हमारे पारिवारिक स्नेह सम्बन्ध क्या टूट ही जाएँगे?

February 1962

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कुटुम्ब एक प्रकार से मनुष्य का सामाजिक शरीर ही है। जैसे शरीर के एक भाग को सुखी और समुन्नत बनाने के लिए शरीर के दूसरे भाग में कोई कमी नहीं रहने देते और सारे अवयव एक दूसरे की उन्नति एवं परिपुष्टि से लाभ उठाते हैं वही आधार कुटुम्ब का भी होता है। आधार ‘अपनेपन’ को विस्तृत करना है। माता अपना जीवन रस निचोड़ कर बच्चे का शरीर बनाती है, और उसे पालती−पोसती है; पिता अपनी कमाई को स्वयं कष्ट में रहकर भी बच्चों के लिए खर्च करता और जमा पूँजी को उत्तराधिकार के रूप में उन्हीं को सौंप जाता है। भाई−भाई एक ही हाथ की उंगलियों की तरह मिल−जुल कर काम करते हैं। पति−पत्नी आपस में इतने घुल जाते हैं कि एक प्राण दो शरीर का उदाहरण बनते हैं। संतान अपने माता−पिता को ब्रह्मा, विष्णु के समान पूज्य मानती हैं। बहिन−भाई का सम्बन्ध तो अलौकिक ही रहता है। सास, बहू में माता−पुत्री जैसा, देवरानी जिठानी में बहिन−बहिन जैसा प्रेम भाव रहता है। इसी आधार पर कुटुम्बी लोग मिलकर एक सम्मिलित सामाजिक शरीर जैसे बन जाते हैं और उसकी इकट्ठी शक्ति से आर्थिक एवं सामाजिक लाभ अत्यधिक होता है। इस संगठन की छाया में परिवार के बच्चे, बूढ़े, विधवाऐं, अशक्त , उपार्जन न कर सकने वाले, अयोग्य व्यक्ति भी बड़े आनंदपूर्वक अपना समय काट लेते हैं। एक दूसरे के दुख−दर्द को बटाकर बड़ी से बड़ी मुसीबत को हलकी कर लेते हैं।

रामायण का आदर्श

निर्जीव वस्तुऐं एक और एक मिल कर दो होती हैं पर सजीव मनुष्य एक और एक मिल कर ग्यारह होते हैं। इस सच्चाई का प्रत्यक्ष अनुभव वहाँ किया जा सकता है जहाँ परिवार के सभी लोग परस्पर सच्चा प्रेम करते हैं। एक दूसरे के लिए आदर, उदारता, त्याग एवं आत्मीयता की भावनाऐं निरन्तर प्रदान करते रहते हैं। रामायण का सबसे बड़ा शिक्षण पारिवारिक आधार की आध्यात्मिकता एवं कर्तव्य शीलता का शिक्षण ही है। एक से कोई भूल होती है तो दूसरे स्वयं कष्ट उठा कर अपनी उदारता से उसका समाधान करते हैं। दशरथ का केकैयी को अनुचित वरदान देने के लिए भी वचन−बद्ध होना, केकैयी का अनुचित वरदान माँगना, राम का धोबी के कथन से प्रभावित होकर सीता को वनवास देना यह तीनों ही मानवीय दुर्बलताऐं हैं पर इनका समाधान रामायण में प्रतिहिंसा और विद्वेष के रूप में नहीं वरन् दूसरे पक्ष के आदर्श त्याग के रूप में प्रस्तुत किया है। दशरथ केकैयी को संतुष्ट करने के लिए स्वयं पुत्र शोक में मरना स्वीकार करते हैं, राम भी विमाता और पिता को प्रसन्न करने के लिए अनुचित आज्ञा होते हुए भी खुशी−खुशी वन चले जाते हैं, भाई की सुरक्षा के लिए और पति की सेवा के लिए सीता वनवास का कष्टसाध्य जीवन स्वीकार करती है। भरत भाई का अधिकार लेना किसी भी प्रकार स्वीकार नहीं करते और राम की खड़ाऊँ को सिंहासन पर बिठाकर स्वयं भी एक तपस्वी की तरह जीवन बिताते हुए राज−काज चलाते हैं। सीता को जब परित्याग किया जाता है तो वे अपने पति के प्रति दुर्भावना नहीं लाती वरन् उनके यश की रक्षा के लिये बाल्मीकि के आश्रम में विछोह और अभाव का जीवन बिताना स्वीकार करती हैं। कौशिल्या न तो अपने बेटे को वन जाने से रोकती है और न उर्मिला अपने पति को। परिवार का सच्चा आधार यही प्रेम यही आत्म त्याग है। प्रेम उदारता सेवा और आत्म त्याग की व्यावहारिक शिक्षा मिले इसीलिए कुटुम्ब की पद्धति मानवजाति में प्रचलित हुई है। यह आधार न रहे तो फिर कीड़े मकोड़ों का सा ही अपना भी पारिवारिक जीवन रहेगा।

