बेचारी सरकार भी क्या करे?

February 1962

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अपराधों की वृद्धि पर आमतौर से सरकार को दोष दिया जाता है। एक अंश में उसको यह उत्तरदायित्व है भी कि पुलिस एवं अदालतों के माध्यम से उन्हें रोकने का प्रयत्न करे । इस प्रयत्न में उसकी शिथिलता होने पर उसकी आलोचना भी करनी चाहिए और अधिक सतर्क रहने के लिए दबाव भी डालना चाहिए। परन्तु साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सरकार की मशीन में हम ही सब हैं। हमारे ही बच्चे और भाई बन्धु सरकारी कर्मचारी बनते हैं। यदि हमारा सामूहिक चरित्र उच्चकोटि का नहीं है, उसमें त्रुटि है तो हमारे परिवार से गये कर्मचारी भी उन बुराइयों को अपने साथ ले जाकर सरकारी मशीन को वैसा ही बना देंगे। कई बार जनता द्वारा उपस्थित किये प्रलोभन कर्मचारियों को पथभ्रष्ट कर देते हैं। कई बार जनता के फैले हुए अनाचार के मुकाबले में कर्मचारी अपने को असमर्थ पाते हैं और जन सहयोग के अभाव में अपराधियों को पकड़ने और सजा दिलाने में सफल नहीं हो पाते। सरकारी मशीन को सुधारने और कर्मचारियों में फैले हुए भ्रष्टाचार को रोकने के लिए यों उच्च अधिकारी कुछ न कुछ करते रहते हैं, इसका थोड़ा बहुत प्रभाव भी पड़ता है, भय भी रहता है और सुधार भी होता है। फिर भी यह उपचार रक्त विकार से उत्पन्न फोड़ों पर बाहरी मरहम पट्टी करने के समान ही है।

भ्रष्टाचार उन्मूलन के प्रयत्न

पंजाब सरकार द्वारा प्रकट किये गये आँकड़ों द्वारा प्रकट होता है कि गतवर्ष 350 सरकारी कर्मचारियों को भ्रष्टाचार के कारण सरकारी नौकरियों से बरखास्त किया गया। ऐसे ही कारणों से 156 की तरक्की रोकी गई। 133 को चेतावनियाँ दी गई, 37 की निंदा की गई और 15 को तनज्जुल किया गया। 11 को जेल हुई 10 को अनिवार्य रूप से रिटायर किया गया। 12 को छोटी−मोटी सजाऐं दी गई। इसके अलावा कुछ की पैंशनें घटा दी गईं कुछ का बोनस वेतन और ग्रेच्युटी जब्त की गई। उत्तर−प्रदेश में 1334 कर्मचारी दंडित हुए। जिनमें 1058 को नौकरी से निकाल दिया गया, 29 बर्खास्त हुए, 52 पद वनत हुए, 186 की उन्नति रोकी गई। केन्द्रीय मंत्रालय की स्पेशल पुलिस संस्थान की मासिक रिपोर्ट में बताया गया है कि नवम्बर में 101 सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध खुली जाँच की गई जिनमें 27 गजटेड आफीसर थे। पं. नेहरू ने लोकसभा में यह स्वीकार किया कि जाली पासपोर्ट बनाने वालों का एक व्यापक जाल देश भर में फैल गया है। उनके अड्डे कई प्रान्तों में हैं।

अधिकारियों में ऐसे भी हैं

गाजियाबाद के सरकारी खजाने से लगभग 16 लाख का गबन करने के अपराध में तीन अधिकारियों को कठोर दंड दिया गया है। एक को 4 वर्ष की सजा और 55 हजार जुर्माना हुआ है। काँगड़ा जिले के एक ब्लाक डेवलपमेंट आफीसर को मेरठ पुलिस ने एक होटल में 1 लाख 10 हजार के करेंसी नोटों समेत पकड़ा है। कहते हैं कि एक पखवाड़े पूर्व से वह यह रकम सरकारी खजाने से लेकर फरार था और पाकिस्तान भाग जाने की तैयारी कर रहा था।

दिल्ली निगम के कुछ विभागों में कितने साहस के साथ रिश्वत ली जाती है यह रहस्योद्घाटन करते हुए निगम की बैठक में एक वरिष्ठ अधिकारी श्री कवरलाल गुप्ता ने कहा— इंजीनियरिंग विभाग से एक व्यक्ति के केस की फाइल निकलवानी थी। परन्तु जब कई बार प्रयत्न करने के पश्चात् भी फाइल न मिली तो मैंने असिस्टेंट इंजीनियर को कहा कि वह फाइल तीन दिन के भीतर निकलनी चाहिए। बेचारे असि. इंजीनियर ने अपनी जेब से पाँच रुपये देकर अपने क्लर्क को रिकार्ड आफिस भेजा और वह क्लर्क तुरन्त फाइल लेकर आ गया। रिश्वत लेने वाले अपने इंजीनियर को भी नहीं बख्शते!

