यदि मनुष्य अपनी पाशविक वृत्तियों पर नियंत्रण न करे, उन्हें यों ही उच्छृंखलतापूर्वक पनपने दे तो उसकी स्थिति नर शरीरधारी पिशाच जैसी हो जाती है। सर्प को चाहे भूल में ही अनजाने ही किसी ने छेड़ दिया है पर वह अपने को थोड़ा आघात लगने मात्र से इतना क्रुद्ध एवं उत्तेजित हो जाता है कि सामने वाले की जान लेकर ही पीछा छोड़ता है। कहते हैं कि सिंह, बाघ आदि हिंस्र पशु केवल इतनी सी बात पर क्रुद्ध हो जाते हैं कि उनकी आँख से आँख कैसे मिलाई। नीची आँख करके कोई सामने से भले ही निकल जाय पर आँखों की तरफ देखने लगे तो उसे वे अपना अपमान मानते हैं और इतनी सी बात पर आक्रमण करके सामने वाले की बोटी−बोटी नोंच डालते हैं। लोग बताते हैं कि पिशाच भी ऐसे ही असहिष्णु होते हैं। उनके पीपल मरघट के नीचे होकर गुजर जाय या कोई ऐसा काम कर बैठे जिसे वे पसन्द नहीं करते तो अपनी नापसंदगी का बदला वे सामने वाले की जान लेकर ही चुकाते हैं। सर्प, बाघ और पिशाच मनुष्य योनि में नहीं माने जाते पर मनुष्यों में भी अगणित ऐसे देखे जाते हैं जिन्होंने अपनी दुवृत्तियों पर नियंत्रण करना नहीं सीखा और फलस्वरूप असहिष्णुता की उत्तेजना में ऐसे काम करने लगे जो मनुष्यता को लज्जित करते हैं।
असंतुलन का प्रतिफल
बड़े लोभ, बड़े प्रतिशोध, बड़े कारण को लेकर बहुधा हत्याऐं, लूट, डुबकियाँ होती रहती हैं। पर जरा सी बात पर जब मनुष्य क्रोध में पागल होकर एक दूसरे की जाने लेने को उतारू हो जाते हैं तब पता चलता है कि आत्म−नियंत्रण की, विवेक की और अपने को मानसिक दृष्टि से सुसंस्कृत बनाने की कितनी अधिक आवश्यकता है और उसके अभाव में कितने दुष्परिणाम सामने उपस्थित होते हैं। हरिद्वार का समाचार है कि एक दुकानदार से किसी ग्राहक ने चार आने का सौदा खरीदा। ग्राहक नये−पुराने पैसे मिलाकर 24 नये पैसे दे रहा था जब कि दुकानदार 25 माँग रहा था। झगड़ा बढ़ गया और दुकानदार ने ग्राहक तथा उसकी पत्नी को छुरा घोंप दिया। हापुड़ का समाचार है कि जट्टा नामक 30 वर्षीय युवक एक नये−पैसे के झगड़े को लेकर अपनी जान गँवा बैठा। जट्टा ढाई आने के बदले 16 नये पैसे माँग रहा था, किन्तु दूसरा 15 दे रहा था। इतनी सी बात पर उसे छुरा घोंप दिया गया और अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई। कनखल का समाचार है कि दक्ष प्रजापति के मंदिर में एक यात्री ने दान के लिए एक नया पैसा फेंका जो दो साधुओं के बीच में पड़ा। दोनों उस पर अपना दावा करते हुए आपस में लड़ पड़े। एक ने दूसरे पर कुल्हाड़ी से हमला किया जिससे उसकी तुरन्त मृत्यु हो गई।
क्रोध का उन्माद
बरेली जिले में−थाना भोजपुर के ग्राम मढौली में 55 वर्षीय एक जाठव इसलिए मारा गया कि उसने मजदूरी पर जाने से इनकार किया था। दिल्ली का समाचार है कि रेखीराम नामक व्यक्ति एक व्यक्ति के यहाँ भोजन करता था, भोजन के पैसे चुकाने की बात पर कहासुनी हो गई और भोजन कराने वाले ने खुखरी से उसकी हत्या कर दी। मेरठ का समाचार है कि दो युवक साइकिलों पर आमने−सामने से आ रहे थे। संयोगवश साइकिलों में टक्कर हो गई। इतनी सी बात पर एक दूसरे का कसूर