अब नहीं; तो 65 वर्ष बाद सही

February 1962

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अष्टग्रही योग चाहे चिन्ता का विषय न हो पर मानव जाति और विश्व के भविष्य के सम्बन्ध में संसार के उच्चकोटि के विचारकों और वैज्ञानिकों ने जो भविष्यवाणियाँ की हैं वे हमारे लिए बार−बार विचारणीय और मननीय हैं।

बढ़ती हुई आबादी का संकट

लन्दन 6 मई का समाचार है कि—स्वास्थ्य विज्ञान के विश्व विख्यात विशेषज्ञ प्राध्यापक हुर्मेन बेटी ने ब्लैकपूल में स्वास्थ्य काँग्रेस की रायल सोसाइटी में एक खोजपूर्ण निबन्ध पढ़ते हुए यह मत प्रतिपादित किया कि—‟आगामी सन 2050 में अर्थात् आज से 60 साल बाद संसार की हालत महाप्रलय से भी खराब हो जायगी। उस समय दुनियाँ की आबादी करीब 6 अरब हो जायगी और तब धरती पर इतने लोगों के लिए न खाना मिल सकेगा, न शुद्ध वायु, न पानी, न बिजली। लोगों के रहने के लिए जो मकान होंगे उनमें केवल खड़े होने भर की जगह मिल सकेगी। जानवरों का नाम निशान तब इस दुनियाँ में से मिट जायेगा क्योंकि जब मनुष्यों के रहने और खाने के लिए धरती की शक्ति पर्याप्त न रहेगी तो पशुओं को उसमें से हिस्सा कौन बटाने देगा? लोग उन्हें मार काट कर बहुत पहले ही चटकर जायेंगे।”

“कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस के बारे में उनसे कहा है कि—आगामी सौ सालों में प्रकृति का सारा संचित भंडार समाप्त हो जायेगा। प्रकृति को जितना ईंधन पैदा करने में 25 करोड़ साल लगे हैं, बढ़ती हुई आबादी और उसकी वर्तमान आवश्यकताऐं उसे 250 वर्ष के भीतर ही खतम कर लेंगी। अणुशक्ति के उत्पादन की बात सोची जा रही है पर उसे उत्पन्न करने के साधन भी तो पृथ्वी पर सीमित ही हैं और वे भी कुछ ही दिन में समाप्त हो जावेंगे। धातुओं का भण्डार भी तब तक चुक जायेगा और अनेक स्थान तो ऐसे हो जायेंगे जहाँ एक−एक बूँद पानी के लिए लोगों को तरसना पड़ेगा।”

“ईसा से 10 हजार साल पहले दुनियाँ की आबादी केवल 10 लाख थी। पर वही बढ़ कर आज 2 अरब 60 करोड़ हो चुकी है। इस हिसाब से सन् 2150 में जब दुनियाँ की आबादी 9 अरब हो जायगी तो प्रति व्यक्ति को केवल 1 वर्ग मीटर जमीन हिस्से में आयेगी।”

65 वर्ष बाद

ऐलीनाय विश्वविद्यालय के भौतिक शास्त्री प्रो. हीजवान फोस्टेर का कथन है कि—”मानव जाति का अन्त शुक्रवार 13 नवम्बर सन् 2023 को अर्थात् अब से 64 साल बाद हो जायेगा। उस दिन एक तरह से जनसंख्या का विस्फोट हो जायेगा। जनसंख्या इतनी बढ़ जायगी कि वह स्वयं ही अपने आपको नष्ट कर लेगी।”

जैसे−जैसे जनसंख्या बढ़ती है वैसे ही वैसे अस्तित्व रक्षा के लिए प्रजनन की मानव क्षमता भी बढ़ेगी। इस सिद्धान्त पर ‘साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि—”यह धारण कि मानव की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विज्ञान प्रगति कर लेगा केवल तीन पीढ़ियों तक ही सही हो सकती है। जनसंख्या की वृद्धि से प्राकृतिक साधन तेजी से समाप्त होते जा रहे हैं और पृथ्वी के जीवन योग्य क्षेत्र दूषित होते चले जा रहे हैं। आबादी की बढ़ोतरी इस तेजी से हो रही है कि सन् 2023 तक वह अनियंत्रित हो जायगी। हमारे नाती−पोते भुखमरी के ही शिकार नहीं होंगे वरन् स्थान की कमी के कारण भी वे मर जाएँगे।” कैलिफोर्नियाँ औद्योगिकय संस्था के डा. जेम्स वोनर ने कहा कि—विश्व की आबादी प्रतिवर्ष 45 करोड़ के हिसाब से बढ़ रही है। यदि यही गति रही तो कुछ ही दिन में यह स्थिति आ जायगी कि धरती पर पैर रखने की भी जगह न रहे।

