधिवत जानकारी के लिये कई किसानों का परामर्श आवश्यक है, उसी तरह नये विचारों को पैदा करने के लिये एक विषय को अनेक तरह से सोचना पड़ता है।

हमेशा एक तरह के विचारों में घिरे रहना मनुष्य के विकास को सीमित कर देता है। उन्नति की परम्परा यह है कि आपका मस्तिष्क उपजाऊ बने। सुन्दर जीवन का निर्माण करने में नये नये विचार पैदा करना हर दृष्टि से लाभकारी होता है। ज्ञान और अनुभव बढ़ता है, व्यवस्था आती है और अशुभ परिणामों से बच जाते हैं। विचारों की नई हरियाली में सारा जीवन हरा-भरा दिखाई देता है। इस परम्परा को जगाकर आपको भी अब पूर्ण विकसित होने का अधिकार पाने का प्रयास करना ही चाहिए। विचारशील बनना, सही विचार करने की पद्धति जान लेना, जीवन विकास के लिए कितना आवश्यक एवं कितना उपयोगी है, इसका अनुभव कोई भी व्यक्ति कर सकता है।


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