बताते हुए लड़ पड़े और एक ने दूसरे को छुरा घोंप कर बुरी तरह घायल कर दिया। कानपुर जजी से मौनी बाबा नामक साधु को फाँसी का हुक्म सुनाया है। उक्त साधु एक दूसरे सरजूसिंह नामक साधु के यहाँ अतिथि बनकर ठहरा। एक दो दिन तो उसे आतिथ्य मिला पर जब चले जाने को कहा गया तो उसने क्रुद्ध होकर सोते हुए सरजूसिंह की कुल्हाड़ी से हत्या कर दी। हिंडौन में 20 रुपया चढ़ा हुआ किराया अदा करने के विवाद में एक किरायेदार ने क्रोधान्ध होकर सात व्यक्तियों को घायल कर दिया जिसमें तीन की मृत्यु हो गई। दिल्ली सैशन जज ने पहाड़गंज के जयराम नामक युवक को फाँसी की सजा दी। युवक ने एक हकीम से इलाज कराया था। इलाज में 150) की दवा खा चुका था। फायदा न होने पर उसने हकीम से रुपया वापिस माँगा और न देने पर हकीम की हत्या कर दी। आगरा जिला के बरौली गाँव में ताश खेलते−खेलते दो प्रतिद्वन्दियों में झगड़ा हो गया और एक ने दूसरे की गँड़ासे से हत्या कर दी।
ऐसे समाचारों की वास्तविकता तो अदालतों में ही सिद्ध होती है पर उनसे इतना निर्ष्कष अवश्य निकलता है कि भयंकर काण्ड होने के लिये यह जरूरी नहीं कि उसके पीछे कोई कारण बहुत बड़ा ही होना चाहिए। मानसिक दुर्बलता, अविवेकशीलता, उत्तेजना और आत्म−नियंत्रण का अभाव स्वयं ही एक बड़ी विपत्ति है। चिनगारी मौजूद हो तो उसे दावानल का रूप धारण करने में कितनी देर लगेगी, केवल पनपने के लिए थोड़ा सा घास−पात चाहिए। कलह और संघर्ष का वातावरण घर−घर में जो देखने को मिलता है और उसका बहुत ही दुखद अन्त देखने को मिलता है उसमें कारण उतने कठिन नहीं होते। मानसिक कुसंस्कारों के कारण ही छोटी बातें भयंकर तूल धारण कर लेती हैं और उनसे अनर्थ उपस्थित हो जाता है।
आत्म−हत्याओं की बाढ़
आत्म−हत्याओं के जो दुखद समाचार आये दिन पढ़ने को मिलते रहते हैं उनमें भी बात छोटी और उत्तेजना बड़ी होती है। जोधपुर का समाचार है कि यहाँ के एक घनाड्य परिवार का बी. काम. का छात्र परीक्षा में असफल होने के कारण कायालाना झील में डूब कर मर गया। अमृतसर जिला सप्लाई कन्ट्रोलर के 16 वर्षीय पुत्र ने विष खाकर अनुत्तीर्ण होने के कारण आत्महत्या कर ली। गुड़गाँव डी. एम. डी. कालेज के एक छात्र ने रेल के आगे कटकर इसलिए आत्महत्या कर ली कि कम हाजिरी होने के कारण उसे परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं मिली थी। नैनीताल कालिज के एक छात्र ने अपने मकान के पीछे गौशाला में जाकर इसलिए फाँसी लगा ली कि वह जल्दी−जल्दी पैन खो देता था इस पर घर वाले उसे धमकाते थे। झाँसी के पास घुरैया गाँव के कृष्णनंद नामक युवक ने अपने सीने में गोली मारकर इसलिए आत्महत्या कर ली कि मैट्रिक परीक्षा में असफल रहा था। जबलपुर जिले में परसवारा गाँव का एक बारह वर्षीय लड़का इसलिए रेल के आगे कट मरा कि पिता ने किसी घरेलू बात पर उसे जरा सा डाँट दिया था। बेतूल के पुलिस थानेदार का 12 वर्षीय बालक भी इसी प्रकार पिता के जरा सा डाँटने पर क्रुद्ध होकर कुँए में कूद पड़ा और मर गया।
खिन्नता के वातावरण में
