साहस और पुरुषार्थ का प्रतिफल

February 1962

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

गिरी हुई मनोभूमि के लोग छोटी−सी कठिनाई सामने आने पर हताश हो जाते हैं, साहस छोड़ बैठते हैं और दीन−हीन बनकर गिरा हुआ जीवन बिताना ही अपना भाग्य मानने लगते हैं। पर साहसी लोग अपने साहस, धैर्य, अध्यवसाय, प्रयत्न और पुरुषार्थ द्वारा भारी बाधाओं पर भी विजय प्राप्त करके अपने लिए रास्ता निकाल लेते हैं। यदि साहस को न गिरने दिया जाय तो कोई भी व्यक्ति विघ्न बाधाओं को चीरते हुए ऐसा उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है जो सर्वसाधारण को आश्चर्य जैसा लगे।

कानपुर के एक 30 वर्षीय नेत्र विहीन श्री शंकर दयाल भंडारी ने इस वर्ष द्वितीय श्रेणी में एक साथ एम.ए. तथा साहित्य सम्मेलन की ‘साहित्य रत्न’ परीक्षा पास की है। उन्होंने हाई स्कूल प्रथम श्रेणी में तथा इंटर एवं बी.ए. द्वितीय श्रेणी में पास किया था। इन्दौर में हिन्दी साहित्य सम्मेलन की साहित्य रत्न परीक्षा मूक−बधिर विद्यालय के एक नेत्रविहीन छात्र श्री बद्रीप्रसाद दुबे ने सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की। इसी प्रकार एक और अन्धे छात्र ने विशारद परीक्षा पास की है। नागपुर में विजयकुमार और रामकृष्ण नामक दो अन्धे छात्रों ने क्रमशः प्रथम और द्वितीय श्रेणी में मैट्रिक परीक्षा पास की है।

प्रकृति पर मानवीय विजय

प्रकृति के ऊपर मानवीय लगन की विजय का एक अद्भुत उदाहरण 21 वर्षीय यादव मेशराम ने प्रस्तुत किया है। भण्डारा जिला स्थित तुमसर का यह निवासी जन्म से ही दोनों भुजाओं से हीन है। प्रकृति ने उसे हाथ नहीं दिये किन्तु विद्याध्ययन की उसकी उत्कट इच्छा अपंगता के कारण भी नहीं मुरझाई। वह इस वर्ष युनिवर्सिटी परीक्षा में बैठा है। अपने सभी परीक्षाओं का उत्तर उसने अपने पैरों में कलम दबा कर लिखे हैं। अधिकारियों ने उसे सहायता के लिए लेखक भी देना चाहा पर उसने इनकार करके पैरों से ही लिखकर प्रश्न पत्र हल किये।

झाँसी के जिला विकास कार्यालय में एक ऐसा टाइपिस्ट भी है जिसके हाथ नहीं है लेकिन टाइप की गति 45 शब्द प्रति मिनट है। मेहरोनी गाँव के उक्त निवासी 36 वर्षीय नवाब अली के दोनों हाथ 14 वर्ष की आयु में एक दुर्घटना की भेंट हो गये थे। लेकिन जीवन की कठोरता को जिस वीरता के साथ उन्होंने स्वीकार किया, वह श्रद्धा से सिर झुकाने योग्य है। मुसीबतों का सामना करते हुए उसने अध्ययन जारी रखा और 27 वर्ष की आयु में हाई स्कूल परीक्षा पास कर ली। कुछ दिन ग्राम पंचायत में सचिव का काम करते हुए उन्होंने टाइप राइटिंग सीखा और आज इस पद पर काम कर रहे हैं।

पूना का समाचार है कि अपने परिश्रम से एम.ए. फिर एल.एल.बी. की उपाधियाँ प्राप्त करने वाले एक सिपाही का महाराष्ट्र सरकार ने औरंगाबाद में पुलिस प्रोसीक्यूटर नियुक्त किया है। श्री. रघुनाथ पाँडुरंग देवेरे ने लगातार 14 वर्ष तक मामूली सिपाही के रूप में काम किया और उसी बीच उनने पढ़ते रहकर उपरोक्त सारी परीक्षाऐं पास कर लीं।