आचार्य कृपालानी ने लोकसभा में यह रहस्योद्घाटन किया कि खादी के लिए एक रेलवे वेगन की आवश्यकता थी। परन्तु प्रयत्न करने के बावजूद भी वैगन का मिल सका। इस पर मेरे कार्यकर्ताओं ने मुझे बताया कि बिना रिश्वत दिये वैगन प्राप्त नहीं होगा। अतः मैंने इसकी स्वीकृति दे दी। इस पर रेल उपमंत्री शाहनबाज ने लोक सभा में बताया कि घटना की जाँच करने पर बात सही पाई गई और दोषी कर्मचारियों को दण्ड दिया गया है। कानपुर महापालिका के सभाषद श्री. देवीदास आर्य ने नगरपालिका के कर्मचारियों की भ्रष्टाचार चर्चा करते हुए कहा कि— गोविंद नगर के एक पुरुषार्थी से दुकान का 2 रुपये का लाइसेन्स बनाने के लिए दो रुपया घूँस न मिलने पर उसका कुरता घूँस में ले लिया।

पुलिस वाले भी चपेट में

निश्चय ही अपराधों को रोकने का उत्तरदायित्व बहुत कुछ पुलिस पर है। पर गुण्डागर्दी जब दुस्साहस का रूप धारण कर लेती है तो उसकी चपेट में पुलिस वाले भी आ जाते हैं। दुस्साहसी गुण्डे उनसे भी डरते नहीं वरन् प्रतिशोध लेने के लिए उलटे उन पर भी आक्रमण करते हैं।

दिल्ली की सराय रोहिल्ला के थानेदार ज्ञानीराय जब दो अन्य सिपाहियों के साथ रोहतक रोड़ पर जा रहे थे तो दिन दहाड़े बीसियों लोगों के बीच जसवन्त नामक गुण्डे ने थानेदार को छुरा भोंक दिया। बताया जाता है उक्त थानेदार ने जुआ खेलने के अपराध में उसके दल के दस−बारह व्यक्तियों को पकड़ा था यह उसी से चिढ़ा हुआ था। इतनी भीड़ के बीच यह कृत्य करके भी वह भाग गया और पकड़ा न जा सका। अहमदाबाद के एक पुलिस सिपाही को एक फेरी वाले ने इसलिए छुरा घोंप कर मार डाला कि उसे सड़क पर रास्ता रोक कर बैठने से मना किया जा रहा था। सशस्त्र बदमाशों से टोकटाक करने पर क्रुद्ध होकर शिकोहाबाद थाने के राजबहादुर सिपाही को गोली मार दी गई।

समाचार है कि एटा जिले के निघौती थाने के इंचार्ज सूरजपाल सिंह के घर में घुस कर चोरों ने उन्हें तथा उनके स्त्री बच्चों को डंडों से मारा। अगले दिन पुलिस लाइन के रिजर्व इन्सपेक्टर श्री अमर सिंह के घर में जाकर उन पर लाठी से आक्रमण किया जिससे उनके सिर में चोट आई। इससे पूर्व जैथरा और सदावर थानों के थानेदारों के यहाँ भी चोरी हो चुकी हैं। एटा के शहर कोतवाल श्री रु माल सिंह पर चोरों ने घातक हमला कर दिया जिससे वे बेहोश होकर गिर पड़े। चोर उनका रिवाल्वर, चार सौ रुपया तथा उनकी स्त्री के जेवर कपड़े ले जाने में सफल हो गये। गंजडुंढ़वारा के थानेदार व उनके बच्चे को भी कुछ दिन पूर्व चोरों ने इसी प्रकार घायल किया था। मैनपुरी जिले के किशनी थाने के इंचार्ज श्री. सुखवीरसिंह के घर से नकदी जेवर आदि समेत तिजोरी उठा ले गये जो थाने से डेढ़ मील दूर मिली। थाना जसराना के पुलिस सब इन्सपेक्टर के यहाँ भी चोरों ने इसी प्रकार की साहसिक चोरी की थी। बदायूँ का समाचार है कि कादर चौक के थानेदार के घर में घुस कर चोर उनका रिवाल्वर तथा कीमती सामान चुरा ले गये। अल्लापुर, सहसबान, बिनावर के थानेदारों के यहाँ भी ऐसी ही चोरियाँ हुई जिनमें उनकी वर्दी तक चली गई। चोरों ने श्री डोटियाल डिप्टी कलक्टर के यहाँ भी सेंध लगाई और उनकी जन्म भर की कमाई चुरा ले गये। आगरा का समाचार है कि लगभग एक दर्जन डाकुओं ने फतेहाबाद के थानेदार श्री. त्यागी के घर सशस्त्र डकैती डाली। डाकू थानेदार तथा उनके स्त्री बच्चों को बुरी तरह घायल कर गये और नकदी जेवर ले गये।