गृह कलह की साधारण समस्याओं पर खिन्न होकर मानसिक असंतुलन के कारण अगणित स्त्रियाँ जलकर फाँसी लगाकर कुँए में कूदकर, रेल से नीचे कटकर, विष खाकर आत्महत्या करती रहती हैं। इन घटनाओं के बारे में ऐसा सोचा जाता है कि इनमें घर वाले अत्याचार करते होंगे। ऐसा अनेक बार होता भी है। पर सदा केवल यही कारण रहता हो ऐसी बात नहीं है। यदि अत्याचार ही कारण रहता तो गृह−कलह से क्षुब्ध होकर पुरुष आत्म−हत्याऐं न करते क्योंकि उन्हें तो काफी स्वतंत्रता भी रहती है। हापुड़ के मुन्नालाल दलाल पारिवारिक कलह से क्षुब्ध होकर रेल के नीचे लेटकर कट गये। पहाड़गंज दिल्ली के 20 वर्षीय युवक मदनलाल ने फ्रेण्डस कालानी के निकट रेलगाड़ी के नीचे आकर पारिवारिक कलह के कारण आत्महत्या करली। कई तो इन छोटी बातों पर इतने उत्तेजित हो जाते हैं कि अपना ही नहीं अपने सारे परिवार का सर्वनाश करके चैन लेते हैं। इटावा के मुहल्ला खिड़कीरतनचंद का जगदम्बा प्रसाद सक्सेना अपनी दो नन्हीं सी बच्चियों को कुँए में पटक कर पत्नी को काटकर स्वयं रेल के नीचे कट मरा। बम्बई का एक बैंक कर्मचारी पदमाकर भी अपनी पत्नी तथा दो बच्चों का गला घोटकर स्वयं रेल के नीचे कट गया। महिलाऐं भी ऐसे कृत्य करने में पीछे नहीं रहतीं। जूनागढ़ में एक महिला अपनी तीन पुत्रियों और एक पुत्र को कुँए में पटक कर स्वयं भी उसी में डूब मरी। मलेर कोटला का समाचार है कि भेनी गाँव की एक महिला ने अपने पति से क्रुद्ध होकर अपने 6 वर्षीय पुत्र और 4 वर्षीय पुत्र को गला घोटकर मार डाला। इलाहाबाद नगर के निकट एक मजदूर ने अपने पाँच वर्षीय बच्चे को छुरे से काट डाला और स्वयं भी आत्महत्या कर ली।
असंतुलित मनोभूमि
इन घटनाओं पर विचार किया जाय तो उत्तेजना, क्रोध, विक्षोभ अधीरता असहिष्णुता और निर्दयता आदि मानसिक कारण ही प्रधान होते हैं। शोक, निराशा, हानि और असफलता के अवसर आने पर भी असंतुलित व्यक्ति ऐसे ही काण्ड कर बैठते हैं। हापुड़ के विजयपाल नामक पुलिस कान्स्टेिबिल ने बन्दूक की गोली मारकर आत्म−हत्या कर ली। एक मास पूर्व उसकी पत्नी तथा दो बच्चे हैजे में मर गये थे इसी से वह शोकातुर रहा करता था। चाँद कोट गढ़वाल का एक पी. ए. सी. सिपाही तालाब में कूदकर मर गया, कुछ दिन पूर्व उसकी पत्नी मरी थी इसी का उसे बहुत शोक था।
प्रेम की असफलता, प्रेमियों की अनबन, सामाजिक कारणों से विवाह न हो सकना, विवाह के लिये या पतियों के साथ जाने को मजबूर होना आदि कारणों में आत्म−हत्या का कुछ कारण भी समझ में आता है पर कई बार बहुत से कारण इतने सामान्य होते हैं कि उनके कारण इतनी उत्तेजना का होना आश्चर्यजनक लगता है। इलाहाबाद का समाचार है कि एक 19 वर्षीय लड़के ने इसलिए आत्म−हत्या कर ली कि उसकी पत्नी उसे प्रेम नहीं करती थी और उपेक्षा दिखाती थी। लखनऊ के एक अध्यापक ने इसलिए विष खाकर आत्म−हत्या का प्रयत्न किया कि उसे एक छात्र से 1 महीने की ट्यूशन फीस वसूल नहीं हुई थी। दिल्ली का गुरुवक्ससिंह नामक पोस्टल क्लर्क तार विभाग की पाँचवीं मंजिल से कूदकर मर गया। जेब में मिले पत्र से पता चलता है कि वह यह गुत्थी सुलझा सकने में असमर्थ रहा कि पहले अपना विवाह करे या अपनी बहिन का!