न्यूयार्क 13 मई का समाचार है कि ब्रिटेन के जीव विज्ञान शास्त्री सर जुलियन हक्सले ने जनसंख्या सम्मेलन पर आयोजित एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन के अध्यक्ष पद से भाषण करते हुए चेतावनी दी कि—मानव जाति को अपनी ही संख्या वृद्धि से खतरा पैदा हो गया है। यह प्रश्न राष्ट्रसंघ की बृहत् सभा में उठाया जाना चाहिए और इस संकट को हल करने के लिए विश्व−व्यापी पैमाने पर प्रयत्न किया जाना चाहिए।

मरणं बिन्दु पातेन.....

जिस बात को हर्मेन वेटी, हीजवान फोस्टेर, जेम्स बोनर, जुलियन हक्सले आदि वैज्ञानिक आज कह रहे हैं उस विभीषिका को हमारे पूर्वज बहुत पहले ही जानते थे और उन्होंने युगों पूर्व यह चेतावनी दी थी कि ब्रह्मचर्य के सम्बन्ध में शिथिलता की नीति बरतने से, काम−वासना पर से अंकुश ढीला करने से मानव−जाति विपत्तियों में ही नहीं फंसेगी वरन् उसे मरण के लिए तैयार होना पड़ेगा। आप्त वचन है—‟मरणं बिन्दु पातेन जीवनं बिन्दु धारणम्” अर्थात् वीर्यपात ही मृत्यु और वीर्य का धारण ही जीवन है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य की सुरक्षा, दृढ़ता, पुष्टि, दीर्घजीवन, प्रतिभा, मेघा, स्फूर्ति आदि अनेक वैयक्तिक लाभ ब्रह्मचर्य पालन, से उपलब्ध होते हैं। आत्मबल, श्रेय संचय एवं ईश्वर प्राप्ति का तो प्रमुख साधन ही है। सुसंतति भी केवल वे ही प्राप्त कर सकते हैं जो मनोविकारों से बचते हुए केवल संतानोत्पादन की आवश्यकता को ध्यान में रखकर गृहस्थ−धर्म का पालन करते हैं। विश्व हित की दृष्टि से जनसंख्या को सीमित एवं नियंत्रित रखा जाना आवश्यक है। अन्यथा प्रकृति के द्वारा उत्पन्न साधन बढ़ी हुई जन−संख्या के लिए अपर्याप्त हो जाएँगे और बढ़ी हुई आबादी संकट उत्पन्न कर देगी। इन बातों को ध्यान में रखते हुए ब्रह्मचर्य के पालन पर यहाँ बहुत जोर दिया जाता रहा और वासना को नियन्त्रित करने वाले अनेक धार्मिक नियम बनाये गये। आजीवन ब्रह्मचर्य, पवित्र वैधव्यजीवन, अधेड़ होते ही वानप्रस्थ, विद्याध्ययन काल में अनिवार्य ब्रह्मचर्य आदि की प्रथाऐं इसी दृष्टि से थी। व्यभिचार को भयंकर पाप इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए ठहराया गया था। यदि वे मान्यताऐं प्रतिष्ठित रहती तो वह विभीषिका सामने न आती जो उपरोक्त वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी में प्रस्तुत है।