अमरीका की 20 वर्षीय छात्रा क्यूबर्ट ने रोम की ओलम्पिक प्रतियोगिता में 100 मीटर की दौड़ 11 सैकिण्ड में पूरी करके सारे संसार का अब तक की दौड़ का रिकार्ड तोड़ दिया और विश्व की सबसे तेज दौड़ने वाली महिला घोषित की गई। यह लड़की जोड़ो के दर्द के कारण सात वर्ष की उम्र तक चल भी नहीं सकती थी पर वह निराश नहीं हुई। अपना स्वास्थ्य सुधारने के लिए निरन्तर प्रयत्न करती रही और तेरह वर्ष में ही उसने इतना स्वास्थ्य सुधार लिया कि विश्व में अपना रिकार्ड कायम कर सके।

लगन और प्रयत्न

फिल्म अभिनेता श्री पृथ्वीराज कपूर ने पत्रकारों को बताया कि आगामी 5 वर्षों में उन्होंने 9 भाषाऐं सीखने का निश्चय किया है। उन्होंने पंजाब की भाषा समस्या पर व्यंग करते हुए कहा कि पंजाबी 14 साल से इस बात पर बहस कर रहे हैं कि वे पहले हिन्दी पढ़ें या पंजाबी। यदि वे मेरे उदाहरण पर चलते तो अब तक 27 भाषाऐं सीख लेते।

इन्दोर के उषागंज निवासी 69 वर्षीय श्री. लक्ष्मी नारायण अवस्थी ने एम.ए. परीक्षा पास की है। उनकी पुत्री ने राजनीति में एम.ए. की परिक्षा देने की तैयारी की है। वे परीक्षा देने में अपनी पुत्री से एक दो वर्ष आगे रहते रहे हैं। डाक तार विभाग की सेवा से अवकाश प्राप्त इस पढ़ाकू को आज भी 100 रु. मासिक पेन्शन मिलती है, पर उनकी अध्ययन लालसा अभी भी अदम्य है।

बेलगाँव का समाचार है कि श्री. एल. के. मुकर्जी नामक सज्जन 1946 में सारे भारत की पदयात्रा करने के लिए निकले हैं। अब तक 80 हजार मील की पद यात्रा कर चुके हैं। सन् 1963 तक वे अपनी यात्रा पूरी हो जाने की आशा करते हैं। यात्रा समाप्ति के बाद वे भारत−भ्रमण पर एक सर्वांगपूर्ण पुस्तक लिखेंगे।

लुधियाना के पास दाऊदपुर के भूतपूर्व सैनिक तथा आज के कृषक श्री. जगनसिंह ने एक बीघा जमीन में 125 मन प्याज पैदा करके नया रिकार्ड स्थापित किया है। आमतौर से एक बीघे में 20 से 50 मन तक प्याज पैदा होता है। प्राप्त सूचना के अनुसार इस प्याज में एक−एक का वजन एक सेर तक था।

सिंह से भिड़ने वाले नरसिंह

साहस और पुरुषार्थ की कमी ने हो तो एक साधारण मनुष्य भी बड़ी से बड़ी विपत्ति से जूझ सकता है। विपत्ति उतनी हानि नहीं पहुँचाती जितनी पस्तहिम्मती और कायरता। यदि घबराया न जाय तो सिंह जैसे भंयकर पशु से भी मनुष्य लड़ सकता है और उसे परास्त कर सकता है।

गढ़वाल जिले के सिमतौली गाँव के मोल्याराम नामक युवक ने बिना किसी हथियार के बाघ को मारकर सब को आश्चर्य में डाल दिया। वह अपने खेत में हल चला रहा था कि झाड़ी से निकलकर अचानक बाघ उस पर झपटा। उसने एक हाथ से बाघ का गला पकड़ा और दूसरे से पत्थर उठाकर उसे पीट−पीटकर मार दिया। बाघ के पंजों से युवक भी घायल हुआ है और अस्पताल में है।

बेतूल जिले के बिसनौर तहसील में एक युवक और सिंह के बीच कुश्ती होने का समाचार मिला है। यात्रियों का एक दल जब बैलगाड़ी से दूसरे गाँव जा रहा था तो रास्ते में एक युवक ने शेर का सामना किया और बिना साहस खोये आधा घण्टे तक उस दुर्दान्त पशु से द्वन्द्व युद्ध करता रहा। पश्चात् शेर को अन्य ग्रामीणों की सहायता से मार दिया गया।

