अन्तर्राष्ट्रीय वर्ष 31 दिसम्बर को समाप्त हुआ। इस दिन गत वर्ष की प्रगति एवं स्थिति पर एकबार दृष्टिपात करने की इच्छा हुई। जिस दुनियाँ में हम रहते हैं, जीते, बैठते, गिरते और मरते हैं वह एक प्रकार से अपना घर या देह ही है। उसके सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी का होना उचित भी है और आवश्यक भी। मनुष्य सामाजिक प्राणी है, उसका अलग से कोई अस्तित्व नहीं। अपनी आवश्यकताएँ पशु, पक्षी तो अपने आप पूरी कर सकते हैं पर मनुष्य के लिए यह कठिन है। कोई चाहे गुफा में रहे या बाजार में दूसरों की सहायता एवं सेवा की उसे किसी न किसी रूप में जरूरत पड़ती ही है इसलिए उसे समाज के साथ अनिवार्यतः सम्बद्ध रहना पड़ता है। संबंध का प्रभाव पड़ना भी निश्चित है इसलिए जिस प्रकार हमें अपने शरीर और घर की समस्याओं की जानकारी रखनी पड़ती है वैसे ही समाज की गतिविधियों से परिचित रहना और उनके सम्बन्ध में विचार करना आवश्यक होता है।
इन आवश्कताओं को ध्यान में रखते हुए पिछले वर्ष की प्रमुख घटनाओं पर एक बार दृष्टिपात करना उचित प्रतीत हुआ। दिल्ली से निकलने वाले दैनिक हिन्दुस्तान एवं नवभारत टाइम्स दो पत्रों की फाइल मंगाकर उसे पलटना आरंभ कर दिया। अज्ञातवास की अवधि में भी हमें यदाकदा ही अखबार मिल सके इसलिए एक वर्ष की बजाय डेढ़ वर्ष के पत्रों पर दृष्टिपात करना ठीक था। जून 60 से लेकर दिसम्बर 61 तक के डेढ़ वर्ष के इन दोनों पत्रों के पृष्ठों पर हमने सरसरी दृष्टि डाली। जो समाचार हमारी दृष्टि में कुछ अधिक महत्वपूर्ण जँचे उन पर निशान लगाये। ऐसे निशान लगे हुए समाचार कई दिन तक हमें निरन्तर विचारमग्न बनाये रहे और मन में बहुत उथल−पुथल मचाते रहे। उचित लगा कि इस चिन्तन में अखण्ड ज्योति के पाठकों को भी सम्मिलित कर लिया जाय। यह अंक इसी संदर्भ में प्रस्तुत किया जा रहा है।
इस अंक में कुछ थोड़े से समाचारों को लेकर वर्तमान परिस्थितियों पर विचार करने की चेष्टा की गई है। जिन भले या बुरे समाचारों का उल्लेख किया गया है वैसा ही हमारा सारा समाज नहीं है। इस संसार में, विशेषतया भारत भूमि में बुराई की अपेक्षा अच्छाई अधिक है अन्यथा आत्मा को इस लोक में रहना ही क्यों प्रिय होता? फिर भी कुछ विशेष घटनाऐं हमारे मानसिक झुकाव एवं बढ़ते कदमों को कुछ संकेत करती ही हैं। बुराई चाहे थोड़ी ही क्यों न हो, चिन्ता की बात है। रोग छोटा हो तो भी उससे सतर्क रहना आवश्यक है। छोटे शत्रु से भी बेखबर नहीं रहना चाहिए। इसी प्रकार अच्छाई का एक छोटा अंकुर उगा हो तो उसकी भी सुरक्षा और सिंचाई का ध्यान रखा जाना चाहिए। इन समाचारों में जो हमारी दुर्बलताओं पर प्रकाश डालने वाले हैं उन्हें पढ़कर हमारी सतर्कता बढ़नी चाहिए। हताश होने की कोई बात नहीं है। युग निर्माण की सत्प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं वे ऐसी विकृतियों को चुनौती के रूप में ही मानेंगी और उनका उन्मूलन करके रहेंगी।
हमारा अतीत गौरवमय था और भविष्य भी सब प्रकार उज्ज्वल है। विचारणीय केवल वर्तमान है। वर्तमान में जहाँ−जहाँ छिद्र हैं उन्हें ढूँढ़ निकालना, उन्हें बन्द करना कर्तव्य है ताकि प्रगति के पथ में पड़े हुए रोड़े हट सकें। आज जो कुछ उदीयमान दिखाई पड़ता है वह भले ही छोटा हो पर है महत्वपूर्ण। भलाई की शक्ति बुराई की अपेक्षा असंख्य गुनी प्रबल होती है। भलाई को बढ़ाने के लिए उसे प्रोत्साहित करने के लिए हम प्रयत्नशील रहें तो भविष्य की आशा भी अतीत के गौरव से कम नहीं है।
इस अंक में उद्धृत समाचारों की तारीखों का उल्लेख जगह−जगह नहीं किया गया है। पाठक उन्हें गत डेढ़ वर्ष की अवधि में दिल्ली के उपरोक्त दो दैनिक हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित समझें।