संगठन और प्रेम की प्रतीक—परिवार

स्वजन सम्बन्धियों के बीच अधिक से अधिक प्रेम होना चाहिए। एक दूसरे की प्रगति एवं शान्ति के लिए जी जान से प्रयत्न करें। किसी से कोई भूल हो जाय तो उसे भी रामायण के पात्रों की तरह स्वयं कष्ट सहकर भूल करने वाले को सुधरने एवं पश्चाताप करने का अवसर प्रदान करें तभी कुटुम्ब का उद्देश्य और कर्तव्य पूरा हो सकता है। भारत की यह आदर्श परिवार प्रणाली लाखों वर्षों तक घर−घर में स्वर्गीय वातावरण बनाये रहने में समर्थ रही है। अभी भी जिन घरों में वह वातावरण है वहाँ कितनी ही कठिनाइयाँ होते हुए भी आनन्द एवं संतोष का निर्झर बहता है। पर अब व्यक्तिगत स्वार्थपरता, अनुदारता, लोभ, अहंकार आदि मानसिक मलीनताओं की अभिवृद्धि के साथ−साथ पारिवारिक आधार भी टूटते जा रहे हैं। घर−घर में कलह, ईर्ष्या, खींचतान, शोषण, द्वेष और मनोमालिन्य का वातावरण दिखाई पड़ता है। प्रेम और आत्मीयता के अभाव में मजबूरी के बन्धनों में बँधे हुए बंदियों की तरह कुटुम्बी लोग एक घर में रहते तो हैं, एक चौके में रोटी भी खाते हैं पर उनमें वैसी सहानुभूति नहीं होती जिसकी सुगंधि से हर कुटुम्बी का मन आनन्द विभोर हो सके। इतना ही नहीं मनुष्य का व्यक्तिगत भावना स्तर जितना क्षुद्र होता जाता है उसी अनुपात से वह बाहर वालों की तरह घर वालों के लिए भी घातक बनता जाता है। लोभी, स्वार्थी, संकीर्ण और क्रूर स्वभाव बन जाने पर अपने और पराये किसी पर भी आक्रमण करते उसे देर नहीं लगती।

क्षमा और उदारता

छोटी−छोटी जिन बातों की उपेक्षा, हँसी, आत्मत्याग, सत्याग्रह आदि के आधार पर सुधारा जा सकता था, उतनी सी प्रतिकूलताओं पर एक कुटुम्बी दूसरे की जान लेने लगा है। जरा से लोभ के लिए, जरा से स्वार्थ के लिए आत्मीयता को त्यागकर मनुष्य अपने कुटुम्बियों के लिए ही कैसा खून का प्यास बन जाता है उसकी अगणित घटनाऐं पढ़ने और सुनने में आती रहती हैं। सामने पड़े हुए गत वर्ष के अखबारों में से कुछ समाचार नीचे प्रस्तुत करते हैं :— घटनाओं का वास्तविक निष्कर्ष तो उनके अदालती निर्णय से निकला होगा पर आरोप एवं जनश्रुति के आधार पर समाचार पत्रों में प्रकाशित घटनाऐं इस प्रकार छपी हैं:—