क्या यह इतने बड़े कारण थे?
मोती नगर दिल्ली के 9 वीं कक्षा के एक छात्र गोवर्धनलाल ने नीलाथोथा खाकर आत्म−हत्या कर ली। उसके पास जो पत्र मिला है उसमें लिखा है—‟कलियुग के हालात देखते हुए मैं इस संसार से जा रहा हूँ। सम्बन्धियों को नमस्ते।” पटना का समाचार है कि विहार शरीफ नगर के एक युवक ने सबडिवीजनल अधिकारी को अपने खून से पत्र लिखकर अनुरोध भरी चेतावनी दी है कि—‟अगर 2 जून तक उसकी प्रेमिका वेदामी देवी से शादी नहीं करादी गई तो वह 9 जून को सबडिवीजनल अधिकारी की कोठी के निकट फाँसी लगाकर आत्म−हत्या कर लेगा।”
कई बार तो मिल−जुल कर एक साथ कई व्यक्तियों के मृत्यु समझौते के रूप में आत्म−हत्या करने के समाचार मिलते हैं। टिहरी गढ़वाल के पास सतेपाली गाँव के निकट नयार नदी में तीन युवतियों की लाशें तैरती हुई पाई गई। तीनों की चुटियाँ और कमर आपस में बँधी हुई थी। इससे प्रतीत होता है कि तीनों ने सलाह करके ऐसा निश्चय किया होगा। बम्बई, ब्रजेश्वरी मुहल्ले के एक होटल में एक डाक्टर, उनके 17 वर्षीय पुत्र 11 वर्षीय पुत्री तथा 18 वर्षीय भानजी की लाशें बरामद हुई। जहर का इंजेक्शन, पिचकारी आदि उस कमरे से मिलने से पता चला कि सब को जहर का इंजेक्शन लगा है। मृतकों के पास एक चिट्ठी मिली है जिस में लिखा है—‛यह मृत्यु समझौता उनने स्वेच्छा से किया है। इस के लिए न किसी को दोषी माना जाय और न तंग किया जाय!’