ब्रह्मचर्य की उपेक्षा

काम सेवन सम्बन्धी मर्यादाऐं शिथिल होने का, ब्रह्मचर्य के प्रति उपेक्षा बरतने का परिणाम सामने उपस्थित है। इसके लिए सभी विचारशील व्यक्ति एवं सरकारों के कर्णधार चिन्ताग्रस्त हो रहे हैं। इस तरह के बाह्य उपचार सोचते हैं पर उनसे भी कुछ बन पड़ेगा ऐसी आशा कम ही है। तृतीय पंचवर्षीय योजना में भारत सरकार परिवार नियोजन पर 25 करोड़ खर्च करने वाली थी पर अब वह रकम बढ़कर 50 करोड़ हो जाने की संभावना है। सरकार जानती है कि यदि आबादी की बढ़ोतरी नहीं रुकी तो प्रगति के सारे सपने धूमिल हो जावेंगे और जो विशाल योजनाऐं बनाई जा रही हैं वे आज की जैसी स्थिति कायम रखने के लिए भी अपर्याप्त सिद्ध होंगी।

विश्व जनसंख्या आँकड़ा विभाग ने बताया है कि वर्तमान गति से भारत की जन−संख्या अगले दस वर्ष में 10 करोड़ और बढ़ जायगी और इससे अगले दस साल में दुगुनी होकर 89 करोड़ 60 लाख तथा 22 साल बाद 1 अरब 88 करोड़ हो जायगी। सारे संसार में केवल चीन की जन−संख्या भारत से अधिक है। भारत में लगभग 44 करोड़ और चीन में 70 करोड़ मनुष्य अर्थात्—डय़ौढ़े से कुछ अधिक लोग हैं पर चीन के पास भारत से तीन गुनी जमीन है। इस दृष्टि से भूमि की कठिनाई को देखते हुए भारत के सामने चीन से भी अधिक कठिनाई रहेगी।

परिवार नियोजन की विशेषज्ञ श्रीमती मलिका घोष ने बताया कि प्रति मिनट भारत में 20 नये बच्चे पैदा हो जाते हैं जब कि मरने वालों की संख्या इससे काफी कम है। दार्जलिंग 2 अगस्त का समाचार है कि भक्तपुर गाँव की एक कृषक महिला 26 बच्चों की माँ है और ललितापुर की एक स्त्री अब तक 22 बच्चे जन्म चुकी है। इतने पर भी ऐसे मूर्ख इस दुनियाँ में बसते हैं जो संतान न होने पर दूसरी शादी करने की बात सोचते हैं और केवल इसी कारण अपने को भाग्यहीन मानकर संतान के लिए लालायित रहते हैं। ऐसे लोग यह भी नहीं सोचते कि विश्व संकट को कुछ कम करने में जो सौभाग्य उन्हें मिला है उस पर प्रसन्नता अनुभव क्यों न करें?

विभिन्न और विचित्र उपाय

समस्या सचमुच चिन्ताजनक है पर सूझ नहीं पड़ता कि नियन्त्रण के लिए क्या किया जाय? लोगों ने अपने−अपने ढंग से इसके हल भी सोचे हैं और उपाय भी किये हैं। हैदराबाद कार्पोरेशन के मेयर श्री वेद प्रकाश जी ने सुझाव रखा है कि—देश में बढ़ती हुई जन संख्या गंभीर रूप धारण कर चुकी है इसलिए एक कानून बनाकर तीन से अधिक बच्चे पैदा करने वालों पर अतिरिक्त कर लगाया जाना चाहिए और दंड व्यवस्था की जानी चाहिए।

भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने 300 रु॰ की मासिक आय वालों को गर्भ निरोध के साधन रबड़ की झिल्लियाँ, जेली, गोलियाँ आदि मुफ्त में और 500 तक की आय वालों को लागात से आधे में देने का निश्चय किया है। गाँवों में किसी की चाहे कितनी ही आमदनी क्यों न हो परिवार नि॰चिकित्सालयों में यह चीजें मुफ्त दी जावेगी। इन साधनों का स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ेगा यह अभी अनिश्चय है। लन्दन 13 सितम्बर का समाचार है कि ब्रिटेन की राष्ट्रीय विवाह निर्देशन समिति के चिकित्सा सलाहकार मण्डल के मंत्री डा॰ इर्थन डय़क्स ने चेतावनी दी है कि गर्भ निरोधक गोलियाँ जो कि शीघ्र ही ब्रिटेन के बाजार में आने वाली हैं केन्सर जैसे भयानक रोग का कारण बन सकती हैं।