स्वार्थ के लिए स्नेह का तिरस्कार

नाथद्वारा (मेवाड़) का रामशंकर नामक युवक अपने सगे भाई को जहर देने के आरोप में अपनी पत्नी समेत पकड़ा गया। बताया जाता है कि इस बड़े भाई ने छोटे भाई को उसके हक की जायदाद से वंचित करने के लिये दूध में विष मिला कर उसे पिला दिया था। टेकमलपुर (आजमगढ़) के एक अहीर पर यह आरोप है कि उसने खेती के बटवारे की समस्या सामने आने पर अपने दो बेटों को ही गंडासे से कत्ल कर डाला। जाजऊ (आगरा) का एक युवक अपनी नानी को दिन दहाड़े मार डालने के अपराध में पकड़ा गया। अभियुक्त नानी की पाँच बीघा जमीन हड़पना चाहता था, नानी इसके लिये तैयार न होती थी। एटा जिले के खड़ौआ गाँव में एक छोटी−सी जमीन के बटवारे पर एक का व्यक्ति कत्ल हो गया। इस सिलसिले में उसका बड़ा भाई और भतीजा पकड़ा गया है। दिल्ली का समाचार है कि एक अठारह वर्षीय युवक ने अपनी माता की गोदी में से छीनकर छोटे भाई को जमुना में फेंक दिया। युवक अपनी माता के चरित्र पर संदेह करता था और बच्चे को पिता के रहते हुए भी अवैध होने का अनुमान लगाता था। अकोला में गोपाल सिंह नामक व्यक्ति को अपनी सत्तर वर्षीय माता से उसके जेवर हड़पने के लोभ से हत्या करने के अपराध में पकड़ा गया है। दूर गाँव (राँची) के उराव जाति के एक व्यक्ति ने अपने पिता को लाठी से इसलिए मार डाला कि पिता ने उसे गाली दी थी। भुट्टी वाला (पंजाब) के अवतारसिंह नामक व्यक्ति को फाँसी का दंड मिला है। अपराधी ने भूमि सम्बन्धी एक मामूली से लोभ के कारण अपने पिता, भाई, भावज तथा उसके तीन बच्चों को मार डाला। ग्वालियर का केदारनाथ नामक व्यक्ति इसलिए पकड़ा गया है कि उसने रोटी बनाने में देर कर लेने के कारण पिता से कुपित होकर उसके पेट में भाला घुसेड़ कर मार डाला।

कृतघ्नता और निर्दयता

बदायूँ का एक धनाढ्य वैश्य लड़का इसलिए पकड़ा गया है कि उसने पूजा पर बैठे हुए अपने पिता को कुल्हाड़ी से काट डाला। कलारपुरी (गुडगाँवा) की एक सत्तर वर्षीय बुढ़िया कुँए में फेंक कर मार डाली गई। बताया जाता है कि उसकी चालीस बीघा जमीन हड़पने के लिए उसके कुटुम्बियों ने ही यह कुकृत्य किया है। इसी प्रकार 10 हजार के जेवर नकदी तथा 30 बीघा जमीन पर कुटुम्बियों की ही कुदृष्टि होने के कारण बघौली (हरदोई) की आनंदी देवी नामक महिला को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा। आनन्द पर्वत (दिल्ली) के राजू नामक 4 वर्षीय बालक की लाश पुलिस ने बरामद की है। बताया जाता है कि पिता ने किसी बात पर क्रुद्ध होकर बच्चे को इतना पीटा कि बेचारे ने दम ही तोड़ दिया। जुन्नारदेव (छिन्दवाड़ा) में एक व्यक्ति ने अपने दामाद को घरेलू झगड़े के निपटारे के लिए बुलाया। बेचारे ने समझौते का एक फार्मूला तैयार किया पर उसे एक पक्ष स्वीकार नहीं कर रहा था। रात को वह व्यक्ति छुरे से गोद कर मार डाला गया। कहा जाता है कि जिस साले को समझौता पसंद नहीं था उसी ने अपने बहनोई की हत्या कराई। दिल्ली के किशनगंज मुहल्ले में सुरजीसिंह नामक व्यक्ति अपनी पत्नी तथा साले को मार डालने के अपराध में पकड़ा गया है। बात इतनी सी बताई जाती है कि साला अपनी बहिन को लिवाने आया था पर अपराधी अपनी पत्नी को भेजना नहीं चाहता था। चित्तौड़गढ़ में एक धनी माहेश्वरी बुढ़िया की लाश को पुलिस ने मरघट में जलने से रोका और उसके पुत्रों को पकड़ा है। कहा जाता है कि अपनी माता की सम्पत्ति जल्दी ही प्राप्त करने के लिए पुत्र अधीर रहते थे और उन दोनों ने मिलकर बुढ़िया का गला घोंट डाला।