वे भी दूध के धुले कहाँ हैं?

फिर सब पुलिस वाले भी दूध के धुले कहाँ होते हैं? उनमें भी कितने ही अपराधी प्रवृत्ति के पाये जाते हैं सुधरे हुए लोग ही बिगड़ों को सुधार सकते हैं। इसके अभाव में उनसे भी कोई बड़ी आशा कैसे रखी जा सकती है उत्तर प्रदेश की रिपोर्ट है कि भ्रष्टाचार तथा कर्त्तव्य में त्रुटि करने के कारण जून से दिसम्बर तक छह महीनों में 38 पुलिस वालों के विरुद्ध कार्यवाही की गई जिनमें से 23 को मुअत्तिल 8 को पदावनत तथा 3 को बर्खास्त कर दिया गया।

झाँसी से सात मील दूर थाना कुठोद में एक डकैती डालने के अभियोग में दरवारसिंह तथा कमलसिंह, दो पुलिस सिपाहियों को गिरफ्तार कर लिया गया। ये दोनों सिपाही सदर बाजार के थाने में नियुक्त थे। उरई पुलिस उक्त दोनों सिपाहियों को हथकड़ी डाल कर ले गई। सीकर का समाचार है कि लोसल के मन्दिर में चोरी करते हुए ग्रामीणों ने 5 व्यक्ति पकड़े जिनमें 3 सिपाही भी थे। उन्हें डिप्टी पुलिस सुपरिण्टेण्डेेण्ट के सुपुर्द कर दिया गया। कोयम्बटूर का समाचार है कि मद्रास पुलिस ने छापा मारकर एक पुलिस सब इन्सपेक्टर के घर से 6 लाख 70 हजार के जाली नोट बरामद किये और छह अन्य व्यक्तियों के साथ उसे भी गिरफ्तार कर लिया।

अपराधों की प्रवृत्ति को रोकने के लिए पुलिस और सरकार पर पूर्णतया निर्भर रहने से सुरक्षा की समस्या हल नहीं हो सकती। वे लोग एक सीमा तक ही अपनी स्थिति के अनुसार कुछ रोकथाम कर सकते हैं। असली रोकथाम तो जनता की संगठित शक्ति एवं सामाजिक स्तर की उत्कृष्टता के द्वारा ही संभव है। जैसे उपयुक्त भूमि और खाद पानी मिलने पर ही बीज उगता और फलता−फूलता है उसी प्रकार गुण्डा−तत्व भी तभी फलते−फूलते हैं जब उनका विरोध और असहयोग शिथिल होता है। लोग डरते हैं और प्रतिरोध करने के लिए, दंड दिलाने के लिए, असहयोग करने के लिए संगठित नहीं होते। फलस्वरूप गुण्डा−तत्व सामने का मोर्चा खाली देखकर मनमानी करते हैं। यदि पग−पग पर उन्हें प्रतिरोध का सामना करना पड़े, प्रबुद्ध जनता अपनी आत्मरक्षा के लिए भीरुता छोड़ कर संगठित होने लगे तो वह न केवल अपराधी तत्वों को ही समाप्त कर सकती है अपितु भ्रष्टाचारी एवं शिथिल सरकारी कर्मचारी को भी रास्ते पर ला सकती है।

नैतिक आदर्शों की रक्षा के लिए कष्ट सह सकने, त्याग करने और संगठित होने की प्रवृत्ति बढ़ने पर ही हमारी सुरक्षा निश्चित हो सकती है। इसके अभाव में बेचारी सरकार कितना कुछ कर सकेगी?


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