टिहरी अस्पताल में केसर पट्टी के नीली गाँव का एक नवयुवक भैरवदत्त घायल होकर भर्ती हुआ है। उसने तीन दिन पूर्व अपने गाँव में भालू से भिड़कर अदम्य साहस का परिचय दिया था। खेतों में छिपे पाँच भालुओं के एक परिवार ने उस पर हमला किया था पर युवक ने कुल्हाड़ी से उनका सामना किया। दो भालू मारे गये और तीन भाग गये।

जो साहस हिंस्र पशुओं को परास्त करने में काम करता है वही चोर डाकुओं का मुकाबला करने में भी प्रयुक्त हो सकता है। यदि प्रतिरोध के लिए व्यक्ति −गत साहस और सामूहिक जन−बल संगठित हो तो उनकी वैसी दाल न गलने पावे जैसी कि आजकल जगह जगह गल जाती है।

डाकुओं से मुकाबला

बदायूँ जिले के मोहन नगला नाम के ग्राम के वासियों ने सशस्त्र डाकू दल का मुकाबला करके वीरता का परिचय दिया और गाँव को लूटे जाने से बचा लिया। डाकू झाझन नामक व्यक्ति के यहाँ डाका डालना चाहते थे, उनने गोली भी चलाई पर गाँव वाले डरे नहीं, उनने लाठी और बल्लमों से ही मुकाबला किया और एक डाकू को जीवित ही पकड़ लिया।

करौली डिवीजन के करोड़ ग्राम में हीरालाल नामक व्यक्ति के यहाँ डकैती डालकर मारा पीटा और उसके जेवर तथा अन्य सामान लूट लिया। ग्रामीणों ने डाकुओं का चम्बल पार मध्य−प्रदेश तक पीछा किया और दो को पकड़ लिया। पुलिस अधीक्षक ने ग्रामीणों के साहस से प्रभावित होकर उन्हें दो बन्दूकें एवं कुछ नकद पारितोषिक देने की सिफारिश की है। प्रयाग के लाहंदा गाँव में डकैती डालने के लिए आये हुए दस डाकुओं का मुकाबला किया गया और पीछा करके उन्हें गाँव से उलटे पैरों भाग जाने को विवश कर दिया।

मथुरा में बाबूगढ़ के खादर में डकैतों के एक दल और ग्रामीणों के संगठित दल में देर तक गोली चली, अन्त में ग्रामीणों ने एक डकैत को देशी बन्दूक तथा 26 कारतूसों व एक हाथ गोले के साथ पकड़ लिया। शेष डाकू भाग गये। कानपुर जिले के चिगौल ग्राम निवासियों ने डकैती डालने आये डाकुओं का आठ मील तक पीछा किया और अन्त में 4 डकैतों को पकड़ लाये। डाकुओं द्वारा बड़े पैमाने पर गोलियाँ चलाने पर भी ग्रामीण भयभीत नहीं हुए और लाठियों तथा ईंट-पत्थरों से उनका मुकाबला करते रहे।

राँची के एक किसान की बहादुरी और बुद्धिमानी के द्वारा किस प्रकार एक भीषण डकैती बचा ली गई, इस सम्बन्ध में एक समाचार जिले के सरीडकेल ग्राम से प्राप्त हुआ है। कहा जाता है कि डकैतों का एक गिरोह उक्त किसान के घर पहुँचा और जब सैंध लगा रहा था तो किसान जाग पड़ा। उसने धैर्य नहीं खोया और चुपके से छत से उतर कर डकैतों के गिरोह में मिल गया। मौका देखकर उसने एक डकैत के हाथ पर फरसे से वार किया। उक्त डकैत के हाथ में एक भरी बन्दूक थी। वह वहीं लुढ़क गया। पश्चात् किसान और डकैतों में उठा−पटक और लड़ाई हुई। किसान ने अन्य दो डाकुओं की भी बुरी तरह मरम्मत की। डकैत भयभीत होकर भाग गए। डकैतों का सरदार बुरी तरह घायल हो गया तथा किसान ने रात भर उसे पकड़े रखा। सवेरे उसे पुलिस को सौंप दिया गया।

प्रयत्न और पुरुषार्थ, धैर्य और साहस, आशा और उत्साह, त्याग और बलिदान, शौर्य और पराक्रम के गुण जिनके पास हैं उनके लिये कोई विपत्ति देर तक मार्ग रोके खड़ी नहीं रह सकती। कोई विघ्न उनको विचलित नहीं कर सकता। सफलता साहस के चरण चूमती रहती है। पुरुषार्थी लोग अपने भाग्य का निर्माण आप करते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: