व्यक्तिगत सदाचार और आदर्शवाद

February 1962

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सामूहिक सत्प्रयत्नों के अतिरिक्त मनुष्य अपने व्यक्तिगत जीवन में आदर्शवाद एवं नैतिकता का उदाहरण प्रस्तुत करके जन−साधारण को उतनी अच्छी शिक्षा दे सकता है, जितनी अनेकों व्याख्यानों से भी सम्भव नहीं। प्रत्येक व्यक्ति आत्म−निर्माण का प्रयत्न करे तो उससे आत्म−कल्याण का पुण्य, परमार्थ का उद्देश्य तो पूरा होता ही है साथ ही लोकशिक्षण की भी एक प्रभावशाली प्रक्रिया आरम्भ होती है। जिनने अपनी व्यक्तिगत सचाई एवं ईमानदारी का उदाहरण प्रस्तुत किया उनने लोक शिक्षण का एक महान कार्य किया यही समझा जाना चाहिए। ऐसे उदाहरण अब बढ़ रहे हैं यह प्रसन्नता की बात है।

ईमानदारी के आदर्श उदाहरण

बुलन्दशहर के एक हायर सेकेन्डरी स्कूल के चपरासी दुर्गाप्रसाद ने डकैतों को अपना सर्वस्व तो दे दिया पर सरकारी साइकिल उस समय तक नहीं दी जब तक कि डकैतों ने गोली मारकर उसे धराशायी नहीं बना दिया। चपरासी अपने गाँव जा रहा था, रास्ते में डकैतों ने उसे रोक कर लूट लिया पर जब उससे सरकारी साइकिल छीननी चाही तो उसने स्पष्ट कह दिया कि यह राष्ट्र की सम्पत्ति है और मेरी जिम्मेदारी है कि इसे अपने जीवित रहते किसी को हानि न पहुँचने दूँ। इसे लेना हो तो आप मुझे मारकर ही ले सकते हैं। डाकू गोली मार देने के बाद ही उससे साइकिल छीनने में सफल हुए। पेट में गोली लगा दुर्गाप्रसाद अस्पताल पहुँचाया गया जहाँ उसकी हालत सुधर रही है। उसकी सहायता के लिए छात्रों ने दुर्गा सहायता कोष खोला है।

जबलपुर के श्री सुराजीलाल नामक एक स्थानीय सुरक्षा कर्मचारी ने पिछले दिनों यहाँ 8॥ हजार रु. के खोये करेंसी नोटों को उसके स्वामी तक सही सलामत पहुँचा कर अद्वितीय ईमानदारी का उदाहरण पेश किया है।

बताया जाता है कि उक्त नोटों का स्वामी जब चुँगी पोस्ट से काम कर वापिस लौट रहा था, तभी स्कूटर की तेज रफ्तार के बीच उसकी जेब से वे नोट खिसक गए। सुराजीलाल इस घटना को देख रहे थे। तत्काल ही उन्होंने जमीन पर पड़े हुए नोटों का बंडल उठाया और साइकिल पर चढ़कर उसे वे दे आए। उक्त नोटों के स्वामी ने उन्हें पारिश्रमिक देने की चेष्टा की पर उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया।

हिण्डौन उप खंडाधीश कार्यालय के जमींदार श्री रामसहाय तथा महुवा तहसील के चपरासी श्री मोतीसिंह ने 6800 रुपयों के नोट उनके असली मालिक को लौटा कर उत्कृष्ट ईमानदारी का परिचय दिया है। मामला इस प्रकार था कि उप खंडाधीश श्री गुमानसिंह दौरे के सम्बन्ध में मण्डावर गये और डाक बंगले में ठहरे। जब कि अधिकारी गिरदावरी का निरीक्षण करने मौके पर गए तो चपरासी पीने के पानी के लिए एक महाजन से मिट्टी का मटका मोल लाये। जिस समय वे उसे पानी भरने के लिए साफ करने लगे तो एक कपड़े में बन्धे हुए 3800 रुपयों के नोट मिले जो उन्होंने अधिकारी महोदय के समक्ष पेश कर दिये और बाद में उनके द्वारा नोटों के असली मालिक को लौटा दिये गये।

नागपुर में इतवारी भाजी मंडी की सड़क पर सीताराम कोष्ठी नामक लड़के को 1000 रु. के नोट पड़े मिले। बालक उनका लोभ न करके घर जाने की अपेक्षा धर्म कर्तव्य का ध्यान रखकर सीधा लकड़गंज पुलिस स्टेशन पहुँचा और वह रुपया वहाँ जमा करा दिया।

साम्प्रदायिकता और पक्षपात के इस युग में भी कितने उदार हृदय व्यक्ति मौजूद हैं इसका एक उदाहरण ऋषिकेश से प्राप्त एक समाचार में मिलता है।