नृशंस और रोमांचकारी हल

चीन ने इस समस्या का हल एक और भी ढंग से निकाला है। ताइपेह (फारमोसा) के कोमिताँगी प्रधान मंत्री चेन चेंग ने बताया कि पेकिंग सरकार बढ़ी हुई जनसंख्या के लिए खाद्यान्न का अभाव हो जाने से अपनी एक तिहाई जनसंख्या को विधिवत् नष्ट कर रही है। कम्यूनिस्टों ने जनसंख्या को तीन वर्गों में विभक्त किया है (1) आवश्यक (2) कम आवश्यक और (3) अनावश्यक। तीसरे अनावश्यक वर्ग में वृद्ध तथा उत्पादन कार्य के अयोग्य व्यक्ति शामिल हैं। इस नीति के अनुसार कम्युनिस्ट 14 करोड़ नागरिकों को नष्ट करने के लिए सीमांत क्षेत्रों में ले जाने की तैयारी कर रहे हैं। फारमोसा को ‘दी सेन्ट्रल डेलीन्यूज’ नामक पत्र में समाचार छापा है कि—‟चीनी साम्यवादियों ने सन् 1950 के बाद से आबादी घटाने के उद्देश्य से 3 करोड़ लोगों की हत्या की है और 9 करोड़ चीनियों को श्रम शिविरों में भेज दिया है।

एकमात्र हल—संयम

दुनियाँ के बुद्धिमान लोग अपने−अपने ढंग से इस जनसंख्या वृद्धि और उससे उत्पन्न संकट पर विचार एवं प्रयत्न करने में संलग्न हैं पर यह क्यों नहीं सोचा जाता कि कामुकता की बढ़ती हुई प्रवृत्ति पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए धार्मिक, नैतिक एवं स्वास्थ्य की महत्ता प्रतिपादित की जाय और जन−मानस में ब्रह्मचर्य के लिए आवश्यक श्रद्धा उत्पन्न की जाय। प्राचीन काल में करोड़ों वर्षों तक इसी आधार पर यह संकट उत्पन्न होने से रुका रह सका है,अन्यथा यदि वर्तमान काल जैसी कामुकता अनियंत्रित रही होती तो अब से हजारों लाखों वर्ष पूर्व ही यह विभीषिका उत्पन्न हो गई होती। संकट काल्पनिक नहीं वास्तविक है। ब्रह्मचर्य में शिथिलता उत्पन्न करने वाली विचारधाराऐं इसके लिए दोषी हैं। फैशन परस्ती, अश्लीलता, गंदे चित्र, सिनेमा, उत्तेजक साहित्य, सहशिक्षा, भद्दे गीत, दूषित वातावरण एवं वासना की स्वच्छन्दता का समर्थन जैसी बातें ही जन−मानस में कामुकता की प्रवृत्ति भड़काती हैं और उसी से जनसंख्या की बढ़ोतरी का संकट उत्पन्न होता है। स्वास्थ्य का सत्यानाश करने वाला तो यही प्रधान कारण है। आहार सम्बन्धी भूलें जितनी हानिकर हैं उससे अधिक यह वासनात्मक अनियंत्रित दुष्प्रवृत्ति अहितकर है। इसे रोका न गया, सँभाला न गया तो हमारे शरीर तो दिन−दिन चौपट होने ही है सामूहिक रूप से भी हमें आत्मघात के लिए तैयार होना पड़ेगा। ‘मरणं बिन्दु पातेन जीवनं बिन्दु धारणम्’ का सनातन सिद्धान्त कभी गलत नहीं हो सकता। यदि वासना पर नियंत्रण नहीं हो सकता तो जनसंख्या की वृद्धि भी नहीं रुक सकती। बाह्य उपचार एक सीमा तक ही उनकी रोकथाम कर सकते हैं। काम तो जड़ तक पहुँचने से ही बनेगा।

अष्टग्रही योग तो जप, तप से टल जायेगा पर अनियंत्रित वासना का सर्वनाशी योग ब्रह्मचर्य की प्रतिष्ठा एवं आत्म संयम के अतिरिक्त और किसी प्रकार टलने वाला नहीं है। ग्रहों से रक्षा हो सकती है पर असंयम का महाग्रह किसी के टालने से टलने वाला नहीं है। यदि उससे बचने के लिए सतर्क न हुआ गया तो सर्वनाश का संकट निश्चित है आज न सही 90 वर्ष बाद सही।


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