मोह ममता की इतिश्री

भागलपुर के एक गाँव का कोई व्यक्ति बैल बेचकर उसके रुपये लाया। उनमें से एक रुपया उसके छोटे पुत्र ने ले लिया। इस पर क्रुद्ध होकर उसने उस्तरे से लड़के का गला काट डाला। इस काण्ड की सूचना माता ने थाने में जाकर पुलिस को दी। धनपुरी (जबलपुर) में एक व्यक्ति अपनी ससुराल में ही मारा गया। बताया जाता है कि दामाद अपनी पत्नी को विदा कराने की जिद कर रहा था। ससुर भेज नहीं रहा था। कहा सुनी हुई तो ससुर ने दामाद के सिर में मूसल दे मारा जिससे वह वहीं ढेर हो गया। राँची (बिहार) के एक लखपती ठेकेदार राम किशनदास के पुत्र राजकुमार ने अपनी सौतेली माता, चाची व उनके कई बच्चों की हत्या कर डाली, जिससे उसके पिता की सम्पत्ति पर दावा करने वाला अन्य कोई न रहे। वह इन सब को किसी बहाने से एक मोटर में बैठा कर दूर ले गया और वहाँ अपने मित्र मोटर ड्राइवर रशीद की सहायता से सब को छुरे से काट कर मोटर के बाहर फेंक दिया। मुकदमा चलने पर दोनों अभियुक्तो को प्राण दण्ड दिया गया। कृष्णनगर, दिल्ली के महेशचन्द्र को अपनी सौतेली माँ की हत्या करने के अपराध में फाँसी की सजा हुई है। अभियुक्त की माता छह वर्ष पूर्व मर गई थी, इसके बाद उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली और उसके नाम एक मकान भी खरीद दिया। हत्यारा चाहता था कि वह यह मकान उसे मिले। इसके लिए उसने पिता से कहा भी पर वह राजी न हुआ तो उसने माता को छुरे से मार डाला और पिता जब बचाने आया तो उसे भी घायल कर दिया। ग्राम मेहरा चौधरी (आगरा) में दो सगे भाइयों में किसी सामान्य कारण पर भयंकर संघर्ष हो गया जिसके फलस्वरूप एक भाई घटनास्थल पर ही मर गया और उसकी पत्नी तथा पुत्री साँघातिक रूप से घायल हो गई। झाँसी की एक कुम्हारिन ने किसी छोटी सी बात पर क्रुद्ध होकर अपने चार वर्ष के छोटे से बालक को ही हँसिये से काट डाला।

अनियंत्रित हिंसावृत्ति

ज्ञात हुआ है कि हरदोई जिले के महमदपुर तेरा ग्राम में एक लड़के ने अपनी माँ के आभूषण नकदी हड़पने के लालच में उसकी हत्या कर दी। जब उसने देखा कि उसका बड़ा भाई इस रहस्य को प्रकट कर देगा तो उसे भी मौत के घाट उतार दिया और सारा माल असवाब जो घर में था लेकर चम्पत हो गया। भगतपुर (मुरादाबाद) दो सगे भाइयों में, जो अलग रहते थे, एक बार नाले के ऊपर झगड़ा हो गया जिसमें एक ने बल्लम मारकर दूसरे की हत्या कर दी। गोंडा में एक रेल कर्मचारी की दो पत्नियों में पारस्परिक कलह के फलस्वरूप बड़ी ने छोटी को कृपाण से मार दिया। बड़ी पत्नी के सन्तान न होने के कारण उक्त कर्मचारी ने कुछ समय पूर्व ही दूसरा विवाह किया था। पलवल (जि. गुडगाँवा) के प्रतापसिंह नामक युवक को अपनी 85 वर्षीय नानी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। वह समय−समय पर नानी से सहायता लिया करता था। इस बार नानी ने उसे कुछ देने से इनकार कर दिया तो उसने−उसे जान से मार दिया।

घरेलू नौकर जो परिवार के सदस्यों की तरह ही वफादार रहते थे अब जमाने के साथ वे भी अपना रंग बदल रहे हैं। शाहदरा के एक चाय स्टाल पर काम करने वाले नौकर धूरासिंह ने स्टाल के मालिक मूलचन्द तथा उसके पिता को जहर देकर 350) चम्पत कर दिये। अस्पताल में वे दोनों बच गये। धूरासिंह को तीन वर्ष की सजा मिली।

इस प्रकार की घटनाऐं भले ही थोड़ी मात्रा में होती हों पर हमारे पारिवारिक जीवन और स्वजन सम्बन्धियों के प्रति रहने वाली स्वाभाविक आत्मीयता में कमी होने का संकेत करती हैं। प्रेम भावना, आत्मीयता और ममता यदि घटती चली गई और उसकी स्थिरता एवं अभिवृद्धि की, आध्यात्मिक आधारों की रक्षा न की गई तो मनुष्य दिन−दिन निष्ठुर ही होता जायेगा और उसका अन्त कहाँ होगा, यह कल्पना करने मात्र से दिल दहलने लगता है।


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