पिता का हृदय

ऋषिकेश की जनता में उस समय भारी विस्मय हो गया जब कि मेजर अजीजुल करीम ने वैदिक रीति से कन्यादान किया। बाद में ज्ञात हुआ है कि वह लड़की उनके एक मित्र की थी जो मरते समय इन्हें सौंप गये थे। श्री अजीजुल करीम ने उसे अपनी पुत्री की भाँति पाला−पोसा और जनता को भी इस रहस्य का पता न चला, परन्तु जब उसका विवाह वैदिक रीति से किया गया तो जनता ने आश्चर्य किया तब मेजर ने उक्त रहस्य खोला। लड़की के विदाई के समय मेजर व उनकी पत्नी रो रहे थे।

सदाचार का सम्मान

सत्कार्यों के लिए सर्व-साधारण को प्रोत्साहन मिले इसके लिए उन सच्चरित्र व्यक्तियों का भी सम्मान किया जाना चाहिए जो गरीब होने के कारण उपेक्षित पड़े रहते हैं। आमतौर से धनी, विद्वान, नेता एवं सत्ताधारी लोग ही सच्चे सम्मान पाते हैं, इससे गरीब लोगों के उत्साह की अभिवृद्धि नहीं होती। सार्वजनिक सम्मान के अवसर संपन्नता एवं बड़प्पन की दृष्टि से न मिले वरन् व्यक्तित्व की श्रेष्ठता को ध्यान में रखकर इस प्रकार का चयन हो तो इसका बहुत भारी प्रभाव जनमानस पर पड़ सकता है जहाँ−तहाँ ऐसा हो भी रहा है।

सहारनपुर जिला समाज कल्याण समिति के भवन के शिलान्यास का शुभ कार्य गाँव की 80 वर्षीय हरिजन वृद्धा के हाथों सम्पन्न हुआ। इस भवन के निर्माण में ग्रामीणों ने उत्साहपूर्वक श्रमदान देने का निश्चय किया है। जबलपुर से 65 मील दूर दमोह में विज्ञान कक्ष का उद्घाटन विद्यालय के एक चपरासी अयोध्या प्रसाद द्वारा सम्पन्न हुआ। जब उसने फीता काट कर उद्घाटन की रस्म पूरी की तो उपस्थित सभ्य जनों ने जोरों से तालियाँ बजाकर अपनी प्रसन्नता प्रकट की।

एकाकी सेवा करने वाले

संस्थाओं के अतिरिक्त लोक निर्माण का कार्य मनुष्य व्यक्तिगत रूप से भी कर सकता है। यों एकाकी व्यक्ति की शक्ति सीमित होती है पर यदि वह चाहे तो अपनी आस्था पर दृढ़ रहकर नियमित रूप से सत्कार्यों के लिए सतत प्रयत्न करता रहे तो स्वयं एक स्वतन्त्र संस्था बन जाता है। कई ऐसे अनुकरणीय उदाहरण सामने आते रहते हैं जिनमें निष्ठावान् लोकसेवियों को सराहनीय साहस देखकर प्रसन्नता होती है और उनका अनुकरण करने के लिए प्रेरणा भी मिलती है।

अजमेर का समाचार है कि अपने आपको कितने ही आधुनिक विचारों की समझने वाली रमणी को यहाँ उस समय तो अपने सिर पर दुपट्टा अथवा चुनरी डालनी ही पड़ती है, जब नगर में विचरने वाले ‘सरदारजी’ राजस्थानी बोली में भारतीय परम्परा का बखान करते हुए नंगे सिर को ढक लेने की हठ करते हैं। सरदारजी इसी नगर में वर्षों से ‘राम नाम’ का प्रचार करते देखे जाते हैं। आपको कैसा ही नास्तिक समझे सरदारजी के अनुनय विनय के सामने उसे ‘रामनाम’ कहना ही पड़ता है। रामनाम का पीला चोगा पहने सर पर चक्र, कमर में लटकती कटार एवं हाथ में पुरानी−सी तलवार लिए सरदार मानसिंह उर्फ ‘रामनाम’ बाहर से आने वाले यात्रियों के लिए भी बड़ा आश्चर्य जनक खिलौना बन जाते हैं। सिर पर रोटियों से भरी टोकरी, एक हाथ में सब्जी का पात्र लिए सरदार जी बस्तियों में माँगते दिखाई देते हैं। माँगी हुई रोटियाँ एवं सब्जी को वे लूले−लंगड़े व भूखे−प्यासों को वितरित कर देते हैं। इसके अतिरिक्त बहुत अधिक जरूरतमन्द व्यक्ति यों को नगर के होटलों व निजी संस्थानों में छोटी−मोटी नौकरी भी दिला देने के कारण ‘सरदारजी’ को चलता−फिरता ‛ऐम्पलायमेंट एक्सचेंज’ भी कहा जाता है।