कारण और निवारण
आत्म−हत्याओं की यह प्रवृत्ति जिस तेजी से बढ़ती जाती है वह चिन्ताजनक है। उत्तर−प्रदेश के संकलित आँकड़ों में बताया गया है कि गत वर्ष 2365 व्यक्तियों ने आत्म−हत्याऐं की जब कि उससे पहले वर्ष यह संख्या 1800 थी। मध्य−प्रदेश में 1960 में 1556 आत्म−हत्याऐं हुई जब कि 1953 में केवल 684 हुई। छोटे से गुजरात में केवल महिलाओं की आत्म−हत्याऐं ही 520 तक पहुँच गई। सारे भारतवर्ष में यह संख्या प्रति वर्ष 21 हजार तक पहुँच चुकी है।
इन आत्म−हत्याओं का प्रत्यक्ष कारण घरेलू झगड़े, लम्बी बीमारी, सम्बन्धियों की मृत्यु का शोक, दुर्व्यवहार, गैर कानूनी गर्भ, सामाजिक कलंक, प्रेम की असफलता, परीक्षा, अपमान, गरीबी, प्रतिशोध, उन्माद आदि बताये जाते हैं। इन कठिनाइयों के समाधान का प्रयत्न किया जाना चाहिए और ऐसा वातावरण बनाया जाना चाहिए कि जिसमें वे परिस्थितियाँ न रहें जिनके कारण लोगों को ऐसे दुखद कृत्य करने पड़ते हैं। फिर भी यह विचारणीय है कि मानव जीवन की सभी कठिनाइयाँ कभी हल नहीं हो सकती। कोई न कोई ऐसे कारण बने ही रहेंगे, जिनमें इच्छा के प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़े। धैर्य, साहस, विवेक के साथ प्रस्तुत कठिनाई से पार निकलने या उसका विकल्प सोचने का कोई प्रयत्न किया जाय तो मनुष्य कठिन से कठिन स्थिति का सामना कर सकता है और थोड़े ही दिनों फिर अच्छी स्थिति प्राप्त कर सकता है। आवेश और उत्तेजना घबराहट और हड़बड़ी, क्रोध और असंतुलन ही वे कारण हैं जिनमें किंकर्तव्यविमूढ़ होकर लोग न करने योग्य हत्या और आत्महत्या जैसे दुखद कृत्य कर बैठते हैं। इनसे कोई समस्या सुलझती नहीं, वरन् मरने वाले अपने पीछे सन्ताप की एक लम्बी शृंखला पीछे वालों के लिए छोड़ जाते हैं।
मूल समस्या पर ध्यान दिया जाय
आत्म−हत्या कर बैठने वाले थोड़े हैं पर ऐसे असंख्य हैं जो मानसिक उद्वेगों के कारण विक्षिप्त जैसे बने रहते हैं। उनकी गणना न मरने वालों में ही होती है न जीने वालों में है। मानसिक सन्तुलन खो बैठने के कारण वे अपनी सूझ−समझ, बुद्धि, दूरदर्शिता एवं क्रिया शक्ति से हाथ धो बैठते हैं और बहुत कुछ कर सकने की स्थिति में होते हुए भी कुछ कर नहीं पाते। मानसिक विक्षोभ आज अगणित लोगों को उसी प्रकार का लुंज−पुंज बनाये हुए है। आंशिक रूप से यह आवेश, उन्माद तो हम में से अनेकों को चढ़ता रहता है और समय−समय पर उसके छोटे−बड़े दुष्परिणाम भी सामने आते रहते हैं।
मानसिक मलीनता, शारीरिक अस्वस्थता से भयंकर है। रोगी उतना दुखदायी नहीं जितना आवेश−ग्रस्त, आततायी। वह कभी भी किसी छोटी−सी बात पर भी कोई बड़ा अनर्थ खड़ा कर सकता है। इसी मानसिक विकृति से हम सब बचें यह नितान्त आवश्यक है। मन की स्वच्छता बढ़ाने और उसके सुसंस्कारित बनाने के लिए हमें विवेकशीलता की अभिवृद्धि करनी होगी जनसाधारण के मन में शान्ति, सहनशीलता, उदारता, धीरज, शिष्टाचार, संयम एवं दूरदर्शिता की प्रवृत्ति उत्पन्न करनी होगी। पाशविक वृत्तियों पर नियंत्रण इसी आधार पर स्थापित किया जा सकता है और आत्म−नियंत्रण प्राप्त करके ही कोई सुसंस्कृत मनुष्य सच्चे अर्थों में मनुष्य कहलाने का अधिकारी बन सकता है। समाज में जब तक सुख−शान्ति की आकांक्षा एक कल्पना मात्र ही बनी रहेगी। उच्छृंखल मनोभूमि के सुधारने की ओर ध्यान न दिया गया तो हत्याओं और आत्म−हत्याओं की प्रवृत्ति दिन−दिन बढ़ती रहेगी।