खगड़िया (मुँगेर) की एक अधेड़ भिखारिन ‘पगली’ की मृत्यु पर वहाँ के निवासियों ने 48 घंटे ‘रामधुन’ करके तथा दरिद्र नारायण भोजन कराके अपनी हार्दिक श्रद्धाञ्जलि अर्पित की। स्मारक के लिए एक बाल−उद्यान बनाने के लिए भी धन संग्रह किया जा रहा है। पगली का असली नाम रामप्यारी था। वह असहाय रोगियों, अपाहिजों का दुख−दर्द सहन नहीं कर पाती थी। घर−घर भीख माँग कर वह जो भोजन इकट्ठा करती, उसे उन अपंगों को ही खिलाया करती थी और उनकी जो सेवा बन पड़ती किया करती थी।

बोन का समाचार है कि योरोप की सड़कों पर आजकल एक 73 वर्षीय बूढ़ा एक बड़ा−सा सफेद झंडा लिए अकेला घूमता है। यह वर्षों से इस तरह घूम रहा है। जहाँ भी लोग उसकी बात सुनने को तैयार होते हैं वहीं वह सज्जनता और नैतिकता की शिक्षा देने लगता है। सरकारों के प्रयत्नों द्वारा इस दिशा में कुछ हो सकने की उसे आशा नहीं है इसलिये जनता को समझाते फिरने का कार्यक्रम उसने बनाया है। बूढ़े का नाम डेटवीलर है वह स्विट्जरलैंड का निवासी है। पहले वह एक होटल चलाता था और अच्छी कमाई होती थी। पर उसने मिशन के लिए उसे छोड़ दिया और इस प्रकार सफेद झण्डा लेकर गली−गली अकेला घूमने और उपदेश करने के लिए चल दिया। बहुत लोग उसका उपहास करते हैं और कुछ उसकी बातें सहानुभूति के साथ सुनते हैं।

भूल सुधार और प्रायश्चित

अपनी भूलों को जनता के सामने प्रकट करके और स्वयं उसका दण्ड प्रायश्चित रूप में अपनाकर मनुष्य आत्म सुधार कर सकता है, लोगों के लिए एक आदर्श उपस्थित कर सकता है और अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त कर सकता है।

सूरत शहर की नगर पालिका की सफाई कमेटी के अध्यक्ष ने अपनी एक छोटी−सी भूल के लिए आदर्श प्रायश्चित करके अधिकारी वर्ग के सामने एक अच्छा उदाहरण रखा है। उनकी सिफारिश पर गरीबों का मुफ्त एक्सरे होता था। लेकिन उसने अपनी पत्नी का भी मुफ्त एक्सरे करा लिया। बाद में उसने अनुभव किया कि उनसे भूल हुई। अतः प्रायश्चित स्वरूप अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।

“मैं जेबकतरा हूँ, मुझसे सावधान रहिए”

“मैं जेबकतरा हूँ, मुझसे सावधान रहिये”, इन शब्दों की तख्तियाँ कमर और सीने पर लटका कर गत रविवार को इन्दौर की सड़कों पर घूमने वाला एक व्यक्ति लोगों का आकर्षण−केन्द्र बन गया। उत्सुक दर्शकों को इस व्यक्ति के साथ चल रहे पुलिस के सिपाही ने बताया कि वह नगर का माना हुआ अपराधी है और जेब काटना ही उसका मुख्य काम है। सिपाही ने यह भी बताया कि आज वह समझाने पर स्वेच्छा से ऐसी तख्तियाँ लगाकर नगर में घूमने के लिए राजी हो गया।

शिमोगा क्षेत्र के तीर्थवल्ली नामक स्थान में एक भिक्षुक ने अपनी सारी संचित कमाई स्थानीय अस्पताल को दान कर दी। यों वह भीख माँगता था, कंजूसी करके उसने जन्म भर में एक हजार रुपये इकट्ठे किए पाये थे। अन्त में उसे सद्बुद्धि आई कि पेट भरने के बाद संग्रह की मनुष्य को क्या आवश्यकता है? फिर भीख की कमाई तो किसी भी प्रकार संग्रह करने के योग्य नहीं है उसने अपना सारा संग्रहित धन उदारतापूर्वक अस्पताल को दे डाला।

कई व्यक्तियों ने रेलवे की बिना टिकट यात्रा का सरकारी टैक्स चुराने की अपनी भूलों का प्रायश्चित करते हुए चोरी की रकम सरकार को लौटाई है। बेईमानी से संग्रह किया धन कितने ही लोगों ने लोकहित के कार्यों में दान करके अपनी आत्मा पर बढ़े हुए बोझ को हलका किया है। जिसे हानि पहुँचाई थी या दुर्व्यवहार किया था उससे क्षमा माँगने और उसकी स्वेच्छा से क्षति पूर्ति करने के भी कितने ही उदाहरण देखने में आते हैं। इस प्रायश्चित भावना का विकास होना निश्चय ही उज्ज्वल भविष्य की आशा का उत्साहवर्धक चिन्ह है।


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